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________________ जयपुर चातुर्मास आचार्यरत्न देशभूषण जी ने अपनी राष्ट्रव्यापी पदयात्राओं के दौरान सन् १९५४, १६६४, १६६६, १६७१ एवं १९८२ में राजस्थान की गुलाबी नगरी जयपुर में चातुर्मास सम्पन्न किए हैं। आचार्यश्री की दृष्टि में जयपुर जैन संस्कृति एवं साहित्य का प्रमुख केन्द्र है और निकट भविष्य में भी उन्हें जयपुर से विशेष अपेक्षाएँ हैं। आचार्य रत्न श्री देशभूषण जी महाराज रत्नत्रय के साधक हैं। एक धर्माचार्य के रूप में आप श्रावकों को धर्म के प्रति श्रद्धा को अविचल बनाने के लिए विशेष पूजा-पाठ एवं अनुष्ठानों को महत्व देते हैं। सन् १९५४ के चातुर्मास में आचार्यश्री ने स्वयं बड़ी संख्या में व्रत किए और लोककल्याण के निमित्त तीन लोक विधान, शांतिधारा इत्यादि के विशेष अनुष्ठान भी सम्पन्न कराए। जयपुर निवासियों को धर्म में रुचि को दृष्टिगत करते हुए आचार्यथी ने विशेष प्रवचन सभाओं को सम्बोधित करते हुए मानव जाति द्वारा सदाचारपूर्ण जीवन अपनाने पर बल दिया। जयपुर प्रवास में आपने एक कर्मशील साधक की भांति समाज की समस्याओं को गहराई से समझा और उनके निदान के लिए समाज का मार्गदर्शन किया। उनके इस समाजसुधारक एवं लोककल्याणकारी रूप को देखकर जयपुर के जैनेतर समाज ने भी आपसे मार्गदर्शन की अपेक्षा की अपराधवृत्ति के निवारण के लिए जयपुर जेल के अधिकारियों ने उन्हें कैदियों को सम्बोधित करने के लिए जेल के प्रांगण में आमन्त्रित किया। करुणाशील आचार्यरत्न श्री देशभूषण जी ने अपने जयपुर प्रवास में अनेक बार कैदियों को सम्बोधित करते हुए अभय, अहिंसा एवं अपनत्व का भाव दिया। वहां के जेल अधिकारी भी यह अनुभव करते हैं कि आचार्य श्री की धर्मवाणी से प्रभावित होकर अपराधियों में प्रायचित्त भाव जाग जाता है । 1 आचार्यश्री की धर्मदेशना से जयपुर के जैन समाज को संगठित होने का अवसर प्राप्त हुआ है । उनके सदप्रयासों से वहाँ पर अनेक पुस्तकालय, औषधालय, बाल आश्रम इत्यादि स्थापित एवं संचालित हुए हैं। आपने जयपुर नगरी के जैन मन्दिरों का दर्शन करके यह निष्कर्ष निकाला कि यदि इस नगरी में एक पर्वतीय मन्दिर और उसके निकट मुनि आवास का निर्माण हो जाए तो जयपुर के जैन वैभव में अभूतपूर्व वृद्धि हो जायेगी। आचार्यची की इस योजना का सर्वत्र स्वागत हुआ। इस परिकल्पना के मूर्त रूप में आचार्यश्री की प्रेरणा से चलगिरि का निर्माण कार्य लगभग पूर्ण हो गया है । पर्वत पर साधुओं के निवास के लिए गुफाओं को विशेष रूप से तैयार कराया गया है । प्रकृति की रम्य गोद में बसा हुआ चूलगिरि अपने गगनचुम्बी शिखरों से पर्यटकों का ध्यान आकर्षित कर लेता है । आचार्य रत्न श्री देशभूषण जी के प्रति जयपुर के जैन धर्मानुयायियों की विशेष श्रद्धा है । उनके जन्मजयन्ती समारोह एवं नगर में मंगल प्रवेश के समय वहां एकत्र हुई श्रावकों की विशाल संख्या इस सत्य की साक्षी है । राजस्थान के श्रावकों के मन में यह धारणा है कि आचार्यरत्न श्री देशभूषण जी सरस्वती एवं लक्ष्मी के अद्भुत संगम हैं । उनकी पावन वाणी के श्रवण से गृहस्थ का कल्याण एवं उनके द्वारा आहार प्राप्त कर लेने से घर में लक्ष्मी का प्रवेश हो जाता है। इन आस्थाओं की वास्तविकता से जयपुर के श्रावक ही परिचित होंगे, किन्तु इससे आचार्यश्री के व्यापक प्रभाव और जनसामान्य में उनके प्रति अटूट आस्था का बोध तो होता ही है । अभिनव निर्माण 1 परमपूज्य आचार्यरत्न श्री देशभूषण जी महाराज का जैन मन्दिरों से रागात्मक सम्बन्ध रहा है। आचार्यश्री का जन्म दक्षिण भारत के बेलगांव जिले में हुआ था बेलगांव स्वयं में जैन मन्दिरों का वैभवशाली केन्द्र रहा है। इस प्रांत में अनेक मुनियों ने धर्माराधना द्वारा मुक्ति लक्ष्मी का वरण किया है। श्री जी० एम० कोरकिल ने अपने एक लेख "ए लीजेंड ऑव ओल्ड बेलगांव " - इंडियन ऐंटीक्वेरी, खंड ४, पृ० १३८ - १४०, बम्बई, सन् १८७५ में एक प्राचीन जनश्रुति के आधार पर बेलगांव में घटित एक दुर्घटना में एक सौ आठ मुनियों का अकस्मात् स्वर्गवास हो जाने एवं उनकी स्मृति में किसी धर्मपरायण श्रावक द्वारा एक सौ आठ मन्दिर बनाये जाने का उल्लेख किया है। बाल्यकाल में श्री देशभूषण जी ने अपने गांव के निकटवर्ती सभी मन्दिरों के श्रद्धापूर्वक दर्शन किये थे । परमपूज्य आचार्य श्री जयकीर्ति जी महाराज के सम्पर्क में आने पर आपने सिद्धक्षेत्र श्री सम्मेदशिखर जी की लम्बी पदयात्रा की । इस तीर्थाटन में आपने अनेक जैन मन्दिरों के दर्शन किये और उनके शिल्पविधान, मूर्ति प्रतिष्ठा इत्यादि पर संघस्य स्यागियों से जानकारी एकत्र की विचारविमर्श के समय उनके सात्त्विक मन में विशालकाय मन्दिरों को बनवाने का भाव जागृत हो जाता था । मन्दिरों के प्रति उनके अप्रतिम श्रद्धा भाव को लक्षित कर कुछ सात्त्विक शक्तियाँ आचार्य श्री में समाविष्ट हो गईं । पूज्य श्री जयकीर्ति जी महाराज की आज्ञा से आप दुर्ग (मध्यप्रदेश ) में एक मानस्तम्भ की नींव भरवाने के लिये ब्रह्मचारी के रूप में वहाँ गये अनुष्ठान के समय वहाँ केसर की प्राकृतिक वर्षां हुई। रामटेक क्षेत्र पर ऐलक दीक्षा अंगीकार करते समय आपने भगवान् श्री शांतिनाथ के पूर्वक दर्शन किये। भव्य मन्दिर एवं निकटवर्ती १० मन्दिरों के भक्त कालजयी व्यक्तित्व Jain Education International For Private & Personal Use Only २५ www.jainelibrary.org
SR No.012045
Book TitleDeshbhushanji Aacharya Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorR C Gupta
PublisherDeshbhushanji Maharaj Trust
Publication Year1987
Total Pages1766
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size56 MB
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