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पर ४१ फूट ऊंचा मानस्तम्भ बनवाया गया है । पर्वत पर स्थित अपराजित द्वार मुक्ति पथ के आकांक्षियों को अक्षय सुख के साम्राज्य में प्रवेश कराता है।
__पंचलौह धातु से निर्मित चतुविशति जिनप्रतिमा, भगवान् पार्श्वनाथ की १७ फुट ऊंची मनोज्ञ पाषाण-प्रतिमा, सौम्य सप्त ऋषि प्रतिमा, पर्वत पर विशेष रूप से स्थापित भगवान् ऋषभदेव, भगवान् बाहुबली एव भगवान् भरत की (क्रमशः ११ फुट, ६ फुट, ६ फुट) ऊंची मनोहारी प्रतिमायें अनायास ही दर्शनाथियों का ध्यान आकर्षित कर लेती हैं। शांतिगिरि का विशेष शृगार करने के लिए महाराज श्री ने पर्वत पर कमल मन्दिर का निर्माण कराया है। इस अनुपम रचना में अष्टकोण कमल के मध्य में चतुर्मुख भगवान पद्मप्रभु जी की प्रतिमा को प्रतिष्ठित किया गया है। चतुर्मुख तीर्थंकर प्रतिमा के निकट आठों कमल-पत्रों पर भगवान ऋषभदेव से भगवान् चन्द्रप्रभु (पहले आठ तीर्थकर) तक की प्रतिमायें गोलाकार रूप में स्थापित की गई हैं। आठों कमल-पत्रों के शेष भाग पर क्रमश: दो-दो तीर्थंकरों की प्रतिमायें (तीर्थंकर पुष्पदन्त से भगवान् महावीर स्वामी जी तक) प्रतिष्ठित की गई हैं । इन चौबीस तीर्थंकरों की मूर्तियों की रंग-संयोजना उनके वर्ण के अनुरूप है।
आचार्यरत्न श्री देशभूषण जी महाराज जैन मूर्ति शास्त्र के गम्भीर अध्येता एवं अन्वेषक हैं । वे प्रायः प्राचीन प्रतिमाओं के भावपूर्वक दर्शन करते समय उससे तादात्म्य स्थापित कर लेते हैं। अतिशययुक्त मूर्तियों के आप अद्भुत पारखी हैं । इस सम्बन्ध में श्री महावीर कुमार डोसी ने 'आचार्य महावीर कीर्ति स्मृति-ग्रन्थ' में आचार्य श्री महावीर कीर्ति जी एवं आचार्यरत्न श्री देशभूषण जी द्वारा मल्हारगंज (इन्दौर) स्थित चैत्यालय में भगवान् श्री चन्द्रप्रभु की प्रतिमा को छाती से दबा कर देखने का रोचक वर्णन किया है।
सन् १९८१ में भगवान् बाहुबली प्रतिष्ठापना सहस्राब्दी समारोह से कोथली के लिए वापिस आते समय आचार्यरत्न श्री देशभूषण जी महाराज को कारकर जिले के जंगल में ८०० वर्ष प्राचीन भगवान् श्री पार्श्वनाथ की अतिशययुक्त प्रतिमा के सम्बन्ध में जानकारी प्राप्त हुई । आचार्यश्री उस मूर्ति के दर्शन के लिए जंगल में गए । मूर्ति के अवलोकन मात्र से वे धन्य हो गए। उन्होंने भारतीय शिल्पकला की इस अनुपम निधि को शांतिगिरि पर प्रतिष्ठित करने का संकल्प किया। आज भगवान् पार्श्वनाथ की वह मनोहारी अद्भत प्रतिमा शांतिगिरि के गौरव में भी वृद्धि कर रही है । उस अतिशययुक्त मूर्ति के छत्रत्रय में कुशल शिल्पियों ने कुछ रिक्त स्थान इस प्रकार से छोड़ दिए हैं कि प्रातःकालीन अभिषेक के समय छत्रत्रय से जलधारा स्वयं प्रवाहित हो उठती है। उस समय ऐसा प्रतीत होता है कि शांतिगिरि पर्वत पर तीर्थकर भगवान का मणि-मौक्तिकों से देवकृत अभिषेक हो रहा हो। प्रत्यक्षदर्शियों का कहना है कि उस अभिषेक जल से असाध्य रोग भी तत्काल दूर हो जाते हैं।
आचार्यश्री के अनुभवी दिशा निर्देशन में शांतिगिरि के विकास का कार्यक्रम निरन्तर वेगमान गति से चल रहा है । समवशरण की योजना को क्रियान्वित किया जा रहा है। आचार्यश्री के प्रयास से पहाड़ को अनेक प्रकार के दुर्लभ पे -पौधों से सज्जित करके लता मंडप का रूप दे दिया गया है । शांतिगिरि की विकास योजना के बढ़ते हुए चरणों को देखकर निस्सन्देह कहा जा सकता है कि निकट भविष्य में शांतिगिरि का यह क्षेत्र आध्यात्मिक प्रेरणा के लिए मुनियों एवं मुमुक्षुओं को समान रूप से आकर्षित करेगा। गुरुकुल एवं उच्चतर माध्यमिक विद्यालय
तीर्थक्षेत्र का सर्वाङ्गीण विकास करने से पूर्व आयोजकों का यह दायित्व हो जाता है कि वे सम्बन्धित क्षेत्र के नागरिकों की भावनाओं का सम्मान करने के लिए लोककल्याण की योजनाओं को प्राथमिकता प्रदान करें। यदि निकटवर्ती क्षेत्र के निवासियों की रागात्मक अनुभूतियां तीर्थक्षेत्र से सम्पृक्त नहीं हो पायेंगी तो निकट भविष्य में क्षेत्र की सुरक्षा एवं प्रबन्धव्यवस्था के लिए आस्थावान् कार्यकर्ताओं का मिलना कठिन हो जाएगा। आचार्यश्री ने अपने कोथली प्रवास के प्रथम दिन ही यह अनुभव कर लिया था कि एक दीर्घ अवधि बीत जाने पर भी कोथली एवं आस-पास के क्षेत्र में बालकों की पढ़ाई की समुचित व्यवस्था नहीं हो पाई है। वहाँ के परिवारों की आर्थिक स्थिति से भी आप परिचित थे। अतः उन्होंने सर्वप्रथम क्षेत्र के बालकों की शिक्षा के लिए विद्यालय स्थापित किया। बालकों को सुसंस्कारित बनाने एवं धर्म सम्बन्धी ज्ञान देने के लिए गुरुकुल की स्थापना कराई। आपकी व्यक्तिगत रुचि के कारण कोथली की कल्याणकारी परियोजना के प्रभाव क्षेत्र में आने वाले बालकों का अभूतपूर्व विकास हुआ है। आज वहाँ के बालकों में अपूर्व आत्मविश्वास की भावना है । शांतिगिरि क्षेत्र पर दर्शन के निमित्त जाने वाले श्रावकों ने इस सम्बन्ध में अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए कहा है कि आचार्य श्री देशभूषण जी ने वहां बालकों की एक ऐसी सेना खड़ी कर दी है जो युद्धस्तर पर किसी भी काम का दायित्व अपने ऊपर लेकर कार्य को कुशलतापूर्वक पूर्ण कर देती है। श्री मन्दिर जी में होने वाले सभी छोटे-बड़े आयोजनों की सम्पूर्ण व्यवस्था अब बालक-दल ही करता है ।
कालजयी व्यक्तित्व
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