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________________ ग्रन्थ का प्रणयन किया। इस गौरवशाली ग्रन्थ में उन्हों ने जैन धर्म के इतिहास, भूगोल, दर्शन, भगवान महावीर स्वामी जी के जीवन के विविध पक्षों एवं दिगम्बरत्व पर जो सामग्री प्रस्तुत की है, वह उनकी अनवरत साधना एवं सिद्धि का प्रतिफल है। पूज्य आचार्यश्री ने अपने अनुभवी निर्देशन में जैन धर्म के इतिहास को भी दो खण्डों में प्रकाशित करवाकर विद्वत् समाज को अपूर्व शोध सामग्री सुलभ करा दी है। जनसामान्य की सुविधा के लिए आपने लाखों की संख्या में छोटी-छोटी पुस्तकें एवं अन्य प्रचार सामग्री प्रकाशित करवाकर वितरित करवायी थी। ___ आचार्यश्री इन दिनों सभी सम्प्रदायों की संयुक्त बैठक में सम्मिलित होते थे और अपने अनुभवी मार्ग-निर्देशन से सामाजिक कार्यकर्ताओं के मनोबल को ऊंचा किया करते थे। उन्होंने मंत्र रूप में समाज को यह प्रेरणा दी थी कि यह आयोजन वास्तव में राष्ट्रीय स्तर पर होते हुए भी एक पारिवारिक समारोह है । अतः समस्त जैन समाज को इस आयोजन को उत्साह से मनाना चाहिए। अनेक अवसरों पर तो यह प्रतीत होता था कि आचार्य महाराज का जन्म इसी प्रकार के महोत्सवों के लिए हुआ है। सत्य भी है, क्योंकि भगवान् महावीर स्वामी के २५०० वें परिनिर्वाण महोत्सव की रूपरेखा को निर्धारित करते हुए उनके लिए भी सिद्धालय के द्वार का मार्ग खुल गया है। इन तीन चातुर्मासों की अनेकानेक उपलब्धियों के सन्दर्भ में एक महत्त्वपूर्ण घटना का उल्लेख करना भी आवश्यक है जिससे दिगम्बरत्व के इतिहास में एक गौरवशाली अध्याय सदा-सदा के लिए जुड़ गया है। भगवान् महावीर स्वामी की पच्चीस सौ वी निर्वाण शताब्दी के सन्दर्भ में राष्ट्रीय समिति की बैठक का शिक्षा मन्त्रालय द्वार। संसद् भवन में आयोजन किया गया था। किन्हीं कारणों से प्रधानमन्त्री भवन को अवगत कराया गया कि आचार्यरत्न श्रो देशभूषण जी महाराज के दिगम्बर रूप में संसद् भवन पधारने पर कुछ सदस्यों की भावना के आहत होने की सम्भावना है । अतः निश्चित हुआ कि आचार्य रत्न जी बैठक में न पधारकर बाहर से ही दिगम्बर आचार्य के रूप में अपना आशीर्वाद भिजवाने की कृपा करें। आचार्यरत्न श्री देशभूषण जी महाराज ने इस प्रकार की मन्त्रणा को दिगम्बरत्व का अपमान समझा । सभी सम्प्रदायों के समर्थ सन्त भी वस्तुस्थिति से परिचित थे । आचार्यरत्न जी के प्रति उनका अगाध स्नेह था। आचार्य रत्न जी ने घोषणा कर दी कि भगवान् महावीर स्वामी दिगम्बर थे। अतः उनके परिनिर्वाण महोत्सव की राष्ट्रीय समिति में आमन्त्रित दिगम्बर प्रतिनिधि को रोकना सर्वथा अनुचित है। स्थिति गम्भीर रूप ले चुकी थी। श्वेताम्बर सम्प्रदाय के सन्तों ने माननीय उपशिक्षा मन्त्री का ध्यान इस ओर आकर्षित किया। वह भी प्रधानमन्त्री भवन के संदेश के सामने विवश थे, किन्तु उन्होंने श्वेताम्बर समाज के प्रतिनिधि मुनियों से श्री धवन की भेंट करा दी । तत्कालीन प्रधानमन्त्री उदारमना श्रीमती इन्दिरा गांधी को स्थिति से अवगत कराया गया और उन्होंने आचार्य महाराज के पधारने की सहर्ष स्वीकृति दे दी । परमपूज्य आचार्य रत्न श्री देशभूषण जी महाराज संसद् भवन में आयोजित बैठक में पधारे और अपनी धर्ममय मन्त्रणा से उन्होंने समाज एवं सरकार का मार्गदर्शन किया। ऐसे अवसर पर यदि आचार्यरत्न श्री देशभूषण जी दिल्ली मे नहीं होते और अपनी व्युत्पन्नमति से तत्काल क्रियाशील नहीं हो जाते तो वास्तव में दिगम्बरत्व पर एक ऐसा प्रहार होता जिसका निराकरण शायद सैकड़ों वर्षों में भी सम्भव नहीं हो पाता। इसीलिए भारतवर्ष का जैन समाज, विशेषतः दिल्ली का जैन समाज, उनका हृदय से आभारी है । उनकी शानदार रचनात्मक उपलब्धियों के प्रति नतमस्तक होना वास्तव में धर्म का ही अंग है। भगवान श्री महावीर स्वामी के २५००वें परिनिर्वाण महोत्सव की गरिमा को दृष्टिगत करते हुए समन जैन समाज को एक सर्वमान्य ध्वज की पावन छाया में एकत्र करना आवश्यक था। स्व० साहू श्री शान्तिप्रसाद जैन ने इस सम्बन्ध मे जैन धर्म के चारों सम्प्रदायों के प्रमुख आचार्यों एवं मुनियों से सम्पर्क स्थापित किया। इस अवसर पर आचार्यरत्न श्री देश भूषण जी ने एक प्रगतिशील सन्त के रूप में जैन समाज की एकता के लिए सर्वमान्य ध्वज एवं प्रतीक की आवश्यकता को लक्षित करते हुए समाज को पूर्वाग्रहों से मुक्त होने की प्रेरणा दी। अन्तत: आचार्यरत्न श्री देशभूषण जी, आचार्यश्री तुलसी जी महाराज, मुनिश्री यशोविजय जी, मुनिश्री विद्यानन्द जी, मुनिश्री सुशील कुमार जी इत्यादि के प्रयासों से पंचपरमेष्ठी के प्रतीक रूप में पांच रंगों का ध्वज एवं प्रतीक समस्त जैनधर्मानुयायियों द्वारा अपनाया गया । इस प्रस्तावित ध्वज एवं प्रतीक की भव्य योजना का विवरण वीर परिनिर्वाण' (अंक १, वर्ष १, जून १६७४) में इस प्रकार उल्लिखित है "जैन समाज के इस सर्वमान्य ध्वज में पांच रंगों को अपनाया गया है, जो पंच परमेष्ठी के प्रतीक हैं। ध्वज में सफेद रंग अर्हन्त, लाल रंग सिद्ध, पीला रंग आचार्य, हरा रंग उपाध्याय एवं नीला रंग (नेवी ब्ल्यू रंग) साधु का द्योतक है । ध्वज के इन पांच रंगों को पंच अणुव्रत एवं पंच महाव्रत के प्रतीक रूप में भी सफेद रंग अहिंसा, लाल रंग सत्य, पीला रंग अचौर्य, हरा रंग ब्रह्मचर्य तथा नीला रंग (नेवी ब्ल्यू रंग) अपरिग्रह का द्योतक माना जा सकता है । रंगों की यह संगति बहुत उपयुक्त जान पड़ती है । पंचपरमेष्ठी आचार्यरत्न श्री देशभूषण जी महाराज अभिनन्दन प्रन्य Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012045
Book TitleDeshbhushanji Aacharya Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorR C Gupta
PublisherDeshbhushanji Maharaj Trust
Publication Year1987
Total Pages1766
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size56 MB
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