SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 1249
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ५. अपभ्रंश और हिन्दी में न रहस्यवाद (सन् १९६५ ई०) डॉ० वासुदेव सिंह ने अपने इस शोध ग्रन्थ में छोहल के आत्मप्रतिबोध जयमाल पर विचार करते हुए उसे "आत्मा का प्रतिबोधन या सम्बोधन" स्वीकार किया है। इन्होंने उनकी दो अन्य कृतियों- रे मन गीत' और 'जग सपना गीत' की सूचना भी दी है, किन्तु यह सूचना भ्रामक है । इन नामों की छोहल की कोई रचना नहीं है । छोहल की अन्य रचनाओं में भी रहस्यवाद है, पर पता नहीं क्यों डॉ० सिंह ने उनकी चर्चा नहीं की है । ६. 'बावनी' के मुद्रित पाठ (सन् १९६६ ई० ) अब तक छोहल पर पाठकों का ध्यान जा चुका था । अतः 'साहित्य-संस्थान, उदयपुर के शोध सहायक श्री कृष्णचन्द्र शास्त्री ने छोहल की 'बावनी' पर संक्षिप्त विचार उसकी एक प्रति के आधार पर मूल पाठ का प्रकाशन ( शोध पत्रिका, वर्ष १७, अंक १-२; जनवरी-अप्रैल, १९६६, संयुक्तांक ) कराया । वह पाठ कई दृष्टियों से त्र ुटित और अशुद्ध था। अद्यावधि 'बावनी' अप्रकाशित थी, किन्तु एक बार उसके त्र ुटित और अशुद्ध पाठ के प्रकाशित हो जाने पर गड़बड़ी की सम्भावना के बढ़ जाने के भय से प्रस्तुत लेखक ने विभिन्न पाण्डुलिपियों के आधार पर उसका अपेक्षाकृत शुद्ध पाठ 'मरु भारती' (जुलाई, १९६६ ई० ) में प्रकाशित कराया। वहीं उसके पद्य-क्रम, भाषा इत्यादि पर भी संक्षिप्त विचार कर लिया गया था । ७. हिन्दी बावनी काव्य (सन् १९६८ ई०) प्रस्तुत लेखक ने हा पुनः अपने पी-एच० डी० शोध ग्रन्थ में अन्य बावनियों के साथ छोहल की 'बावनी' पर भी विचार किया । इस प्रकार 'बावनी' के विवेचन-विश्लेषण को प्रायः पूर्णता मिली । उपर्युक्त ग्रन्थों दो अतिरिक्त पं० परमानन्द शास्त्री का 'कवि छोहल' शीर्षक निबन्ध ( अनेकान्त, अगस्त १९६८ ई०) भी छीनविषयक योग्य सूचना प्रस्तुत करने में समर्थ है। इधर मैंने छोहन की उपलब्ध सभी रचनाओं का पाठ विभिन्न पाण्डुलिपियों के आधार पर सम्पादित तो किया है, किन्तु आज व्यावसायिक प्रकाशनों की भागदौड़ में मेरी यह अव्यावसायिक कृति किसी उदारमना साहित्यिक संस्कार सम्पन्न प्रकाशक की बाट जोह रही है। यहाँ सभी उद्धरण निजी सम्पादित प्रति से ही रखे गये हैं । (ख) छोहल की जीवनी मिलती है छोहल की जीवनी अद्यावधि अज्ञात है । 'बावनी' के तिरपनवें छप्पय में कवि के सम्बन्ध में मात्र निम्नांकित सूचना नाल्हिग बस सिनायू सुतन, अगरवाल कुल प्रगट रवि । बावन्नी वसुधा विस्तरी, कवि-कंकण छोहत्त कवि ॥ अर्थात् कवि-कंकण छोल नाहिंग वंश के अग्रवाल- कुल में उत्पन्न हुए थे। उनके पिता का नाम सिनाथू (शाह नाथू ? ) था। इस उद्धरण के प्रथम चरण के निम्नांकित पाठ-भेद भी प्राप्त होते हैं : क. नाल्लिंग बंस नाथू सुतन ख. नासि सिना सु ग. नाल्हि गांव नाथू सुतन नानिंग बंस नाथू सुतन घ. उपयुक्त पाठ भेद के आधार पर निम्नांकित निष्कर्ष निकाले जा सकते हैं : क. छोहल के वंश का नाम ख. छोहल के गाँव का नाम ग. छोहल के पिता का नाम , नागि (क), नातिग (ख) नानिग (च)। नाहि (ग) नालि । मिनाथू (ख), नाथू (क, ग, घ ) । इनमें कौन पाठ शुद्ध है, निर्णय करना दुष्कर है। समाहर करते हुए नाव इतना ही कहा जायेगा कि छीन नाग ( नातिग / अनूप ० ० एवं अभय० प्रति । लूणकरण प्रति । ठोलियान प्रति । शोध- प्रति । क. सूरपूर्व ब्रज भाषा मौर उसका साहित्य, पृष्ठ- १६९ ब. प्रपप्रम मौर हिन्दी में जैन रहस्यवाद, पृष्ठ- ६७ जैन साहित्यामुशीलन Jain Education International For Private & Personal Use Only १५६ www.jainelibrary.org
SR No.012045
Book TitleDeshbhushanji Aacharya Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorR C Gupta
PublisherDeshbhushanji Maharaj Trust
Publication Year1987
Total Pages1766
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size56 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy