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आचार्य श्री जयकीति जी महाराज एक अनुपम साधक थे। कठोर तपस्या एवं ज्ञानाराधना उनके जीवन के अभिन्न अंग थे। उनके संघ के त्यागी भी व्रत-उपवास एवं कठिन साधना में विश्वास रखते थे। इसी कारण पूज्य श्री जयकीति जी के संघ के प्रभाव क्षेत्र में आने वाले धर्मप्राण श्रावकों के मन में संयम एवं त्याग के भाव स्वयमेव जागृत हो जाते थे। संघस्थ त्यागीवृन्द से बालगौड़ा को यह ज्ञात हुआ कि परमपूज्य आचार्य श्री जयकीति जी महाराज संघ सहित परमपावन सिद्धक्षेत्र श्री सम्मेदशिखर जी की वन्दना के निमित्त शीघ्र ही प्रस्थान करने वाले हैं। उन्होंने पूज्य गुरुदेव से निवेदन किया कि वह भी संघ के साथ महान् पर्वतराज की वन्दना के लिए जाना चाहते हैं। आचार्य श्री की स्वीकृति पाकर बालगौड़ा धन्य हो गए 1 वे बड़े उत्साह और श्रद्धा के साथ संघ के साथ चलने की तैयारी के लिए अपने घर आए । परिवार वालों ने अब यह अनुभव किया कि बालगौड़ा का शीघ्र ही विवाह कर देना चाहिए अन्यथा यह बालक विरक्त साधु बन जाएगा । फलस्वरूप निकट परिचित एवं परिवार जनों ने इनसे विवाह करने का अनुरोध किया। किन्त बालगौड़ा ने स्पष्ट कह दिया कि वे श्री सम्मेदशिखर जी से वापिस आने पर ही इस प्रस्ताव पर विचार करेंगे। संघ की सविधा को दृष्टिगत करते हुए उन्होंने दो वाहन एवं मार्ग में काम आने वाली अन्य आवश्यक सामग्री की व्यवस्था कर ली। उनके निकटवर्ती ग्राम के समवयस्क श्री कुलभूषण जी भी इस यात्रा में उनके सहयोगी बन गए ।
आचार्य श्री जयकीति जी के संघ में पांच मुनि एवं दस त्यागी थे । श्रावक के रूप में श्री देशभूषण जी एवं कुलभूषण जी पर संघ की प्रबन्ध-व्यवस्था का भार था । आचार्य श्री ने शुभ मुहूर्त में संघ सहित श्री सम्मेदशिखर जी की ओर प्रस्थान कर दिया। मार्ग में इन दोनों श्रावकों ने अहनिश तन, मन, धन से संघ की सेवा की। मार्ग में श्री देशभूषण जी ने आचार्य श्री जयकीति जी की धर्मप्रभावना के अनेक अद्भुत दृश्यों का अवलोकन किया । अमरावती में कुछ धर्मद्वेषी व्यक्तियों ने संघ पर बड़ा उपसर्ग किया। आत्मस्थ श्री जयकीति जी एवं संघस्थ त्यागियों ने उपसर्ग के समय मौन व्रत का संकल्प लेकर शान्तिपूर्वक उपसर्गों को सहा । दूसरे दिन संघ ने अमरावती से बिहार कर दिया। बिहार के पश्चात् संघस्थ साधुओं को ज्ञात हुआ कि उपसर्ग करने वाले महानुभाव नेत्रहीन हो गए हैं। ऐसे अवसरों पर श्री देशभूषण जी को धर्म के वास्तविक स्परूप को समझने में विशेष सहायता मिली और उन्हें अनुभव हुआ कि सत्साधना के मार्ग में आने वाले विघ्न स्वयं ही दूर हो जाते हैं और पापी को कर्मों का फल मिलता है।
आचार्य श्री जयकीति जी महाराज एवं अन्य त्यागी एक दिन के अन्तराल से पर्वतराज की वन्दना के लिए जाते थे। कलभषण और बालगौड़ा दोनों मिलकर त्यागीवन्द के लिए चौका लगाते थे और कम से इन दोनों में से एक आचार्य श्री के साथ वन्दना हेत जाया करता था। एक दिन बालगौड़ा ने यात्रा से लौटते हुए पांचों मुनियों का एक साथ पड़गाहन किया और उन सबको श्रद्धा एवं भक्तिपर्वक आहार दिया। इस असाधारण आहारदान के समय बालगौड़ा के सरल मन में मुनि बनने का भाव जागृत हो गया। दसरे दिन बालगौडा आचार्य श्री के साथ विश्ववन्दनीय सिद्धक्षेत्र की पूजा-अर्चना एवं वन्दना के निमित्त भक्ति-भाव से गये। पर्वतराज पर . बालगौडा ने श्री गौतम गणधर की पादुका को नमन करने के पश्चात् आचार्य श्री के साथ धर्मयात्रा की। उन्होंने ज्ञानधर कूट, मित्रधर । कुट, नाटक कूट, संबल कूट, संकुलित कूट, सुप्रभा कूट, मोहन कूर, निर्जर कूट, ललित कूट, सिद्धवर कूट, विद्युत कट, स्वयम्भू कट, धवल • कट, सूवीर कुट, आनन्द कूट, दत्तवर कूट, अविचल कूट, सुप्रभास कुट, प्रभास कूट, विपुल कूट, प्रतिभजन कूट, सिद्धवर कूट, प्रकाश कूट,
एवं परभव कुट के भक्तिपूर्वक दर्शन किए और श्री सम्मेद शिखर जी से मोक्ष जाने वाले बीस तीर्थंकरों, श्री कैलाश पर्वत श्री मन्दारगिरि, श्री गिरिनार जी एव श्री पावापुर जी से मुक्त होने वाले शेष चार तीर्थंकरों एवं सिद्धक्षेत्र श्री सम्मेद शिखर जी से सिद्धावस्था प्राप्त करने वाले अनन्तानन्त मुनियों को भक्ति सहित साष्टांग प्रणाम किया ।
भगवान् श्री पार्श्वनाथ के मुक्ति स्थान परभव कूट पर वैराग्यानुभूतियों से अभिभूत होकर बालगौड़ा (श्री देशभूषण) ने ' आचार्य श्री जयकीर्ति जी महाराज के पावन चरण स्पर्श करके यह प्रार्थना की कि "भगवन् ! मरे भाव संसार को छोड़ने के हो रहेको अब आप मुझे मुनि दीक्षा से अनुगहीत करके अपने चरणों में शरण दीजिये।" आवाई जयकीति जी बालगडा की मनस्थिति एवं वैराग्य भाव से परिचित थे। उन्होंने बालगौड़ा को स्नेह से देखा और कहा कि "अभी तुम छटवों प्रतिमा के वन ले लो और धीरे-धीरे त्याग का अभ्यास बढ़ाओ।" उन्होंने गुरु के चरण स्पर्श करके टवी प्रतिमा 41 -र्गा प्रतिमा, वन प्रतिमा सामायिक प्रतिमा, 'प्रोषधोपवास, सचित्त त्याग एव दिवाभुक्ति के नियमों का अङ्गीकार कर ना। निपान बन गम्थ के सदाचार की ये सोपाने : मुनिव्रत धारण करने का लक्ष्य रखने वाले महापुरुष ही अङ्गीकार कर सकते हैं।
बालगौडा का मन अब मंमार से विवन न
पान को
पनी सचाकनाओं पर
* कालजयी व्यक्तित्व
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