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________________ भगवान महावीर का जीवन-चरित अहिंसा के स्वरूप को और अधिक गहरा बनाता है। उन्होंने सर्प या संगम देवता द्वारा निर्मित विषधर नाग पर सहजता से और निर्भयतापूर्वक विजय प्राप्त कर यह स्पष्ट कर दिया था कि शक्तिशाली व्यक्ति और प्राणी की भी हिंसात्मक आकृति टिकाऊ नहीं है, बनावटी है । अहिंसक चित्त निरन्तर विजयी रह सकता है।' महावीर अहिंसा के विस्तार के लिए उसके मूलभूत कारणों तक पहुंचे हैं। उनके जीवन की हर घटना दूसरे के अस्तित्व की रक्षा करते हुए एवं मन को न दुखाते हुए घटित होती है। सम्भवतः परिग्रह (अनावश्यक संग्रह) दूसरों को पीड़ा पहुंचाने में सबसे बड़ा कारण है। यही कारण है कि महावीर ने पांचवें व्रत अपरिग्रह को एक नई दिशा प्रदान की है। अनेकान्तवाद द्वारा उन्होंने मानसिक हिंसा को भी तिरोहित करने का प्रयत्न किया है और वीतरागता द्वारा वे आत्मिक अहिंसा के प्रतिष्ठापक बने हैं। हिंसा के विभिन्न रूप प्राकृत-कथा-साहित्य में युद्ध, प्राणी-वध एवं मनुष्य-हत्या आदि के अनेक प्रसंग प्राप्त होते हैं। इनको पढ़ते समय यह प्रश्न उठता है कि अहिंसक समाज द्वारा निर्मित इस साहित्य में हिंसा का इतना सूक्ष्म वर्णन क्यों और किसलिए है ? प्राकृत के प्राचीन आगम-ग्रन्थोंसुत्रकतांग आदि में मांस-विक्रय के विभिन्न उल्लेख हैं। विपाकसूत्र में अण्डे के व्यापार, मछली के व्यापार आदि की विस्तृत जानकारी दी गई है। आवश्यक चूणि, बृहतकल्पभाष्य, राजप्रश्नीय सूत्र आदि ग्रन्थों से पता चलता है कि ईर्ष्या, क्रोध, अपमान आदि के कारण माता पत्र की, पत्नी पति की, बहु सास की, मन्त्री राजा की हत्या करने में संकोच नहीं करते थे। प्राकृत कथाओं में वर्णित प्राणि-वध, मनुष्यहत्या, शिकार, युद्ध आदि के ये प्रसंग इस बात की सूचना देते हैं कि तीर्थंकरों ने जिस अहिंसा धर्म का प्रतिपादन किया है, उसे यदि यथार्थ रूप में नहीं समझा गया तो ये उपयुक्त परिणाम ही होने हैं। हिंसा और अहिंसा में अधिक दूरी नहीं है। सिक्के के दो पहलुओं के समान इनका अस्तित्व है। केवल व्यक्ति की भावना ही हिंसा और अहिंसा के बीच सीमा-रेखा खींचने में सक्षम है। अतः प्राकृत कथा-साहित्य में वणित हिंसात्मक वर्णनों की बहुलता इस बात की द्योतक है कि महावीर के बाद अहिंसक समाज सर्वव्यापी नहीं हुआ था। किन्तु उस अन्धकार में उसके हाथ में अहिंसा का दीपक अवश्य था जिसकी कुछ किरणें जैन साहित्य में यत्र-तत्र उपलब्ध होती हैं। अहिंसा के प्रकाश-स्तम्भ जैन कथा-साहित्य में सम्भवतः भरत-बाहुबली की कथा सर्वाधिक प्रभावकारी अहिंसक कथा है। भरत और बाहुबली के जीवनचरित से यह पहली बार पता चलता है कि युद्ध की भूमि में भी कोई अहिंसक संधि-प्रस्ताव हो सकता है। दोनों की सेनाओं में हजारों प्राणियों के वध के प्रति उत्पन्न करुणा इस कथा में साकार हो उठी है । दो राजाओं के व्यक्तिगत निपटारे के लिए लाखों व्यक्तियों के मरण के आंकड़ों से नहीं, अपितु व्यक्तिगत भावनाओं और शक्ति-परीक्षण से भी उनकी हार-जीत स्पष्ट की जा सकती है। दृष्टि-युद्ध, मल्लयुद्ध और जलयुद्ध का प्रस्ताव इस कथा में अहिंसा का प्रतीकात्मक घोषणा-पत्र है। नायाधम्भकहा की दो कथाएं अहिंसा के सम्बन्ध में बहुत प्यारी कथाएं हैं। मेघकुमार के पूर्वभव के जीवन के वर्णन-प्रसंग में मेरुप्रभ हाथी की कथा वणित है । यह हाथी आग से घिरे हुए जंगल में एकत्र छोटे-बड़े प्राणियों के बीच में खड़ा है। हर प्राणी सुरक्षित स्थान खोज रहा है। इस मेरुप्रभ हाथी ने जैसे ही खुजली के लिए अपना एक पैर उठाया कि उसके नीचे एक खरगोश का बच्चा छाया देखकर आकर बैठ गया । हाथी खुजली मिटाकर अपना पैर नीचे रखता है, किन्तु जब उसे पता चला कि एक छोटा प्राणी उसके पैर के संरक्षण में आ गया है तो उसकी रक्षा के लिए मेरुप्रभ हाथी अपना वह पैर उठाये ही रखता है और अंतत: तीन दिन-रात वैसे ही खड़ा रहकर वह स्वयं मृत्यु को प्राप्त हो जाता है, किन्तु वह उस छोटे-से प्राणी खरगोश तक धूप और आग की गर्मी नहीं पहुंचने देता। अहिंसा का इससे बड़ा उदाहरण और क्या होगा! इसी प्रकार ज्ञाताधर्म कथा में धर्मरुचि साधु की प्राणियों के प्रति अनुकम्पा का उत्कृष्ट उदाहरण है। यह कथा हिंसा और अहिंसा १. महावीरचरियं : नेमिचन्द्र सूरि ८,२२. २. भगवान् महावीर : एक अनुशीलन : देवेन्द्रमुनि । ३. सूत्रकृतांगसूत्र, २,६,६,२. ४. विपाकसूत्र ३, पृ० २२, ८ पृ० ४६. ५. जैन आगम-साहित्य में भारतीय समाज : डॉ. जगदीशचन्द्र जैन, पृ०५६-८४. ६. आदिपुराण : जिनसेन, ऋषभदेव-कथा। ७. तं ससयं अणुपविढं पास सि, पासित्ता पाणाणुकंपायाए 'से पाए अंतरा चैव संघारिए नो चेव णं निखिते—णायाधम्मकहा, प्र० स०१८३. जैन साहित्यानुशीलन ९३ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012045
Book TitleDeshbhushanji Aacharya Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorR C Gupta
PublisherDeshbhushanji Maharaj Trust
Publication Year1987
Total Pages1766
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size56 MB
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