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________________ हैं । अमारि घोषणा हो जाने पर कोई भी व्यक्ति किसी प्राणी का वध नहीं कर सकता था । उन दिनों मांस आदि की दुकानें भी बन्द कर दी जाती थीं । उपासकदशांग में वर्णित महाशतक श्रावक की कथा से ज्ञात होता है कि राजगिरि नगर में अमारि घोषणा हो जाने से रेवती को मांस मिलना बन्द हो गया था। एक कथा से ज्ञात होता है कि राजा सौदास ने अष्टाह्निका पर्व पर आठ दिन तक अमारि की घोषणा करायी थी ।' राजस्थान में मध्ययुग तक राज्य द्वारा ऐसी अमारि घोषणा किये जाने के उल्लेख मिलते हैं । उपदेशमाला में कहा गया है कि सारे संसार में अमारि घोषणा किये जाने का फल उस व्यक्ति को प्राप्त होता है जो किसी एक दुखी प्राणी को भी जिनवचन में प्रतिबोधित कर देता है। हिंसा के दुष्परिणाम जैन कथा - साहित्य ने प्राणि-बध को रोकने एवं दूसरे को न सताने की भावना को दृढ़ करने के लिए एक कार्य यह भी किया है कि हिंसक कार्यों में लिप्त व्यक्तियों को जन्म-जन्मान्तरों में मिलने वाले फल की सही तस्वीर खींची है। विपाकसूत्र की कथाएं बताती हैं कि अंडे के व्यापारी निम्नक, प्राणि-वध करने वाले छणिक कसाई एवं सूरदत्त मच्छीमार को अपने हिंसक कार्यों के द्वारा कितनी यातनाएं सहनी पड़ती हैं । बृहत्कल्पभाष्य आदि ग्रन्थों में हत्या करने वाले के लिए अनेक प्रकार की सजाएं दिये जाने का उल्लेख है । कर्मपरिणाम एवं सजा की कठोरता ने भी हिंसक भावना को क्रमशः कम करने में मदद की है। एक हिंसा दूसरी हिंसा को जन्म देती है। अतः वैर की लम्बी परम्परा विकसित हो जाती है । इस बात को कई प्राकृत कथाओं ने सोदाहरण स्पष्ट किया है। अभय से हृदय परिवर्तन यह प्राकृत की कुछ कथाएं अहिंसा के अभय तत्त्व को उजागर करती हैं। कितना ही भयंकर एवं क्रोधी हत्यारा क्यों न हो, उसकी स्थिति अधिक समय तक नहीं टिक सकती। उसके हृदय में भी किसी घटना विशेष द्वारा परिवर्तन लाया जा सकता है। मोग्गरपाणि अर्जुन की कथा बहुत प्रसिद्ध है। वह अपनी पत्नी के अपमान का बदला लेने के लिए प्रतिदिन पाँच पुरुष तथा एक स्त्री की हत्या करता था । उसके इस उत्पात के कारण लोगों का जीना मुश्किल हो गया था । किन्तु अहिंसा और अभय के पुजारी सुदर्शन साधक ने इस अर्जुन के हृदय को भी परिवर्तित कर उसे साधक बना दिया । अर्जुन क्षमा की मूर्ति बन गया। इसी तरह दृढप्रहारी की कथा भी बड़ी मार्मिक है। उसने क्रोध के कारण पति, पत्नी तथा उनकी गाय को तलवार के एक ही वार से समाप्त कर दिया । किन्तु गर्भवती गाय के तड़पते हुए बछड़े को देखकर दृढ़प्रहारी कांप उठा और हिंसा के चरम उत्कर्ष ने उसे अहिंसक बना दिया। वह प्रायश्चित्त के लिए साधु बन गया । अहिंसा का अर्थ केवल हिंसा से बचना ही नहीं है अपितु अहिंसा के अतिचारों से भी दूर रहना है। प्राकृत कथाओं में यह स्पष्ट हुआ है कि वध, बन्धन, छेदन, अतिभारारोपण एवं खान-पान-निरोध आदि क्रियाएं भी हिंसा के ही रूप हैं, इनसे बचकर ही अहिंसा का पालन हो सकता है। कहारयणकोश इनकी सुन्दर कथाएं दी हैं।" प्राणी-वध तो दुःख देने वाला है ही, किन्तु यदि किसी को कष्ट पहुंचाने एवं किसी के वध करने की बात मन में भी लायी जाय अथवा किन्हीं प्रतीकों के द्वारा वध की क्रिया पूरी कर ली जाय, तो भी अनेक जन्मों तक उसके दुष्परिणाम भोगने पड़ते हैं । कालक कसाई को ५०० भैंसों का वध करने के कारण तो कुएं में बन्दी बनाकर दुःख दिये गये, किन्तु वहां पर उसने अपने शरीर के मैल के १. तए णं रायगिहे नयरे अणदा कदाइ अमाघाएं घुट्ठयावि होत्या - अ० ८ उपासगदसाओ, अमाघायपदं । २. जैन कहानियां, भाग ७, कथा है ३. मज्झमिकानगरी का शिलालेख ३ (अ)सयलम्म वि जियलोए तेण इघोसिओ अमाघाओ । इक्कं पि जो दुहत्तं सत्तं बोहेदू जिणवयणे ।। २६८ ।। ४. विपाकसूत्र, प ५. (i) समराइच्चकहा का सांस्कृतिक अध्ययन डा० झिनकू यादव । (ii) हरिभद्र के प्राकृत कथा-साहित्य का आलोचनात्मक परिशीलन : डा० नेमिचन्द्र शास्त्री । (iii) कुवलयमाला कहा का सांस्कृतिक अध्ययन : डा० प्रेमसुमन जैन । ६. अन्तकृद्दशांग, अध्ययन ३, वर्ग ६ ७. जैन कहानियां, भाग २, कथा ३ ८. कहारयणकोस, भाग २, कथानक ३४, जैनकथामाला, भाग ३८, मधुकर मुनि । e. (i) यशस्तिलक का सांस्कृतिक अध्ययन : डा० गोकुलचन्द्र जैन । (ii) यशस्तिलक एंड इंडियन कल्चर डा० हिन्दकी । जैन साहित्यानुशीलन Jain Education International For Private & Personal Use Only ६५ www.jainelibrary.org
SR No.012045
Book TitleDeshbhushanji Aacharya Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorR C Gupta
PublisherDeshbhushanji Maharaj Trust
Publication Year1987
Total Pages1766
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size56 MB
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