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________________ तेलुगु में उत्तम काव्यों की रचना हुई होगी । आज उस साहित्य के उपलब्ध न होने के कारण का विवरण देते हुए उन्होंने लिखा है “मौर्य युग के पश्चात् आन्ध्र में बौद्ध एवं जैन धर्मों का उत्कर्ष हुआ। उस समय तेलुगु में जैन तथा बौद्ध साहित्य रचा गया। किन्तु धार्मिक विद्वेष के कारण वह सब जला दिया गया।" गुजराती काव्य के प्रथम चरण में भी जैनाचार्यों का विशिष्ट योग रहा है । डॉ० के० पी० पटेल ने अपने 'गुजराती काव्य साहित्य की संक्षिप्त रूपरेखा' शीर्षक निबन्ध में लिखा है कि, “१२५० से १६५० तक पुरानी गुजराती का प्रवाह बहता ही रहा । इसका यश जैन मुनियों को है। xxxxजैनों का सर्जन धर्मलमी रहा है। फिर भी उन्होंने तत्कालीन समाज का दर्शन कराया है। शालिभद्र कृत 'भरतेश्वर बाहुबलि रास' वीररस का प्रबन्ध काव्य है। 'जम्बुसामि चरित' और 'नेमिनाथ चतुष्पदिका' उस युग की विशेष उल्लेखनीय रचनाएं हैं । गुजराती भाषा में विनयचन्द्र का 'नेमिनाथ चतुष्पादिका' सबसे पहला ऋतु काव्य है। इन कवियों ने अपनी रचनाओं में धर्मयुक्त सांसारिक चित्र, शृंगारिक वर्णन, प्राकृतिक दृश्यों का वर्णन किया है। अनेकों ने 'रासो' लिखे हैं और कई ने ज्ञान, नीति एवं वैराग्य के मान रचे हैं । जैन मुनियों ने गुजराती के साहित्य प्रवाह की धारा अखंड रूप से बहाई।" जैन धर्म के प्रथमानुयोग के साहित्य में वेसठ शलाका पुरुषों की कथा का विवेचन मिलता है-२४ तीर्थकर, १२ चक्रवर्ती, १ बलभद्र, ६ वासुदेव और ६ प्रति वासुदेव । मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान् राम की गणना बलभद्र में की जाती है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार बलभद्र ऊर्ध्वगामी होते हैं और मोक्ष जाते हैं। भगवान राम के दिव्य गुणों का स्मरण करके राष्ट्रकवि मैथिलीशरण गुप्त ने सहज रूप से कहा था राम तुम्हारा चरित स्वयं ही काव्य है। कोई कवि बन जाए सहज सम्भाव्य है !! महाकवि मैथिलीशरण गुप्त द्वारा व्यक्त की गई इस भावना को जैन साहित्यकारों ने शताब्दियों पूर्व सार्थक कर दिया था। धारहवीं शती के कन्नड कवि नागचन्द्र (अभिनव पम्प) ने एक पद्य में कहा है नायक नन्यनागे कृति विश्रतभागदुदात्त राघवं नायकनागे विश्रुतमनेघुदु विस्मय कारियलतु का। लायसदि विनिर्मिसिद कठिके कांचनमालेयंतुपा देय मेनिक्कुमे विषयमोघ दोड़ाबुदुमोप्पला'म ।। अर्थात् नायक यदि दूसरा हो तो कृति विश्रुत नहीं होगी, यदि राघव नायक हों तो विश्रुत होगी। लोहे की कंठी कांचनमाला बनेगी। विषय उत्तम हो तो कृति भी उत्तम होगी। राष्ट्रीय चेतना के प्रतीक भगवान राम के आदर्शों के प्रति श्रद्धा समर्पित करने की भावना से जैन पुराणकारों ने संस्कृत, प्राकृत, अपभ्रंश, कन्नड आदि भाषाओं में महाकाव्य, महापुराण एवं चरिउ का प्रणयन किया है। श्री विमलसूरि कृत प्राकृत 'पउमचरिउ' ११८ अधिकारों में विभक्त है जिनमें कुल मिलाकर ८६५१ गाथाएं हैं जिनका मान १२ हजार श्लोक प्रमाण है। आचार्य रविषेण कृत संस्कृत 'पद्मपुराण' में १२३ पर्व हैं जिनमें अनुष्टुप मान १८०२३ श्लोक हैं । स्वयंभू कृत अपनश 'पउमचरिउ' में १२ हजार ग्रन्थान हैं, जो १२६६ कडवकों, ६० सन्धियों और पांच कांडों में विभाजित हैं। जैन रामकथा की विशेषता उसके चरित्रों के मानवीय चित्रण में है। इन कवियों ने रामायण के उपेक्षित अथवा अप्रसिद्ध पात्रों के चरित्र-चित्रण में भी सहृदयता दिखाई है। जैन रामायण में प्रतिपक्ष के प्रधान योद्धा रावण के चरित्र के साथ न्याय करते हुए उसकी राक्षसवृत्ति की प्रचलित मान्यता का खण्डन किया गया है। इन कवियों की दृष्टि में रावण एक महत्त्वपूर्ण पात्र है और उसमें अनेक विशिष्ट गुण हैं। इस दृष्टि से उनके द्वारा रावण के लिए प्रयुक्त विशेषण-'आदित्यमण्डलोपमदर्शन', 'कोऽपि महान् नर', 'साधूनां प्रणतः', 'प्रणतेषु दयाशील', 'सम्यग्दर्शनभावितः' आदि अवलोकनीय हैं । जैन रामकथा के वैविध्यपूर्ण विवरण से भारतीय रामकथा का साहित्य निश्चित रूप से प्रभावित हुआ है। प्रसिद्ध आलोचक डॉ० नामवर सिंह ने जैन कवि स्वयंभू के 'पउमचरिउ' के संबंध में रोचक जानकारी देते हुए राष्ट्रकवि मैथिलीशरण गुप्त अभिनन्दन ग्रंथ के अन्तर्गत 'अपभ्रंश का राम-साहित्य' शीर्षक लेख में लिखा है "हिन्दी रामकथा के अध्येताओं के लिए विशेष रूप से स्वयंभू की रामायण में पर्याप्त सामग्री मिल सकती है। जो लोग रामकथा की केवल ब्राह्मण-परंपरा तथा उस परंपरा में भी केवल एक टुकड़े से परिचित हैं, वे यदि अपभ्रंश की जैन रामकथा से परिचय प्राप्त करें, तो उनकी आंख खुल जायेंगी और आंखों के सामने पौराणिक आख्यानों के क्रमिक निर्माण की सारी प्रक्रिया तथा उसके पीछे काम करने वाली प्रवृत्तियों का सम्पूर्ण चित्र स्पष्ट हो जायेगा।" जैन साहित्यानुशीलन Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012045
Book TitleDeshbhushanji Aacharya Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorR C Gupta
PublisherDeshbhushanji Maharaj Trust
Publication Year1987
Total Pages1766
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size56 MB
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