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महान साहित्यकार तथा प्रतिभाशाली श्रीमज्जयाचार्य
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अभिव्यक्ति का माध्यम है। गीत में मुखरित भावों की चित्रोपमता व्यक्ति को सहज और ग्राह्य बना देती है। इसलिए आपने गीत का सहारा लिया। 'शिक्षक की चोपाई' संघ को सुव्यवस्थित बनाने के लिए है । आचार्य को समयसमय पर अपने शिष्यों को सजग करना आवश्यक होता है। इस कृति में ऐसी ही सुन्दर शिक्षाओं का संकलन है। इसमें खोड़ीलो प्रकृति और चोखी प्रकृति यानी सुविनीत और अविनीत का बड़ा ही रोचक और स्पष्ट वर्णन है। इसी प्रकार गुरु-शिष्य का संवाद आदि अनेक पाठनीय सामग्री हैं। इसमें २६ ढालें, ३३ दोहे, समग्र पद्य ६६० हैं । "आराधना" यह ग्रन्थ वैराग्य रस से ओत-प्रोत है। साधक को अन्तिम अवस्था में सुनाने से ये पद्य संजीवनी बूटी का-सा काम करते हैं। भाव-पक्ष और शैली-पक्ष-काव्य कसौटी के दो आधार माने गये हैं । इस ग्रन्थ में दोनों ही पक्ष पूर्णतया पाये जाते हैं। जीवन की सम्पूर्ण सक्रियता के पीछे गीतों की प्रेरणा बड़ी रोचक रही है। इसमें दस द्वार हैंआलोयणा द्वार, दुरकृत निन्दा, सुकृत अनुमोदना, भावना, नमस्कार मन्त्र जाप आदि-आदि । "उपदेश रत्न कथा कोष" इसमें करीब १०८ विषय हैं। प्रत्येक विषय पर कथाएँ, दोहे, सोरठे, गीत आदि विषय के अनुसार व्याख्यान का मसाला बड़े अच्छे ढंग से संकलित किया गया है। वर्तमान में जैसे मुनि धनराजजी प्रथम ने 'वक्तृत्व कला के बीज" रूप में तैयार किया है।
____ संविधान-“गणविशुद्धिकरण हाजिरी' (गद्यमय) तेरापंथ प्रणेता स्वामीजी ने संघ की नींव को मजबूत बनाने के लिए विभिन्न मर्यादाएँ बनायीं। उनका ही आपने क्लासिफिकेशन कर उसका नामकरण "गणविशुद्धिकरणहाजिरी" कर दिया। वे २८ हैं। प्रत्येक हाजिरी शिक्षा और मर्यादा से ओत-प्रोत है। संघ में रहते हुए साधुसाध्वियों को कैसे रहना, संघ और संघपति के साथ कैसा व्यवहार होना, अनुशासन के महत्त्व को आंकना, संघ का वफादार होकर रहना आदि बहुत ही सुन्दर शिक्षाएँ दी गयी हैं। सामुदायिक जीवन की रहस्यपूर्ण प्रक्रियाओं का परिचायक ग्रन्थ है। बड़ी मर्यादा, छोटी मर्यादा तथा लिखता री जोड़-ये तीनों ही कृतियाँ मर्यादाओं पर विशेष प्रकाश डालती है। तेरापंथ धर्मसंघ की प्रगति का श्रेय इन्हीं विधानों और महान् प्रतिभाशाली आचार्यों को है। जिनके संकेत मात्र से सारा संघ इस भौतिक वातावरण में भी सुव्यवस्थित एवं सुन्दर ढंग से चल रहा है। "परम्परा रा बोल" परम्परा रा बोल (गोचरी सम्बन्धी) तथा 'परम्परा री जोड़' इनमें ठाणांग, निशीथ तथा भगवती आदि आदि सूत्रों को साक्षी देकर संयमियों को कैसे संयम निर्वाह करना विधि-विधानों का उल्लेख किया है। इस प्रकार धर्म संघ को प्राणवान् बनाये रखने के लिए जयाचार्य ने विपुल साहित्य का निर्माण किया। सम्पूर्ण जानकारी के लिए देखिए "जयाचार्य की कृतियाँ : एक परिचय" पुस्तिका लेखक मुनि श्री मधुकरजी।
इसमें भी विहंगम दृष्टि से ही दिया है । समग्र ग्रन्थों का परिचय तो साहित्य के गहन अध्ययन से ही पाया जा सकता है। सचमुच आप जन्मजात साहित्यकार थे, आपको किसी ने बनाया नहीं । साहित्य भी ऐसा-वैसा नहीं बल्कि अत्यन्त अन्वेषणापूर्वक मौलिक साहित्य लिखा है । संगीत की पीयूष मयी धारा जगह-जगह लालित्यपूर्ण ढंग से प्रवाहित हुई है। कवि का अनुभूतिमय चित्रण साहित्य में बोल रहा है । आपकी महत्वपूर्ण कृतियाँ काव्य जगत् की अत्यधिक आस्थावान आधार बनेंगी। राजस्थान में आज जो पीड़ी राजस्थानी काव्य का प्रतिनिधित्व कर रही है उसमें जयाचार्य का काव्य शीर्षस्थ पंक्ति में होगा। राजस्थानी भाषा का माहिर ही आपके साहित्य से अनूठे रत्न निकाल पायेगा । आपका साहित्य कबीर, मीरा आदि किसी से कम नहीं है। अभी तक आपका साहित्य प्रकाशित नहीं हो पाया है। जब सारा साहित्य प्रकाशित होगा, तब ही जनता आपकी बहुमुखी प्रतिभा से भली भांति परिचित हो पायेगी।
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