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संस्मरण
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८. तमाचा भी : चन्दा भी
सारे समाज का काम है । सारे देश का काम है । हम कोई
साधु-सन्त तो हैं नहीं। आखिर जिस समाज में हम रहते एक बार की बात है आप अर्थ-संग्रह के लिए दक्षिण
हैं उसके लिए भी तो हमें सोचना होगा। यदि साधु के के दौरे पर थे। मद्रास में एक धनी एवं सम्भ्रान्त व्यक्ति
दृष्टिकोण से ही सोचें तो स्वामीजी ने कब कहा था तुम्हें की दुकान पर पधारे। दुकानदार दुकान पर नहीं था।
मकान बनाने के लिए? स्वामीजी ने कब तुम्हें ब्याह करने पूछताछ से पता लगा कि वह कहीं होटल पर नाश्ते के
की सलाह दी थी? क्या स्वामीजी ने ही तुम्हें सांसारिक लिए गया हुआ था। बुलाने के लिए भेजा गया। जब
दल-दल में फंसने की सलाह दी थी? काका साहब की उसे पता लगा कि श्री सुराणाजी आये हुए हैं । चन्दा लेने
बातों के आगे वह व्यक्ति अब निरुत्तर था। नतमस्तक के लिए आये हैं। वह आग-बबूला हो उठा। वहीं से गाली-गलौज करता हुआ अपनी दुकान की ओर बढ़ा।
होकर काका साहब के चरणों में गिर पड़ा। फूट-फूटकर
रोने लगा। अपने किये हुए पर बहुत पछता रहा था । बहुत होटल से दुकान तक के रास्ते में उसने अनेक हल्के शब्दों का प्रयोग श्री सुराणाजी के लिए किया । वह दुकान पर
अनुनय-विनय की क्षमा करने के लिए। काका साहब ने पहुँचा । पहुँचते ही उसने श्री सुराणाजी के मुंह पर एक
उसे गले लगा लिया और कहा-भाई ! यह तुम्हारा दोष
नहीं है। तुमने जिस समय यह कार्य किया उस समय तमाचा मार दिया । किसी के घर संस्था के चंदे पर जाना और फिर आव-भगत में यदि कोई तमाचा मार दे
तुम्हारा आदमी सोया हुआ था। तुम में शैतान निवास कर तो कोन व्यक्ति धैर्य रख सकता है ? ऐसा सामाजिक
रहा था । पर वह व्यक्ति अपने किये का कोई प्रायश्चित्त कार्य कौन करेगा ? श्री सुराणाजी ने यह सब धैर्यपूर्वक
नहीं खोज पा रहा था। उसने काका साहब से हाथ जोड़सहन किया। यह सब देखकर श्री सुराणाजी के साथ वाले
कर अपना चन्दा स्वीकार करने के लिए अत्यन्त प्रार्थना लोग भी हक्के-बक्के रह गये। उनसे यह बात सहन नहीं
की। जब काका साहब ने यह देखा कि अब यह व्यक्ति हो सकी। साथ वाले भी अच्छे सामाजिक कार्यकर्ता थे
बदल चुका है । चन्दा स्वीकार नहीं किया तो यह व्यक्ति पर इस प्रकार के दुस्साहस की यह पहली घटना थी।
आत्म-ग्लानि में कुछ भी कर सकता है। अतः ऐसी स्थिति प्रमुख रूप से श्री जसवंतमलजी सेठिया (समाजसेवी) व '
में उसका चन्दा स्वीकार कर लेना ही श्रेयस्कर समझा। श्री जुगराजजी सेठिया साथ में थे। जैसे ही दुकानदार ने
ऐसी ही एक घटना एक अन्य शहर की और है जहाँ श्री सुराणाजी की ओर हाथ बढ़ाया, इन दोनों सज्जनों
पर काका साहब को इसी प्रकार से तिरस्कार व अपमान को बहुत गुस्सा आया और वे तुरन्त उस व्यक्ति को अच्छा
सहन करना पड़ा। परन्तु काका साहब ने संस्था के काम खासा सबक सिखाना चाहते थे। परन्तु श्री सुराणाजी
में अपने को कभी तिरस्कृत नहीं समझा। यह तो सम्पूर्ण ने उनको रोका और मौन रहने को कहा। लेकिन वह
मानव जाति का कार्य है। निष्ठुर व्यक्ति फिर भी गाली-गलौज करता ही गया । यहाँ ६. डाकू भी परास्त हो गये तक कि परम पूज्य गुरुदेव आचार्यश्री तुलसी के बारे में संवत् २०१२ का चातुर्मास ! साध्वी श्री आशाजी न मालूम क्या-क्या कह दिया । श्री सुराणाजी को जो बातें आदि ठाणा ६ विराज रहे थे। एक दिन अचानक सम्पूर्ण उसने कहीं वे अत्यन्त घटिया किस्म की थीं। उसने कहा राणावास स्टेशन बस्ती पर सन्नाटा छा गया। सभी लोग यह सब पाखण्ड है, क्यों पापाचार करते हो? जैनधर्म भयभीत हो उठे। स्वयं काका साहब केसरीमलजी सुराणा में आडम्बर का कहाँ स्थान है ? क्या इससे कर्म नहीं भी सभी को हक्का-बक्का देखकर अवाक् रह गये। यह बँधते ? जैनधर्म चन्दा एकत्रित करने के लिए कहता है क्या ? सभी मौन ! चेहरे सभी के चिन्ता में डूबे हुए। क्या? आदि-आदि; न मालूम कितने ही प्रश्नों की झड़ी उसने इतने में आपकी धर्मपत्नी श्रीमती सुन्दरबाई सुराणा ने लगा दी। काका साहब श्री सुराणाजी यह सब सुनते रहे, आकर हॉफते-हांफते बताया कि गजब हो गया। अब क्या पर एक शब्द भी नहीं बोले । जब थोड़ी देर बाद देखा होगा? स्टेशन पर चौदह डाकू आये हैं । अब क्या होगा? कि अब इसका गुस्सा कुछ कम हुआ है तो उसे बड़ी लूट मचायेंगे। काका साहब ने कहा कि घबराने की विनम्रता से समझाने लगे-अरे भाई ! जरा सोचो, हम आवश्यकता नहीं। तुम स्कूल चली जाओ और मैं सामाकोई अपने लिए तो इकट्ठा नहीं कर रहे हैं। यह तो यिक लेकर बैठ जाता हूँ । श्रीमती सुन्दरबाईजी ने
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