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जैन धर्म तथा दर्शन के संदर्भ में उत्तरपुराण की राम कथा
भारत में वाल्मीकीय रामायण को जो लोकप्रियता एवं प्रसिद्धि मिली है वह सम्भवतः किसी अन्य ग्रन्थ को प्राप्त नहीं हुई । यह महान् ग्रन्थ अपने रचना-काल से लेकर आज तक देश के प्रत्येक क्षेत्र को प्रभावित करता रहा है। आदिकवि वाल्मीकि के पूर्व की रामकथाविषयक गाथाओं तथा आख्यान - काव्य की लोकप्रियता तथा व्यापकता को निर्धारित करना असम्भव है । बौद्ध त्रिपिटक में एक-दो रामकथा सम्बन्धी गाथाएं मिलती हैं और महाभारत के द्रोणपर्व तथा शान्तिपर्व में जो संक्षिप्त रामकथा पाई जाती है, वह प्राचीन गाथाओं पर ही समाश्रित है।' इस प्रकार सामग्री की अल्पता का ध्यान रखकर यह अनुमान दृढ़ हो जाता है कि जिस दिन वाल्मीकि ने इस प्राचीन गाथा साहित्य को एक ही कथासूत्र में ग्रथित कर आदि रामायण की रचना की थी, उसी दिन से रामकथा की दिग्विजय प्रारम्भ हुई। प्रचलित वाल्मीकीय रामायण के बालकाण्ड तथा उत्तरकाण्ड में इसका प्रमाण मिलता है कि काव्योपजीवी कुशीलव समस्त देश में जाकर चारों ओर आदिकाव्य का प्रचार करते थे । वाल्मीकि ने अपने शिष्यों को रामायण सिखलाकर उसे राजाओं, ऋषियों तथा जनसाधारण को सुनाने का आदेश दिया था।
वाल्मीकि ने रामायण में श्रीराम के गौरवशाली उदात्त चरित्र का ऐसा चित्रण किया है कि वह सबके लिए आकर्षक बन गया । फलतः रामकथा भारतीय साहित्य की सबसे अधिक लोकप्रिय कथा रही है। समाजशास्त्रीय दृष्टि से रामविषयक कथाएं शौर्यपूर्ण गाथा का वह प्रारंभिक रूप है, जिसके कारण परवर्ती महाकाव्यों को आधार मिला। चाहे वह ब्राह्मण हो अथवा जैन अथवा बौद्ध तीनों ही परम्पराओं में रामकथा का स्वतन्त्र रूप मिलता है। जो मूलतः तो एक है, किन्तु स्वरूपतः भिन्न है। राम धार्मिक दृष्टि से जितने लोकप्रिय हैं, उतने ही साहित्यिक दृष्टि से भी । इन्हें काव्य की प्रेरणाशक्ति माना गया है। मैथिलीशरण गुप्त ने ठीक ही कहा था
राम ! तुम्हारा वृत्त स्वयं ही काव्य है; कोई कवि बन जाय, सहज संभाव्य है । "
आदिरामायण के बाद यह कथा महाभारत में उपलब्ध है । महाभारत में रामकथा का चार स्थलों पर वर्णन उपलब्ध होता है। तदनन्तर यह कथा ब्रह्मपुराण, अग्निपुराण, वायुपुराण आदि ग्रन्थों में अल्पान्तर के साथ उपलब्ध है । इनके अतिरिक्त यह कथा विभिन्न विद्वानों की लेखनी से निकलकर आंशिक या पूर्ण रूप से समाज के सामने आई। इनकी अग्रलिखित कृतियां उल्लेखनीय हैं कालिदास कृत रघुवंश, भवभूति कृत उत्तररामचरित, तुलसी- कृत रामचरितमानस, केशव कृत रामचन्द्रिका एवं मैथिलीशरण गुप्त-कृत साकेत आदि ।
वाल्मीकीय रामायण के पश्चात् तो रामायणों की एक परम्परा ही चल पड़ी। अध्यात्मरामायण, आनन्दरामायण, काकभुशुण्डि रामायण आदि । रामायण की कथा ने इतनी लोकप्रियता प्राप्त की है कि देश की सीमाओं को लांघकर यह अनेक देशों में पहुंची और वहां के साहित्यकारों ने काल और देश की परिस्थिति के अनुरूप कथा- कलेवर देकर इसे विविध रूपों में चित्रित किया । इन्हीं के आधार पर खेतानी रामायण हिन्देशिया की प्राचीनतम रचना 'रामायण काकविन' जाया का आधुनिक 'सेरतराम' तथा हिन्दचीन, श्याम ब्रह्मदेश एवं तिब्बती तथा सिंहल आदि देशों में भी रामकथाएं लिखी गई हैं ।
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१. डॉ० कामिल बुल्के रामकथा, पृ० ७२१
२. तुलनीय, एम० विष्टरनिट्ज ए हिस्ट्री आफ इण्डियन लिट्रेचर, कलकत्ता १६२७, भाग-१, पृ० ४७६
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३. डा० रामाश्रय शर्मा : एसोशियो पोलिटिकल स्टडी आफ दि रामायण, दिल्ली १९७१, पृ० १
४. मैथिलीशरण गुप्त : साकेत, आमुख, साहित्य सदन, चिरगाँव (झांसी), २०१४
५. डॉ० कामिल बुल्के रामकथा, पृ० ४३
६. राजेन्द्रप्रसाद दीक्षित
जैन साहित्यानुशीलन
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श्रीमती वीणा कुमारी
उत्तरप्रदेश पत्रिका, लखनऊ १९७७ पू० ३३
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