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अभयसोमसुन्दरकृत विक्रम चौबोली चउपि
॥चऊपई ढाल ।। जंबू दिपै भरत विशाल । मालव देसे सदा सुगाल ॥ उजेणि नगरी गुण भरी। गढ मठ मंदिर देउल करी ॥१॥ सात्त भूमि प्रासाद उत्तंग । तोरण मंडप सोहै संग ॥ ठामों ठामै शत्रुकार । अन्न पानं जिहां दै दै कार ॥२॥ च्यारे करण वसै तिणि पुरै। पवन छत्रीस वस बहु परै ॥ राजा विक्रम वंस पमार । वंस छत्री सौ उपरी सार ॥ ३ ॥ राअ रीति पाले राजान । न्यायै राम तणे उपमान ॥ सकल सौभागी बह गुण निलों। सूरवीर उपगारी भलो ॥ ४ ॥ पृथ्वी उरण किधि तिणे । पर दुखिया दुख भांज्या तिणे ॥ एक दिवसीमन चितई राति । जोउ केहवी माहरी बति ॥ ५॥ साम वेस पहरियो निज अंग । कांधै खडग ऊछरंग ।। पोहर राति गइ जै त लई । राइ चाल्यों जोवा ते तल ॥ ६॥ कालि रात ने काला वस्त्र । कालि पाघ ने काला सस्त्र ॥ एणे वेसे राजा फिरें। वीर वीर ना लक्षण धरे ॥ ७ ॥ चउकी चोहटें गलि ए गलि । बात करें जब बैठा रलि ।। लोक वचन सांभली जस भलौ। प्याग त्याग न्याइ गुण निलो ॥८॥ जोवे कोतिग बहिर जई। चौर चरड दांणव कुण भई॥ गुफा विवरें वांडी ठाम । नदि नाल गिर सूनां धाम ||६|| मडे मसाणे विषमा घाट । जोई चाल्यो सुधि बाट । फिरतां षेद थयो राजान । लेईवि सांमो एकणि थान ॥१०॥ छांया अंब तणि मनिषंति । फलियो फूल्यो बहू लिभंति ॥ ऊपरि बईठी सुवटा जोड़ि। रंगे बात करें मनकोड़ि ॥ ११ ॥ माणस भाषा बोलें बोल । अमृत वांणि साकरि तौल ॥ कहे सूडो सांभलि बालही । पुरष रतन सोभा सवि कहि ॥ १२ ॥ सूडी कहे जो बारी कन्हें । तो सोभा सगलि जगि मन्हें । सूडो कहे ईम वषांण नारि । त्रिबोलि पुरषां आधारि ॥ १३ ॥ कामणि कूड कपट कोथलि । छांडि कुटंब जाई एकली ।। पुरुष करें विमासी जोई । पुरुष समो नवि पूजे कोई ॥१४॥ नर मत वषांणो सूडि कहें। नेह पर्षे कूडो निरबहे ॥ नल राजा दवदंति छांडि । गयो सूति मूकि उजाड़ि॥ १५ ॥ मांहो मांहे करें इम वाद । सूडी बोलें सरले साद ॥ पुरष भला जो होवों सही । लीलावई इमही कांइ रही ॥ १६ ॥ कुण लिलावे सूडो कहे । कुण से कुण ठांमे रहे। बात कहो तेहनि विगताइ । सुण्यां बिना किम आवे दाइ ॥ १७ ॥
॥हा॥ दिषण देसें त्रीय राज छे, कनकपुरि अभिराम । राज करई लीलावति, सारई उत्तम काम ॥१॥
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