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________________ स्त्रीप्रत्यय पूज्यपाद देवनन्दी ने जैनेन्द्र-व्याकरण के तृतीय अध्याय के प्रथम पाद के आरम्भिक सुत्रों में स्त्रीप्रत्ययों का निर्देश किया है।' जैनेन्द्र-व्याकरण के अन्य कुछ सूत्रों में भी 'स्त्रीप्रत्ययान्त' शब्द बनाने के नियम उपलब्ध होते हैं। अष्टाध्यायी में पुल्लिग से स्त्रीलिंग शब्द बनाने के लिए टाप्', डाप', चाप्', डीप', ङीष् , डीन्, ऊ एव ति"प्रत्ययों का ही शान किया गया है। चान्द्र-व्याकरण में प्रयुक्त स्त्रीप्रत्यय चाप्", डाप्" डीप्", ङीष्", ऊड " एव ति" हैं। संक्षेप की दृष्टि से पूज्यपाद देवनन्दी ने अष्टाध्यायी की अपेक्षा जैनेन्द्र-व्याकरण के स्त्री-प्रत्ययों में कमी की है। उनके द्वारा प्रयुक्त स्त्री-प्रत्यय छः हैं आपण टाप, डा, डी, ऊ" तथा ति । अष्टाध्यायी के ङीप्, ङीष्, डीन एव' चान्द्र व्याकरण के डीप एव डीष स्त्रीप्रत्यय कोदष्टि से भिन्न हैं । उपयुक्त व्याकरण-ग्रन्थों में प्, एवन् अनुबन्धों का स्वर संबंधी नियमों के कारण ही प्रयोग किया गया है। वर प्रकरण से संबंधित नियमों का अभाव होने के कारण ही पूज्यपाद देवनन्दी ने अनुबन्ध-रहित डी प्रत्यय का प्रयोग किया है। गिनिने 'पति' शब्द के इकार के स्थान पर 'न' आदेश करके एवं 'डीप्' प्रत्यय के योग से यज्ञ के विषय में 'पत्नी' शब्द की रचना की है। पाणिनि के अनुसार 'पत्नी' शब्द यज्ञ के प्रसंग में ही बनता है। बाद-व्याकरण में वह धातु से वत एवं टाप् प्रत्यय के योग से निष्पन्न ऊढा (विधिवत विवाहित) शब्द के अर्थ में पत्नी शब्द का निर्माण किया गया है।" १. जै० व्या०३/१/३-६६. २. वही, ४/२/१३२, ४/४/१३६-१४०, ५/२-५०.५३. ३. मजाद्यतष्टाप, मष्टा०४/१/४. ४. साबुभाम्यामन्यतरस्याम्, वही, ४/१/१३. ५. यश्चाप, बही. ४/१/७४. ६. ऋन्नेभ्योङीप, वही, ४/१/५. ७. प्रन्यतो डीए, वही, ४/१/४०. ८. शाडगरवाचमो हीन , वही, २/१/७३. अडतः, वही, ४/१/६६. युनस्तिः , वही, ४/१/७७. ११. याचाप्; चा० व्या० २/३/८०. १२. ताभ्यां गप्, वही २/३/१४, १३. नो डीप, वही, २/३/२. १४. पितो डीए, वही, २/३/३६. १५. ऊङ् उत:, वही, २/२/७५. १६. यूनस्तिः , वही, २/३/८१. १७. पावट्यात्, जै० व्या० ३/१/५. १८. मजायतष्टाप्, वही ३/१/४. १६. मनो आप च, वही ३/१/६ २०. उगिदन्नान्डी, वही, ३/१/६. २१. ऊरुतः, वही, ३/१/५६.. २२. यूनस्तिः , वही, ३/१/६२. २३. पत्युनों यज्ञसंयोगे, मष्टा० ४/१/३३. २४. पत्युन ऊठायाम्, चा० व्या० २/३/३०. १५२ आचार्यरत्न श्री देशभूषण जी महाराज अभिनन्दन अन्य Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012045
Book TitleDeshbhushanji Aacharya Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorR C Gupta
PublisherDeshbhushanji Maharaj Trust
Publication Year1987
Total Pages1766
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size56 MB
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