SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 1006
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ अन्तर्गत उन धातुओं का निर्देश है जो कि केवल चुरादिगण की ही धातुएँ हैं। इस वर्ग की धातुओं का परस्मैपदी' आत्मनेपदी' एवं उभयपदी में विभाजन किया गया है। द्वितीय वर्ग में वे धातुएँ निर्दिष्ट हैं जो विकल्प से चुरादिगण की धातुएँ हैं। इन धातुओं का भी परस्मैपदी, आत्मनेपदी तथा उभयपदी" की दृष्टि से विभाजन किया गया है। संक्षिप्तता, स्पष्टता तथा मौलिकता की दृष्टि से जैनेन्द्र धातुपाठ में कुछ धातुओं के अर्थों को अष्टाध्यायी के धातुपाठ में निर्दिष्ट धात्वर्थों से किञ्चिद् भिन्न रूप में प्रस्तुत किया गया है । संक्षिप्तता के उद्देश्य से अष्टाध्यायी के धातुपाठ में विद्यमान धात्वर्थों के स्थान पर जैनेन्द्र धातुपाठ में संक्षिप्त पर्यायवाची शब्दों को रखा गया है । उदाहरणत :-अष्टाध्यायी के धातुपाठ में निर्दिष्ट वदनैकदेश', अवगमने रक्षण तथा संशब्दने" शब्दों के लिए जैनेन्द्र-धातुपाठ में क्रमशः मुखैकदेशे १२, बोधने', गुप्ति तथा आख्याने ५ शब्दों का प्रयोग किया गया है। अष्टाध्यायी के धातुपाठ में स्त्रीलिंग में निर्दिष्ट धात्वर्थों का जैनेन्द्र-व्याकरण के धातुपाठ में कहीं-कहीं पर पुल्लिग में निर्देश किया गया है। उदाहरण के लिए अष्टाध्यायी के धातुपाठ में उल्लिखित ज्ञीप्सायाम् ६, हिंसायाम्" तथा कुत्सायाम " शब्दों के स्थान पर जैनेन्द्र-धातुपाठ में क्रमशः ज्ञीप्सने", हिंसने एवं कुत्सने शब्दों का प्रयोग किया गया है । ऐसा प्रतीत होता है कि जैनेन्द्र-धातुपाठ में उपर्युक्त धात्वर्थों का निर्देश संक्षिप्तता को दृष्टि में रखते हुए ही किया गया है। कहीं-कहीं पर जैनेन्द्र-धातुपाठ में अष्टाध्यायी के धात्वर्थों को अपेक्षाकृत अधिक स्पष्ट किया गया है। उदाहरण के लिए अष्टाध्यायी के धातुपाठ में दिए गए “शब्दे तारे"२२ धात्वर्थ के स्थान पर जैनेन्द्र-धातुपाठ में "उच्चैः शब्दे"२३ धात्वर्थ का निर्देश स्पष्टता की दृष्टि से महत्त्वपूर्ण है। जैनेन्द्र-धातुपाठ में धात्वर्थों को प्रस्तुत करने में "ति" से अन्त होने वाले शब्दों का अनेक स्थानों पर प्रयोग किया गया है। उदाहरणस्वरूप अष्टाध्यायी के धातुपाठ में निर्दिष्ट दर्शने", आदाने५ तथा विलेखने६ धात्वर्थों के स्थान पर जनेन्द्र-धातुपाठ में क्रमशः दृष्टौ", गृहीतो एवं विलिखितौ धात्वर्थों का निर्देश किया गया है। १. वही, पृ०५०२-५०४ (१-२६३ तक की धातुए) २. वही, पृ०५०५, (२६४-३११ तक की धातुएं). ३. वही, पृ० ५०५, (३१२ वीं धातु). वही, पृ० ५०५, (३१३-३५१ तक की धातुए) ५. वही, पृ० ५०५, (३१३-३४२ तक की धातुएँ). ६. वही, पृ० ५०५, (३४३-३४८ तक की धातुए) ७. वही, पृ०५०५, (३४६-३५१ तक की धातुए) गडि वदन कदेशे, पा० धा०, १/२५३. ६. बुध प्रवगमने, वही, १/५६७. १०. गुपू रक्षणे, वही, १/२८०. ११. कृत संशब्दने, वही, १०/१०१ १२. गडि मुखैकदेशे, जै० म० वृ०, पृ. ४६४. १३. बुधञ बोधन, वही, पृ० ४६२. १४. गुपोङ गुप्तो, वही, प. ४६०. १५. कृत पाख्याने, वही, पृ०५०३. १६. प्रछ जीप्सायाम, पा० धा०६/११७. १७. रुश रिस हिंसायाम्, वही, ६/१२४. १८. णिदि कुत्सायाम्, बही, १/५४. प्रच्छो शीप्सने, जै० म० ३०, पृ० ५००. २०. रुशो, रिशो हिंसने, वही. २१. णिदि क रसने, वही, पृ० ४६३. २२. कुच शब्दे तारे,पा० धा०, १/११५. २३. कुच उच्च: शन्दे, जै० म०३०४६३. ईक्ष दर्श मे, पा० धा०, १/४०३. २५. कवक पादाने, वही, १/७३. २६. कृष बिलेखने, वही, १/७१७. २७. ईक्ष दृष्टो, ज०म० वृ०, पृ० ४६१. २८. कै. के गृहीतो, वही. पृ. ४८६. २६. कृषी बिलिखितो, वही, प.० ४६६. १६. १४० आचार्यरत्न भी देशभूषण जी महाराज अभिनन्दन ग्रन्थ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012045
Book TitleDeshbhushanji Aacharya Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorR C Gupta
PublisherDeshbhushanji Maharaj Trust
Publication Year1987
Total Pages1766
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size56 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy