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कर्मयोगी श्री केसरीमलजी सुराणा अभिनन्दन ग्रन्थ : पंचम खण्ड
हैं
- हिन्दी टीकाकार पंडित जयचन्दजी छावड़ा ने हिन्दी गद्य के उन्होंने १५ से अधिक विशाल गद्य रचनाएँ हिन्दी साहित्य को दी १. स्वार्थसूत्र वचनका वि० सं० २०५० ३. प्रमेयत्नमाला वचनिका सिं० २०६२ ५. द्रव्यसंग्रह वचनिका वि० सं० १८६३
भण्डार को अपनी प्रौढ़ लेखनी से भरपूर भरा है। । जिनमें कतिपय महत्त्वपूर्ण रचनाओं के नाम हैं२. सर्वसिद्धि वचनका वि० सं० २०६२ ४. स्वामी कार्तिकेयानुप्रेक्षा भाषा वि सं १८६३ ६. समयसार वचनिका वि० सं १८६४
७. देवागम स्तोत्र (आप्तमीमांसा) वि० सं० २०६६ ६. ज्ञानार्णव वचनिका वि सं १८६६ ११. पदसंग्रह
१३. पत्र परीक्षा वचनिका
१५. धन्यकुमारचरित वचनिका
८. अष्टपाहुड वचनिका दि ० १८६७ १०. भक्तामर स्तोत्र वचनिका वि० सं० १८७० १२. सामायिक पाठ वचनिका
१४. चन्द्रप्रभ चरित द्वि० सर्ग
'सर्वार्थसिद्धि वचनिका' प्रशस्ति में उन्होंने अपना परिचय इस प्रकार दिया है
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काल अनादि भ्रमत संसार, पायो नरभव में सुखकार । जन्म फागई लयो सुथनि, मोतीराम पिता के आनि ।। ११ ।। पायो नाम तहां जयचन्द, यह परजायतणू मकरन्द | द्रव्यदृष्टि में देखूं जबै मेरा नाम आतमा कबे ॥ १२ ॥ गोव छावड़ा आवक धर्म, जामें भी किया शुभ कर्म । ग्यारह वर्ष अवस्था भई तब जिन मारग की सुधि लई ॥ १३ ॥ आ इष्ट को ध्यान अयोगि, अपने इष्ट चलन शुभजोगि । यहां जो मंदिर जिनराज, तेरापंथ पंच तहां साज ।। १४ ।। देव धर्म गुरु सरधा कथा, होय जहां जन तब मो मन उमग्यो तहां चलो, जो अपनो करनो है भलो ।। १५ ।। जाव तहां श्रद्धा हद करी, मिथ्या बुद्धि सबै परिहरी
भाशे यथा ।
निमित्त पाय जयपुर में आय, बड़ी जु सैली देखी भाय ।। १६ ।। पंडित बहुते मिले।
गुणी लोक साधर्मी भले, ज्ञानी पहले थे वंशीधर नाम, धरै प्रभाव शुभ ठाम ॥ १७ ॥ टोडरमल पंडित मति खरी, गोम्मटसार वचनका करी । ताकी महिमा सब जन कर वा पढे बुद्धि विस्तरं ।। १८ ।। दौलतराम गुणी अधिकाय, पंडितराय राग में जाय । ताकी बुद्धि लसै सब खरी, तीन पुराण वचनिका करी ।। १६ ।। रायमल्ल त्यागी गृहवास, महाराम व्रतशील निवास । मैं हूँ इनकी संगति ठानि बुद्धितणु जिनवाणी जानि ॥ २० ॥
उक्त कथनानुसार उनका जन्म जयपुर के पास "फागी"" कस्बा में मोतीरामजी छावड़ा के यहाँ हुआ था । ग्यारह वर्ष की अवस्था में उन्हें आध्यात्मिक रुचि जागृत हुई । तेरापंथी मन्दिर में होने वाली तत्त्वचर्चा में शामिल होने लगे ।
कुछ समय बाद कारणवश जयपुर आना हुआ और यहां उन्होंने बहुत बड़ी सैली देखी यहाँ बड़े-बड़े ज्ञानी पंडित गुणीजन प्राप्त हुए। वंशीधरजी पहले हो चुके थे । वर्तमान में बहुचर्चित व प्रशंसित गोम्मटसार की वचनिका
१. फागीग्राम जयपुर से ४५ किलोमीटर की दूरी पर डिग्गी-मालपुरा रोड पर स्थित है।
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