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________________ प्रत्येक अंशों को जानने वाले, संस्कृत, प्राकृत और दाक्षिणात्य भाषाविद्, सम्यक्दशन ज्ञानचारित्र से विभूषित दिगम्बर निर्ग्रन्थ साधुगण कर्मक्षयार्थ अहर्निश अनवरत तप और ध्यान में निष्पण्ण रहते हैं । उनको नमोस्तु करके उनसे आशीर्वाद प्राप्त कर आगे चल पडना।" वेंकटगिरि वर्तमान तिरुपति है जो अब आंध्रप्रदेश के अन्तर्गत है । इतिहास कहता है कि तमिलनाडु की सीमा व कटगिरि से प्रारम्भ होती थी । अतः तिरुपति पहले तमिलनाडु के अन्तर्गत था। इस कथन से भी तमिलनाडु में जैन धर्म का अस्तित्व मालूम होता है। कलिंग देश का इतिहास कलिंग देश के नरेश कारवेल के शासनकाल में (ई० पू० १६९) मगध नरेशों ने कलिंग पर चढ़ाई की और वहां पर स्थित भगवान आदिनाथ की विशालकाय प्रतिमा को मगध देश में ले गये। इस घटना के कुछ वर्ष पश्चात् कलिंग नरेश खारवेल पुनः मगध पर चढ़ाई करके विजय पाकर उस पावन प्रतिमा को वापस ले आया। इस महत्त्वपूर्ण विजय से प्रसन्न होकर खारवेल नरेश ने बहद सम्मेलन बुलाया जिसमें भारत के सभी प्रांतों के नृपगणों ने भाग लिया। तमिलनाडु से पाण्डिय जनपद के नरेश ने जो जैन धर्मावलंबी था, अपने परिवार सहित जाकर उस ऋषभदेव भगवान् की प्रतिमा की वन्दना की थी। यह समाचार कलिंग देश की हस्थिगुफा के अभिलेख से ज्ञात होता है। अतः कलिंग देश का इतिहास भी तमिलनाडु में जैन धर्म की अवस्थिति को बताता है। अब तक प्राचीन इतिहास से तमिलनाडु में जैन धर्म के अस्तित्व के सम्बन्ध में विचार किया गया । आगे अभिलेख के सम्बन्ध में विचार करें। बाह्मी अभिलेख ब्राह्मी लिपि अति प्राचीन है। इस लिपि का उद्भव भगवान् ऋषभदेव के द्वारा हुआ था । ऋषभदेव ने ही अपनी पुत्री ब्राह्मी को यह लिपि सिखाई थी। यह लिपि प्रायः तमिल लिपि से मिलती जुलती है । इस लिपि से उत्कीर्ण अभिलेख तमिलनाडु के समस्त प्रदेशों में स्थित गिरिकन्दरा के शिलापट्टों पर पाये जाते हैं जहां निर्ग्रन्थ साधुओं का वासस्थान था। ये गिरिकन्दरायें प्राकृतिक हैं, किसी के द्वारा बनायी हुई नह । इन पर्वतों में स्वच्छ जल से भरे जलकुण्ड भी स्थित हैं । ये पर्वत जनता के वास-स्थान से किचित् दूर अवस्थित हैं। कुछ स्थान ऐसे भी हैं जहाँ मनुष्य का पहुंचना भी अति कठिन है, तो भी वे स्थान वहां पहुंचने वालों को अपने प्राकृतिक सौन्दर्य से मन की चंचलता को दूर करके शान्ति प्रदान करते हैं । इन गुफाओं में दिगम्बर निर्ग्रन्थ साधु अपना वास-स्थान बनाकर आत्मसाधना में तत्पर होते हुए सिद्धान्त, न्याय, तर्क, व्याकरण, साहित्य आदि विषयों के उच्चकोटि के ग्रन्थों की रचना भी करते थे। उस समय के नरेशों ने निर्ग्रन्थों के लिए शिलातल पर शय्यायें बनवायीं अर्थात् गुफा के तल भाग को लचीलेदार बनाकर शय्या के उपयुक्त स्थान बनवाए । ये गिरिकन्दरायें एवं शय्यायें वर्तमान में भी मदुरै जिले के निकटस्थ पर्वतों पर विपुल मात्रा में विद्यमान हैं। इन गुफाओं का विवरण, विगत काल में स्थित साधुओं की बातें और काल आदि ब्राह्मी लिपि में लिखे मिलते हैं। ब्राह्मी का अपर नाम तमिलि है । प्राचीन तमिललिपि ही तमिलि कहलाती है। इसको तमिल ब्राह्मी लिपि भी कहते हैं। इसका उल्लेख समवायांग सूत्र में पाया जाता है, जो ई. पू० पहली शताब्दी का है। उसमें अष्टादश प्रकार के अक्षरों के नाम हैं जिनमें खायी.खरोष्ठी, तमिलि आदि अक्षरों का नाम भी है। भाषाविदों व अन्वेषकों का कहना है कि जब से ब्राह्मी लिपि का प्रादुर्भाव हआ तभी से तमिलि लिपि का भी प्रादुर्भाव हुआ। इन बातों को यह ग्रन्थ साबित करता है। इन अक्षरों से अंकित अधिकतर अभिलेख मदुरै नगर के निकटस्थ आने मल, आन्दै मल, समनरमल (श्रमणगिरि) आदि पर्वतों की गुफाओं में व चट्टानों में पाये जाते हैं, जो ई० पू० तीसरी शताब्दी से पहले के हैं। बाह्मी और तमिलि लिपि के अलावा वट्टलेत्तु लिपि भी पाई जाती है । यह न ब्राह्मी है न तमिलि है। इसकी आकृति तमिल लिपि से ही मिलती जुलती है। इसका खोजपूर्ण आधार दक्षिण भारत के अभिलेख शोध विभाग (South Indian Epigraphy) के पास है। ब्राह्मी, तमिलि, वटेलुत्तु आदि अभिलेख जहां-जहां पाये जाते हैं उसका विवरण इस प्रकार है पुदुको, जिले में ६ स्थान, मदुरै जिले में १२ स्थान, तिरुनेलवेलि जिले में ७ स्थान, तिरुचिनापल्लि जिले में ३ स्थान, उत्तर आर्कट जिले में ३ स्थान, दक्षिण आर्कार्ड जिले में ५ स्थान, चितूर जिले में २ स्थान (वर्तमान में चित्तूर जिला आंध्रप्रदेश में हैं)। १८२ आचार्यरत्न श्री देशभूषणजी महाराज अभिनन्दन ग्रन्थ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012045
Book TitleDeshbhushanji Aacharya Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorR C Gupta
PublisherDeshbhushanji Maharaj Trust
Publication Year1987
Total Pages1766
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size56 MB
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