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________________ उत्तर-क्या निजात शुदा का कोई रूप है ? कोई नहीं। मगर हां, अगर आपका यही इशारा कर्ता की तरफ हो तो हम ईश्वर को कर्ता नहीं मानते। प्रश्न-जैनधम में आत्मा और परमात्मा का क्या फर्क है ? उत्तर-आत्मा कहते हैं कर्मसहित जीव को, परमात्मा कहते हैं कर्मरहित जीव को (निजात शुदा को)। प्रश्न- आत्मा का जिस्म के साथ क्या ताल्लुक है ? उत्तर-जिस तरह आपका ताल्लुक अपनी खास जगह या मकान से है उसी तरह है।" 'अनमोल रत्नों की कुंजी' कई भागों में अयोध्या प्रसाद द्वारा संपादित की गई। पहला भाग प्रश्नोत्तर के रूप में लिखा गया है। दूसरे भाग में महात्मा गांधी और मदनमोहन मालवीय के धर्म, पशु-बलि आदि पर विचार प्रस्तुत किये गये हैं । लाहौर से सन् १९१८ में एक लघु पत्रिका 'जैन धर्म की कदामत व सदाकत पर यूरोपीय मुवरखीन की मुदल्लिल राय' लाला मथुरादास के सम्पादन में प्रकाशित हुई। यहां पश्चिमी विद्वानों, विचारकों, चिन्तकों के मतों को एकत्रित किया गया है। लाहौर से 'शाहराह-मुक्ति' शीर्षक से कई प्रचार-पुस्तिकाएं उर्दू में निकाली गयीं। ऐसे ही एक ट्रेक्ट में ३६ भजनों को संकलित किया गया है। 'जैन तत्त्व दर्पण' (१९१७) और 'नव तत्त्व' (१९२१) अम्बाला से प्रकाशित उर्दू ग्रन्थ हैं। 'आयना हमदर्दी' (संपादक पारस दास) दिल्ली से कई भागों में निकलने वाली पत्रिका थी जो १९१६ में प्रकाशित की गई। इसके तीन भाग हैं-(१) हमदर्दी, रहमदिली, गोश्तखोरी, दिल आजारी और ईजारसानी (कष्ट देना) के मुताल्लिक बानीयान मजाहिब (धर्म प्रवर्तक) शोरा (कविगण ) फुजला (विद्वन्मण्डल)और हुकमा (सुधारक) वगैर के ख्यालात मय एक जखीम जमीमा के (विशद परिशिष्ट के साथ), (२) पचास के करीब मशहूर-मशहूर हिन्दू और जैन शास्त्रों के तकरीबन सवा तीन सौ चौदा-चीदा (चुने गये) श्लोकों का अनुवाद, (3) गोश्तखोरी के विषय में डाक्टरों के विचार । हुस्न अव्वल' (प्रथम भाग) के संपादक पं. जिनेश्वर प्रसाद 'माइल' देहलवी हैं। २५८ पृष्ठों की इस पुस्तक में जैनधर्म के साथ और भी नैतिक, दार्शनिक निबन्ध समाविष्ट हैं। इसके प्रथम अध्याय 'वक्त' का थोड़ा सा अंश यहां दिया जाता है "गरज इस तगुय्युरात के समन्दर में क्या जानदार, क्या बेजान, एक सूरत पर किसी को भी करार नहीं है। वक्त एक परिन्दा है कि बराबर उड़ा चला जाता है और इस सुरअत (तीव्रता) से उड़ता है कि निगाहें देख नहीं सकतीं, कान उसके पैरों की सनसनाहट सुन नहीं सकते। हां, उसकी गर्दन में एक घंटी बंधी है जिसकी आवाज से अपनी रफ्तार का इम्तियाज अहले दुनिया क कराता जाता है और सामाने दुनिया को नये से पुराना और पुराने से नया बनाता है। उसके पंजों से अनगिनत धागे उलझे हुए हैं। यह जानदारों के रिश्तेहयात (जीवन के सम्बंध) हैं जो परवाज के साथ खिंचते चले जाते हैं। उसमें जिसकी हृद आ जाती है वह टूट जाता है। इसी को मौत कहते हैं जिस पर किसी को अख्तयार नहीं-- री में है रखशे उन कहां देखिये यमे, न हाथ बाग पर है, न पा है रकाब में । (गालिब) यह भी एक किस्म की तबदीली है और लफ्ज इन्तकाल के मानी भी नक्लोहरकत (गतिमान होना) करना है। हासिल कलाम (कहने का अभिप्राय) यह कि दुनिया एक पुरशोर (कोलाहलपूर्ण) समन्दर है जिसमें हवा के जोर से कहीं मेंढ़ा उछल रहा है, कहीं भंवर पड़ रहा है, कहीं पानी पहाड़ों से टकराता है और कहीं यकरुखा बहा चला जाता है। किसी जगह फितरी दिलचस्पियों ने मंजर (दृश्य) को हद से ज्यादा दिल-आवेज बना दिया है और किसी जगह नागहानी (अचानक) हादसों ने वह डरावना और हौलनाक सीन दिखाया है कि जी दहला जाता है।" जैनधर्म की कथाओं को 'जैन कथा रत्नमाला' में संकलित किया गया है। ये कथाएं उपदेशात्मक हैं। जमनादास ने इनका संग्रह किया है और यह लाहौर से छपी थी । इस पुस्तक को अध्ययन करने के बाद यह मालूम पड़ता है कि संसार स्वप्न के समान है और "इसका आराम नक्श बरआब (पानी पर निशान) है। इन्सान को मौजूदा वक्त गनीमत समझ कर धर्म में उद्यम करना चाहिए। यह जीव को परहित में सहायक होगा। सब अपनी अगराजो मतलब (स्वार्थ) के साथी हैं। सिवाय धर्म के और कोई जीव के दुःख निवारण करने वाला नहीं।" इनके अतिरिक्त 'शान सूरज उदय' (दिल्ली), 'लुत्फे रूहानी उर्फ आत्मिक आनन्द' (सं० विशम्भरदास), 'वैराग प्रकाश' (लाहौर), 'जैन मजहब के बत्तीस सूत्रों का खुलासा' (अम्बाला), 'राजे हकीकत' (संपादक दुर्गादास), 'जैन रतन प्रकाश' (लुधियाना) आदि कितनी ही पत्र-पत्रिकाएं उर्दू में निकाली गयी हैं। जैन साहित्यानुशीलन १८७ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012045
Book TitleDeshbhushanji Aacharya Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorR C Gupta
PublisherDeshbhushanji Maharaj Trust
Publication Year1987
Total Pages1766
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size56 MB
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