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. संस्मरण
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काकासा की विनम्रता
। श्री हीरालाल गांधी 'निर्मल' (ब्यावर) जब भी मैं राणावास जाता हूँ, काका साहब श्रीमान् और मेरी ओर देखकर सोचने लगे। मैंने पुनः कहाकेसरीमलजी सुराणा के दर्शन अवश्य करता हैं। मुझे आप उसी तरह आशीर्वाद दें जैसे मेरे पिताजी कहा उनके जीवन में महात्मा गांधी की झलक दिखाई देती करते थे-जीते रहो, फलो-फूलो, सुखी रहो आदि । है-वही धोती, वही सादा जीवन, वही सरलता, वही सदा गम्भीर रहने वाले काका साहब मुस्कराकर दृढ़ता, एवं स्नेहपूर्ण व्यवहार । मुझे उनके दर्शन कर साधु- मेरी ओर देखने लगे । मुझे उनकी मुस्कराहट में स्वीकृति सन्तों जैसी आत्म-शक्ति का अनुभव होता है।
की झलक दिखाई दी। दूसरे दिन मैं फिर काका साहब एक बार मुझे वहाँ कुछ दिन रहना पड़ा । मैं सायं- से मिला। काल श्री अखिल भारतीय जैन महिला शिक्षण संघ के काका साहब प्रणाम-मैंने कहा । कार्यालय में उनके दर्शन हेतु गया। नत-मस्तक हो मैंने "प्रणाम'-काका साहब का उत्तर था। काका साहब को कहा-"प्रणाम"
मुझे झटका-सा लगा, क्योंकि मैं इस आशा में था प्रत्युत्तर में काका साहब बोले-"प्रणाम"
कि आज वे आशीर्वाद के वचन अवश्य कहेंगे। मैं उनकी काका साहब के सामने मैं उनके पुत्र के बराबर था। ओर एकटक देखने लगा। काका साहब को भी इसका काका साहब के मुख से अनेकों बार 'प्रणाम' का प्रत्युत्तर आभास हुआ। वे मेरी ओर देखकर मुस्करा दिये । उनकी 'प्रणाम' सुन-सुनकर मैं पूरी तरह तृप्त हो चुका था। आँखें तथा मुस्कान यह स्पष्ट कह रहे थे कि क्या
आपने वचन मनना चाहता था। करूं प्रणाम के उत्तर में प्रणाम कहना मेरा स्वभाव बन आखिर हिम्मत कर मैंने कह ही दिया-"आप हमेशा चुका है। प्रणाम का उत्तर प्रणाम से देते हैं, मैं आपसे आशीर्वाद - जब मैंने मेरी पत्नी श्रीमती स्वरूप जैन, जो कि वहाँ लेने को आता है। मेरी यह आकांक्षा पूरी नहीं होती। गहमाता एवं अध्यापिका के रूप में कार्यरत थी, से कहा आपके मुंह से 'प्रणाम' सुनकर मैं स्वयं लज्जा का अनुभव तो उन्होंने भी कहा कि उनके साथ भी यही होता है । करता है कि पिता द्वारा पुत्र को प्रणाम कैसे ? ....पुत्र तब से मैं उनके प्रणाम शब्द को आशीर्वाद-वचन के तब क्या करे और क्या कहे ?"
रूप में ग्रहण करता हूँ। वे अपने हाथ के पत्रों को देखते हुए तनिक रुके ऐसी है-काका साहब की विनम्रता !
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साक्षात् राजा मोहजीत
- साध्वी श्री कंचनकुमारीजी (लाडनू) एक बार श्रावक केसरीमलजी किसी कार्यवश बम्बई हुआ। अन्तिम समय में बहन सुन्दरबाई अपने भाई गये। अचानक तार द्वारा अनुज भाई की मृत्यु का केसरीमलजी के गोड़े पर सिर रखकर लेटी हुई थी। संवाद प्राप्त हुआ । तत्काल भाई की स्मृति में चौले की भाई केसरीमलजी अपनी बहन को धर्माराधना करा रहे तपस्या पचक्ख ली । आकस्मिक निधन पर संवेदन न करना, थे। निकट में विराजित मुनिश्री से प्रार्थना कर मंगल
आँखों से आंसू न बहाना सचमुच ही आत ध्यान व रौद्र पाठ सुनाया। महामन्त्र नवकार का पाठ सुनाते-सुनाते ध्यान की ग्रन्थियों पर विजय पाना है ।
बहन का स्वर्गवास हो गया। एक अनहोनी, अकल्पित दुसरा प्रसंग है आपकी प्रिय भगिनी की जुदाई का। हृदय को कचोटने वाली इस घटना पर उनकी आँखों से प्रिय बहन सुन्दरबाई राणावास में अचानक बीमार हो एक आँसू तक नहीं निकला। रोना-पीटना बन्द करा गयी। उपचार भी बहुत किया गया पर कोई असर नहीं दिया गया। रस्म को अदा करने गली-मुहल्ले की बहन
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