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________________ उक्त कथाओं में उन प्रश्नों का समाधान ढूढ़ा जा सकता है, जिनमें इस पृथ्वी (दक्षिणार्ध भरत क्षेत्र के आर्यखण्ड के एक छोटे से भू-भाग) पर समुद्र व गंगा आदि नदियों के अस्तित्व को असंगत ठहराया गया है। (३) इस आर्यक्षेत्र के मध्यभाग के ऊँचे हो जाने से पृथ्वी गोल जान पड़ती है, और उस पर चारों ओर समद्र का पानी फैला हुआ है और बीच में द्वीप पैदा हो गए हैं। इसलिए, चाहे जिधर से जाए, जहाज नियत स्थान पर पहुंच जाते हैं। (४) मध्यलोक का जो भाग ऊपर उठ गया था (जिसके ध्वस्त होने का निरूपण जैन शास्त्रों में वर्णित है) वह भौतिक व पौद्गलिक ही है, और वह इसी पृथ्वी के आसपास के क्षेत्र से निकला होगा। जहां जहां से वह भौतिक स्कन्ध निकला, वहां वहां की जमीन सामान्य स्थिति से भी नीची या ढलाऊ हो गई होगी। भरतक्षेत्र की सीमा पर जो हैमवत पर्वत है, उससे महागंगा और महासिन्धु-ये दो नदियां निकल कर भरत क्षेत्र में बहती हुई लवण समुद्र में जा गिरती हैं। जहां वे दोनों समुद्र में गिरती हैं, वहां से लवण समुद्र का तथा गंगा नदी का पानी जब इस भूमि पर लाया गया तो वह उक्त गहरे व ढलाऊ क्षेत्र में भरता गया। परिणामस्वरूप. बड़े-बड़े सागरों का निर्माण हुआ। वर्तमान पांच महासागरों के अस्तित्व की पृष्ठभूमि में भी यही कारण है । इनके मध्य में ऊपर उठी हुई भूमि बढ़ती गई और उनमें अनेक द्वीप बन गए जिनमें एशिया आदि उल्लेखनीय हैं। वर्तमान में जो गंगा, सिन्धु आदि नदियां प्राप्त हैं. वे कृत्रिम हैं, या मूल गंगा आदि नदियों से निकली जल-राशि से निमित हैं। (५) समस्त जम्बूद्वीप में २-२ सूर्य व चन्द्र माने गए हैं। इसके पीछे रहस्य यह है कि जम्बूद्वीप के ठीक मध्य भाग में जो सुमेरु पर्वत है, वह एक लाख योजन ऊंचा (आधुनिक माप में कई करोड़ मील ऊंचा) है। इसके अतिरिक्त, कई कुलाचल आदि भी हैं। इन पहाडों के कारण एक सूर्य का प्रकाश सब तरफ नहीं जा सकता । एक सूर्य-विमान दक्षिण की तरफ चलता है, तो दूसरा उत्तर की तरफ। उत्तरगामी सूर्य निषध पर्वत की पश्चिम दिशा के ठीक मध्य भाग को लांघता हुआ पश्चिम विदेह में (६ घंटों में) पहुंचता है, तो दूसरी तरफ दक्षिणगामी सूर्य नील पर्वत की पूर्व दिशा के मध्य-भाग को पार करता हुआ पूर्व विदेह में (६ घंटों में) पहुंचता है। इस समय भरत व ऐरावत क्षेत्र में रात हो जाती है। उत्तरगामी सूर्य (६ घंटों में) पश्चिम विदेह के मध्य पहुंचता है। दूसरी तरफ दक्षिणगामी सूर्य (उन्ही ६ घंटों में) पूर्व विदेह के ठीक मध्य पूर्व विदेह के मध्य में पहुंचता है। इस समय पश्चिम विदेह व पूर्व विदेह में मध्यान्ह रहता है। (६) सूर्य, चन्द्रमा-ये दोनों ही लगभग जम्बूद्वीप के किनारे-किनारे में मेरु पर्वत की प्रदक्षिणा देते हुए घूमते हैं, और मास तक उत्तरायण-दक्षिणायन होते रहते हैं। इस आर्य क्षेत्र में कई ऐसे स्थान इतने गहरे व नीचे हो गए हैं जिनका विस्तार मीलों तक है। ये स्थान इतने नीचे व गहरे हैं कि जब सूर्य उत्तरायण होता है तभी उन पर प्रकाश पड़ सकता है। कुछ स्थान ऐसे हैं जहां दोनों माँ का प्रकाश पड़ सकता है, और इसलिए उन दोनों स्थानों में दो चार महीने सतत सूर्य का प्रकाश रहता है, तथा सूर्य के दक्षिणायन होने के समय दो चार महीने सतत अन्धकार रहता है। पृथ्वी की उच्चता व नीचता के कारण ही ऐसा होता है कि एक ही समय कहीं धूप (सूर्य का प्रकाश) होती है तो कहीं छाया। इस तथ्य पर प्रकाश डालने हेतु, आचार्य विद्यानन्दि ने उज्जैन का उदाहरण दिया है। वे कहते हैं, जैसे उज्जैन के उत्तर में शामि कुछ नीची हो गई है, और दक्षिण में कुछ ऊंची। अत: निचली भूमि में छाया की वृद्धि, और ऊंचे भूभाग में छाया की हानि प्रत्यक्ष होती है। कोई पदार्थ या भू-भाग सूर्य से जितना अधिक दूर होगा, उतनी ही छाया में वृद्धि होगी। (७) सूर्य-विमान के गमन करने की १८४ गलियां हैं। प्रत्येक गली की चौड़ाई योजन है । प्रत्येक गली दूसरी गली से २-२ योजन के अन्तराल से है। इस प्रकार कुल अन्तराल १८३ हैं। अत: कुल 'चार' (Orbit) का विस्तार (१५३४२) +(45 x १८४)-५१० ॥ योजन प्रमाण ठहरता है। ततो नोज्जयिन्या उत्तरोत्तरभूमौ निम्नाया मध्यदिने छायावृद्धिविरुध्यते । नापि ततो दक्षिणक्षितौ समन्नतायां छायाहानिः उन्नतेतराकारभेदद्वारायाः शक्तिभेदप्रसिद्धः। प्रदीपादिवद् आदित्याद् न दूरे छायाया वृद्धिघटनात् निकटे प्रभातोपपत्तेः (त०सू० ४११९ पर श्लोकवार्तिक, खण्ड-५, पृ०५६३)। तस्य छाया महती दूरे सूर्यस्य गतिमनुमापयति अंतिकेऽतिस्वल्पा (त. सू. ४।१६ पर श्लोकवार्तिक, खण्ड-५, पृ. ५७१)। भाचार्य रत्न श्री वेशभूषण जी महाराज अभिनन्दन अन्य २. १४६ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012045
Book TitleDeshbhushanji Aacharya Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorR C Gupta
PublisherDeshbhushanji Maharaj Trust
Publication Year1987
Total Pages1766
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size56 MB
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