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विमलसूरि के 'पउमचरियं' में सीता के दो पुत्रों के नाम लवण ( अथवा अनंग लवण ) तथा अंकुश ( अथवा मदनांकुश ) माने गये हैं ( पर्व ९७ ) । राम के चरित्र की सबसे बड़ी विशेषता उनके आचरण की सरलता और निष्कपटता है । परम जिन और जैन धर्म में उनकी अपार श्रद्धा है । जैन धर्म के अनुसार मुनियों के दर्शन लाभ और उन्हें आहार देने में राम की विशेष रुचि दिखाई गई है । विमलसूरि के राम और लक्ष्मण वनवास की अवधि में वंशस्थद्युति नगर में जाकर देशभूषण और कुलभूषण मुनियों के दर्शन करते हैं तथा उन पर अग्निप्रभदेव के द्वारा किये हुए उपसर्ग को दूर करते हैं। राम वंशगिरि के शिखरों पर सहस्रों जिन मन्दिरों का निर्माण करते हैं जिससे पर्वत का नाम वंशगिरि के स्थान पर रामगिरि हो जाता है । आगे चलकर वे सुगुप्ति और गुप्ति नामक दो मुनियों को आहार देकर पंचाश्चर्य की प्राप्ति करते हैं। गिद्ध पक्षी का पूर्वभव जानकर उसे 'जटायु' नाम देते हैं और रावण द्वारा आहत मरणासन्न जटायु को णमोकार मन्त्र सुनाकर मोक्षपथ-गामी बना देते हैं। राम और सुग्रीव की मैत्री - शपथ भी जिनालय में जिन धर्म के अनुसार होती है ।
राम की वन-यात्रा के सम्बन्ध में इन परिवर्तनों से स्पष्ट है कि जैन धर्म का प्रभाव बढ़ाने के लिए ही इन कवियों ने वाल्मीकि से
भिन्नता उत्पन्न की है।
पउमचरियं के अहिंसावादी राम कुम्भकर्ण को बन्दी बनाकर ( पर्व ६१) युद्धोपरान्त मुक्त कर देते हैं । इसी प्रकार इन्द्रजित को भी बन्दी बनाकर ( पर्व ६१ ) युद्ध के अन्त में मुक्त कर देते हैं ( पर्व ७५ ) । रामचरित कथा में ये परिवर्तन मुख्यतः दो कारणों से किये गए हैं
१. जनश्रुतियों का प्राधान्य, तथा
२. सकल समाज को ऋषभदेव की शिष्य-परम्परा में परिगणित करने का लक्ष्य ।
इसलिए आधिकारिक कथा में यत्र-तत्र जैन धर्म शिक्षा, जैन दर्शन, साधु धर्म, कर्म सिद्धान्त और पूर्वभव के वृत्तान्तों का विवेचन मिलता है। उदाहरणार्थ, बनवास में राम सीता को उन सभी वृक्षों का नामपूर्वक संकेत करते हैं जिनके नीचे तीर्थकरों को केवल ज्ञान प्राप्त हुआ था।"
जैन राम अहिंसक अवश्य हैं किन्तु भीरु नहीं । पउमचरियं के अनुसार राम तथा लक्ष्मण ने उन म्लेच्छों को हरा दिया था, जो जनक के राज्य पर आक्रमण करने की तैयारियां कर रहे थे ( पर्व २७ ) | बचपन से ही उनमें अपार शक्ति और पराक्रम है।' स्वयंभू के राम भी पवन की भांति थे जिन्होंने अग्निसदृश लक्ष्मण को साथ लेकर शत्रु सेना को ध्वस्त किया था। इसी प्रकार सीता स्वयंवर के अवसर पर एकत्र असंख्य अभिमानी राजाओं का मान-मर्दन प्रत्यञ्चा चढ़ाकर किया था । उन्होंने वनवास के घटना-संकुल जीवन में अनेक दुष्टों * का दलन और मान-मत्सर भंग किया था। अनेक सज्जनो का परित्राण भी परोपकारी राम ने किया था ।
किन्तु इन कवियों ने राम को देव रूप में नहीं, वरन् मानव रूप में चित्रित किया है। पम्प रामायण के राम भी उच्चस्तरीय जीव हैं। वे मानवीय गुणों और दुर्बलताओं से युक्त हैं। इसलिए सीता हरण के अवसर पर सामान्यतः बहुत शान्त, धीर-गंभीर दिखाई देने वाले राम के स्त्री-परायण हृदय का कोमल पक्ष उद्घाटित होता है। पउमचरियं के राम कुटिया में सीता को न पाकर मूच्छित हो जाते हैं । " पउमचरिउ में भी राम की ऐसी ही करुण स्थिति दर्शायी गई है।" लक्ष्मण के शक्ति लगने पर भी भ्रातृ-वियोग की आशंका उन्हें मूच्छित कर देती है । पुष्पदन्त के राम भी वनस्पति और वन्य जीवों से सीता के विषय में प्रश्न करते हुए विलाप करते हैं । " पउमचरियं ( पर्व ९२६४) के राम को, जनता से सीता की निन्दा सुनकर उसके चरित्र पर सन्देह हुआ और जिन मन्दिर दिखलाने के बहाने अपने सेनापति कृतान्तवदन से उन्हें भयानक वन में छुड़वा दिया। परवर्ती जैन साहित्य में— भद्रेश्वर की 'कहावली' (११ वी पा० ई०), हेमचन्द्र की जैन रामायण (१३ वीं श० ई०), देव विजयगणि की जैन रामायण (१९५६ ई० ) में सीता के त्याग का कारण सपत्नियों के अनुरोध पर
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१. विमलसूरि : पउमचरियं, ३२ / ४-५
२. उपरिवत् २१ / ५
३. स्वयंभू पउमचरिउ, २१/७
४. रुद्रभूति, कपिल ब्राह्मण, महीधर, अनंतवीर्य, अरिदमन, उत्पाती, यक्षादि, बिटसुग्रीव, राक्षसादि, (पउमचरिमं) ।
५. वज्रकर्ण, बालिखिल्य, मुनिवर्ग, जटायु, सुग्रीव, विराधित (पउमचरियं) ।
६. नागचन्द्र पम्प रामायण
७. विमलसूरि पर्व ४४
८. स्वयंभू, ३६/२/१
६. वही, ६७ / २
१०. महापुराण, ७३/४
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आचार्य रत्न श्री देशभूषण जी महाराज अभिनन्दन ग्रन्थ
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