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कवि ठक्कर' (रचना काल सं० १५७५ से १५६० तक) की 'नेमिराजमति वेलि'२ नामक एक हिन्दी राजस्थानी की रचना प्राप्त होती है। रचना लघु होते हुए भी भाषा एवं वर्णन शैला की दृष्टि से उत्तम है । वाचकमति शेखर (समय १६ वीं शताब्दो) ने 'नेमिनाथ बसन्त फुलड़ा फाग' (गाथा १०८) तथा नेमिगीत' नामक दो कृतियों की रचना की। लावण्य (जन्म सं० १५२१ मृत्यु सं. १५८६) ने 'नेमिनाथ हमचडी' की रचना सं० १५६२ में की थी। इसके अतिरिक्त 'रंग रत्नाकर नेमिनाथ प्रबन्ध' नामक एक अन्य रचना भी इनकी मिलतो है। ब्रह्म बूचराज (रचनाकाल सं० १५३० से १६०० तक) कृत 'नेमिनाथ वसेतु' तथा 'नेमोश्वर का बारहमासा' नामक दो हिन्दी रचनायें मिलती हैं। दोनों कृतियां सुन्दर हैं । ब्रह्म यशोधर (समय सं० १५२० से १५६० तक) ने नेमिनाथ पर 'नेमिनाथ गीत' नाम से तीन गीत लिखे हैं, किन्तु तीनों ही गीतों में अपनी-अपनी विशेषतायें है। इनकी काव्य शैली परिमार्जित है। इनमें से एक 'नेमिनाथ गीत' का रचना काल सं० १५८१ है ।
चतरूमल कवि' ने सं० १५७१ में 'नेमीश्वरगीत' की रचना की थी। यह एक छोटा-सा गीत है। इस गीत का संबंध भगवान् नेमीश्वर और राजुल के प्रसिद्ध कथानक से है । ब्रह्म जयसागर, भ. रत्नकीति के प्रमुख शिष्यों में से थे। इनका समय सं० १५८० से १६६५ तक का माना जाता है। इनकी 'नेमिनाथगीत' नामक एक महत्त्वपूर्ण रचना प्राप्य है।
ब्रह्म रायमल १७ वीं शती के विद्वान हैं। इनकी सं० १६१५ में रचित 'नेमिश्वर रास'नामक रचना प्राप्त है। यह गीतात्मक शैली में लिखी हुई है। सं० १६१५ में ही रचित ब्रह्म विनयदेव स रि को कृति 'नेमिनाथ विवाहली' (धवलढाल ४४) नामक एक अन्य रचना भी प्राप्त होती है । भट्टारक शुभचन्द्र भट्टारक विजयकीर्ति के शिष्य थे। ये स० १६१३ तक भट्टारक पद पर बने रहे थे। 'नेमिनाथ छन्द' नामक इनकी रचना मिली है। साधु कीर्ति के गुरुभ्राता कनकसोम (रचना काल वि० १७ वीं शती का पूर्वाद्ध) जो अच्छे कवि थे, की 'नेमिनाथ फाग' नामक एक रचना प्राप्त है। हर्षकीर्ति राजस्थान के जैन संत थे। ये आध्यात्मिक कवि थे। 'नेमि राजुल गीत' तथा 'नेमीश्वर गीत' नामक कृतियाँ इनकी आध्यात्मिक रचनायें हैं।
भट्टारक वीरचन्द्र प्रतिभासम्पन्न विद्वान् थे। ये भ० लक्ष्मीचन्द्र के शिष्य थे। इनका समय १७ वीं शती का उत्तरार्द्ध है। 'वीर विलास फाग' नामक खण्ड काव्य में तीर्थकर नेमिनाथ जी की जीवनघटना का वर्णन किया गया है। इसमें १३७ पद्य हैं। इसके अतिरिक्त 'नेमिकुमार रास' (रचना स. १६७३) नामक एक अन्य रचना नेमिनाथ जी की वैवाहिक घटना पर आधारित एक लघु कृति है। कवि मालदेव (रचना काल सं० १६६) कृत 'राजुल नेमि धमाल' (पद्य ६३) और 'नेमिनाथ नवभव रास' (पद्य २३०) नामक दो रचनायें प्राप्त हैं। कवि मालदेव आचार्य भावदेव सरि के शिष्य थे ।
भट्टारक रत्नीति (रचना काल सं० १६०० से १६५६ तक) भट्टारक अभयनन्दि के पट्ट शिष्य थे। इनकी 'नेमिनाथ फाम' नामक रचना जिसमें ५१ पद्य हैं, ने मोश्वर-राजुल के इसी प्रसिद्ध कथानक से संबंधित है। इन्हीं की 'नेमि बारहमासा' नामक एक और लघु कृति है, जिसमें १२ त्रोटक छन्द हैं। इसमें राजुल के विरह का वर्णन हुआ है। इनके अतिरिक्त उनके रचे ३८ पद भी इसी कथानक से संबंधित हैं।
कुमुद चन्द्र (रचनाकाल सं० १६४५ से १६८७ तक) भट्टारक रत्नकीति के शिष्य थे। ये अच्छे साहित्यकार थे। इनका 'नेमिजिन गीन' नेमीश्वर और राजुल के प्रसिद्ध कथानक से सम्बन्धित है । इसके अलावा 'नेमिनाथ बारहमासा' प्रणय गीत और 'हिण्डोलना गीत' भी उसी कथानक पर आधारित हैं, जिनमें राजुल का विरह मुखर हो उठा है । इसी कथानक पर ६७ पद्यों की इनकी 'नेमीश्वर हमर्ची' नामक एक और रचना मिलती है।
हेमविजय (उपस्थितिकाल सं. १६७०) विजयसेन सरि के शिष्य थे। ये हिन्दी के भो उत्तम कवि थे। 'नेमिनाथ के पद उनकी प्रौढ़ कवित्व-शक्ति को प्रकट करने में समर्थ है। उनके पदों में हृदय की गहरी अनुभूति है। पाण्डे रूपचन्द्र (रचना काल स'. १६८० से १६६४ तक) कृत 'नेमिनाथ रासा' एक सुन्दर कृति है । ये हिन्दी के एक सामर्थ्यवान कवि थे। उनकी भाषा का प्रसाद गण आनन्द उत्पन्न करता है, जो सीधे-सीधे भाव-ममं को रसविभार बना देता है। महिम सुन्दर ने भो सं० १६६५ में 'नेमिनाथ विहालो' नामक एक कृति की रचना की थी।
१. कवि ठक्कुर अपभ्रंश के एक अन्य कवि ठकुरसी से भिन्न हैं। २. 'वेलि' शब्द संस्कत के 'वल्ली' और प्राकृत के 'वेस्नि' से समुद्भूत हुपा है। यह वृआंगवाची है। जैनों का वेलिसाहित्य बहुत ही समृद्ध है। ३. कवि गढ़ गोपाचल का रहने वाला था। उस समय वहाँ मानसिंह तोमर का राज्य था।
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आचार्यरल श्री वेशभूषण जी महाराज अभिनन्दन अन्य
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