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________________ ३० कर्मयोगी श्री केसरीमलजी सुराणा अभिनन्दन ग्रन्थ : प्रथम खण्ड तुरन्त वापस चलना ही ठीक है। श्री सुराणाजी की बात कटारियाजी भी घबराये, डाक्टर को लाए। डाक्टर ने कब्ज सुनकर श्री कटारियाजी ने निवेदन किया कि अच्छा, बताया। एनिमा आदि दिया । ज्यों-त्यों बड़ी मुश्किल से आप राणावास पधारें पर मुझे तो यहाँ से मद्रास जाने रात निकाली। दूसरे दिन सुबह कार में जोधपुर ले की स्वीकृति दिरावें । अब आया हूँ तो कुछ न कुछ काम गये । वहाँ तत्काल डाक्टर ने उन्हें अस्पताल में दाखिल तो मैं करके ही लौटूगा । श्री सुराणाजी ने कहा पहले कर लिया। हालत बड़ी नाजुक थी । ग्लूकोज दिया । खून आप मुझे राणावास पहुंचा दीजिए यदि मद्रास का कार्य देने की भी जरूरत पड़ी। उनकी पत्नी ने मना कियाकरना है तो राणावास से पुनः आ जाना। श्री सुराणाजी तुम कमजोर हो, खून मत देना फिर भी श्री कटारियाजी ने ऐसा शायद किसी पूर्वाभास के आधार पर कहा होगा। अपना खून देने को तैयार थे किन्तु खून का नम्बर खैर, तीन दिन पश्चात ही श्री कटारियाजी ने भी श्री नहीं मिला । अन्य जगह से प्रबन्ध हुआ। सभी तरह के सुराणाजी के साथ राणावास के लिए प्रस्थान किया। प्रयत्न किये गये पर विधाता को कुछ और ही मंजूर चैत्र शुक्ला ६ को जोजावर पहुँचे । मार्ग में फुलाद पर था। रात्रि में ११.३० बजे श्री कटारियाजी की धर्मपत्नी स्वयं श्री सुराणाजी ने श्री कटारियाजी से कहा कि आज परलोक सिधार चुकी थीं। जोधपुर से मृत शरीर को राणावास चलकर भोजन आपके यहाँ करेंगे। यह सुनकर रात्रि में ३ बजे राणावास लाया गया। सुबह दाह संस्कार श्री कटारियाजी ने अपने भाग्य को सराहा और कहा कि हुआ । श्री कटारियाजी की मनोदशा बिल्कुल भिन्न थी। यह तो मुझ पर बहुत बड़ी कृपा होगी। कार सीधी श्री एक ओर जहाँ वे पत्नीशोक में मग्न थे, वहीं दूसरी ओर कटारियाजी के घर पर जाकर रुकी। पहले श्री सुराणाजी वे श्री सुराणाजी के प्रति अत्यन्त आभार मान रहे थे। ने कटारियाजी के घर में प्रवेश किया और अन्दर जाकर उनके कहने से ही वे तीन दिन पश्चात ही हैदराबाद से उनकी धर्मपत्नी से कहा कि आज मैं भोजन आपके यहाँ पुनः लौट आये थे, अन्यथा वे तो एक माह का कार्यक्रम करूंगा । बारह बजे वापस आऊँगा। आप भोजन तैयार लेकर गये थे। मरने से पहले पत्नी से मिल तो सके । रखें। कटारियाजी की श्रीमतीजी भी बहुत प्रसन्न हुई उसको बीमारी में सम्भाल तो सके । अन्यथा यह वियोग और बहुत उल्लासपूर्वक श्री सुराणाजी के लिए भोजन जीवन भर खलता। श्री सुराणाजी के कहने से वे लौटे बनाने के कार्य में जुट गई । ठीक समय पर भोजन तैयार और लौटकर पत्नी से मिल पाये, इस बात ने श्री कटाहो गया। इधर श्री सुराणाजी भी ठीक बारह बजे पधार रियाजी के मन में श्री सुराणाजी के प्रति अगाध श्रद्धा गये । साथ में श्री दयालसिंहजी गहलोत, श्री ताराचन्दजी उत्पन्न कर दी। वे अब श्री सुराणाजी के पक्के भक्त बन लूकड़, श्री चौथमलजी कटारिया आदि भी थे। सभी चुके थे। उन्हें तो बस श्री सुराणाजी के एक इशारे की लोगों ने श्री कटारियाजी के यहाँ भोजन किया। शाम जरूरत थी। उनके मन में श्री सुराणाजी के प्रति अगाध को अचानक श्री कटारियाजी की श्रीमती जी की तबियत श्रद्धा उत्पन्न हो गयी। धीरे-धीरे उन्होंने श्री सुराणाजी के खराब हो गयी। जब श्री कटारियाजी घर में आये तो जीवन से बहुत कुछ सीखा। अपने जीवन में त्याग, उनकी पत्नी कुछ खिन्न होकर बोली कि मैं तो मरी जा रही तपस्या और व्रतों को अपनाया। आज श्री कटारियाजी हैं और आप बाहर कहाँ थे? श्री कटारियाजी ने कहा कोई बहुत ही सात्त्विक, एवं समाज-सेवी बन गये हैं। यह सब गोली ले लो ठीक हो जाओगी। इस पर उनकी पत्नी ने उत्तर श्री सुराणाजी के ही व्यक्तित्व का असर है । व्यक्ति निर्माण दिया, अब मैं बचने की नहीं हूँ मेरा काल आ गया है । श्री का ऐसा उदाहरण अन्यत्र दुर्लभ है । 00 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012044
Book TitleKesarimalji Surana Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathmal Tatia, Dev Kothari
PublisherKesarimalji Surana Abhinandan Granth Prakashan Samiti
Publication Year1982
Total Pages1294
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size34 MB
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