SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 938
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ राजस्थानी काव्य परम्परा में सुदर्शन चरित ५७१ ............................................................. ...... डेली चढती डिग-डिग करे, चढ जाये डूंगर असमान । घर माहे बैठी डरे करे, राते जाए मसाण ।। देख बिलाइ ओजके, सिंह ने सन्मुख जाय । सांप ओसीसे दे सुवे, स ऊन्दर सूं भिड़काय ॥ कोयल मोर तणी परे, बोलेज मीठा बोल । भिंतर कड़वी कटकसी, बाहिर करे किलोल ॥ खिण रोवे खिण में हँसे, खिण दाता खिण सूम ।। धर्म करतां धुंकल करे, ए सी नार अलाम । बाँदर ज्यू नचावे निज कंतने, जाणक असल गुलाम ॥ नारी में काजल कोटड़ी, बेहूँ एकज रंग। काजल अंग कालो करे, नारी करे शील भंग ।। नारी ऐ बन बेलड़ी, बेहूँ एक स्वभाव । कंटक रुख कुशील नर, ताहि विलम्बे आय ॥ विरची बाघण स्यूं बुरी, अस्त्री अनर्थ मूल । पापकरी पोते भरे, अंग उपावे सूल ।। मोर तणी पर मोहनी, बोले मीठा बोल । पिण साप सपूछो ही गिल, आले नर ने भोल ।। पुरुष पोत कपड़ा जिसौ, निर्गुण नितनवी भांत । नारी कातर बस पाड्यो, काटत है दिनरात ॥ बाघण बुरी बन मांहिली, बिलगी पकड़े खाय । ज्यूं नारी बाघण बस पड्यो, नर न्हासी किहां जाय ॥ फाटा कानां री जोगणी, तीन लोक में खाय । जीवत चूंटे कालजो, मूंआ नरक ले जाय ॥ नारी लखणां नाहरी, करे निजरनी चोट । केयक संत जन उबऱ्या, दया-धर्म नी ओट ॥ त्रिया मदन तलावड़ी, डूबो बहु संसार । केइक उत्तम उगरया, सद्गुरु वचन संभार ।। + + + जिम जलोक जल मांहिली, तिण नारी पिण जाण । उवा लागी लोही पीवे, नारी पिए निज प्राण ॥ राता कपड़ा पहरने, काठा बांध्या माथा रा केश । हस्यां महन्दी लगायनें, नारी ठगियो देश । लोक कहे ग्रह बारमों, लागां हणे कहे प्राण । आ न्हाखे नरक सातमी लगे, नारी नव-ग्रह जाण ॥ कुसती का यह वर्णन अत्यन्त रोचक बन पड़ा है। उन्होंने इस धरातल पर जो कुछ देखा, परखा, अनुभव किया, उसे ही सहज शब्दों में लोगों के समक्ष प्रस्तुत किया। यही कारण है कि उनके निरूपणक्रम में एक वैशिष्ट्य रहा, वह संघटन रहा, जिसमें उनका काव्य तत्क्षण लोकमानस के अन्तःस्तल तक अपनी भाव-संपदा पहुँचा सका। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012044
Book TitleKesarimalji Surana Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathmal Tatia, Dev Kothari
PublisherKesarimalji Surana Abhinandan Granth Prakashan Samiti
Publication Year1982
Total Pages1294
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size34 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy