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कर्मयोग
कर्मयोगी श्री केसरीमलजी सुराणा अभिनन्दन ग्रन्थ : प्रथम खण्ड
श्री सुराणाजी ने बड़े आश्चर्य के साथ पूछा, यह क्या लगभग उतना हो राशि से एक भवन बनवाकर समाज को भाई ? बीड़ी की चुस्की लेते हुए नवपरिचित ने कहा- समर्पित कर दिया। उस समय में ऐसा क्रान्तिकारी कदम अरे तुम यह भी नहीं जानते ? ससुराल जा रहे हो। उठा लेना कोई कम बात नहीं थी। यह उनकी प्रगतिजमाई बनकर जा रहे हो। धूम्रपान तो जमाई के लिए शीलता का ही परिचायक है। बहुत जरूरी बात है। यह तो चार व्यक्तियों के बीच में
४. पशु-बलि बन्द करवा दी बैठकर अपनी शान जमाने की एक रामबाण औषधि है।
बात बहुत पुरानी है । हैदराबाद में हर वर्ष प्लेग का श्री सुराणाजी नवपरिचित की बातों से फिसल गये और
प्रकोप रहता था। उन्हीं दिनों वहाँ पर एक स्थानकवासी उसके साथ उसी क्षण धूम्रपान करने लग गये। धूम्रपान
खद्दरधारी सन्त विराज रहे थे । उनका नाम था मुनि श्री श्री सुराणाजी को भी बहुत अच्छा लगा। उन्हें यह महसूस ।
गणेशमलजी । हैदराबाद में बुलारम क्षेत्र में देवी माता होने लगा कि उन्होंने कोई नयी उपलब्धि हासिल कर ली
के कई मन्दिर हैं। देवी माता के मन्दिरों पर पूजा के है। अपने आप में फूले नहीं समा रहे थे । ससुराल पहुंचे।
लिए काफी मात्रा में नरबलि व पशुबलि होती थी । ससुराल में ठाट-बाट के साथ आपका स्वागत हुआ।
मुनिश्री गणेशमलजी ने फरमाया कि यदि यह नरबलि व स्नानादि करके भोजन किया। रात्रि में शयनकक्ष में प्रवेश
पशुबलि बन्द हो जाय तो प्लेग नहीं आयेगा। अपने गुरु करते ही अपनी नवविवाहिता पत्नी से कहा कि यह धूम्र
के निर्दिष्ट के अनुसार वहाँ के श्रावकों ने बहुत पानलशाका जला दो। श्रीमती सुन्दरबाई ने मना कर
प्रयास किये लेकिन नरबलि व पशुबलि के इस क्रम में दिया । वह मन ही मन में सोचने लगी कि कैसी बुरी लत
कोई अन्तर नहीं आ पाया बल्कि हुआ यह कि यह बीमारी है यह ! परन्तु श्री सुराणाजी को नया चस्का लगा ही था।
बढ़ती ही गई। वधिकों ने महाजनों की दुकानों में खून वे इसे कैसे छोड़ सकते थे? स्वयं उठे । चिमनी के पास
की बाल्टियाँ ला-लाकर डाल दीं। सभी श्रावक लोग गये । बीड़ी सुलगाई। धूम्रपान नया-नया सीखा था।
निराश हो गये । स्थिति और बिगड़ती ही गयी। श्रावक बीड़ी सुलगाते-सुलगाते अपनी अंगुली ही जला बैठे।
सब मिलकर मुनिश्री गणेशमलजी के पास गये और मुनिश्री अंगुली जलने के साथ ही श्रीमती सुन्दरबाई बोल पड़ी,
से निवेदन किया-गुरुदेव ! यह हमारे वश की बात बहुत अच्छा हुआ, थोड़ी अंगुली और जल जाती तो
नहीं है । जितने हमने प्रयास किए उससे नरबलि बन्द बहुत अच्छा होता । श्री सुराणाजी श्रीमतीजी की व्यंगभरी
होना तो दूर रहा यह तो और भी ज्यादा बढ़ती जा बात छू गई। श्री सुराणाजी ने तत्काल उस धूम्रपानशलाका
रही है। मुनिश्री भी काफी चिन्तित हुए और बोलेको फेंक दिया और जीवनपर्यन्त धूम्रपान न करने के
केसरीमलजी कहाँ हैं ? श्रावकों ने बताया कि केसरी त्याग कर दिये । यदि श्रीमती सुन्दरबाई का कहना पहले
मलजी मद्रास गये हुए हैं । मद्रास में उनकी काकी साहिबा ही मान लिया होता तो अंगुली तो नहीं जलती। लेकिन
बीमार हैं। मुनिश्री गणेशमलजी ने फरमाया कि यदि यदि सुबह का भूला शाम को भी घर आ जावे तो उसे भूला नहीं कहना चाहिए । इसी एक घटना से उनके
केसरीमलजी यहाँ होते तो अवश्य ही वे इस नरबलि व जीवन में ऐसा परिवर्तन आया कि भविष्य में वे कभी
पशुबलि को समाप्त कराने में सफल होते । जब भी बुराई की ओर फटके ही नहीं।
केसरीमलजी मद्रास से लौटे तो, उन्हें दर्शन करने के
लिए कहिएगा। कुछ दिनों बाद श्री सुराणाजी मद्रास से ३. मौसर को राशि भवन-निर्माण में
लौटे । लौटते ही उन्होंने मुनिश्री के दर्शन किये । मुनिश्री बात पुरानी है जब आपके एक अत्यन्त निकट सम्बन्धी ने सुराणाजी को सारी बात बताई और कहा कि केसरीकी मृत्यु हो गयी। प्रचलित रीति-रिवाज के अनुसार मलजी तुम्हें इसके लिए काम करना चाहिए। तुम इस मृत्यु-भोज करना अनिवार्य था। सभी रिश्तेदार-नातेदार बलि को रोकने में सक्षम हो। सफल हो सकते हो। श्री इस बात पर आमादा थे कि मौसर तो करना ही होगा। सुराणाजी को मुनिश्री की बात छू गई। मन में ठान ली परन्तु श्री सुराणाजी अपने मन में दृढ़ निश्चय कर चुके थे, इस अमानुषिक हत्या को बन्द कराने की । देवी माता की मैं इस रूढ़ि का निर्वाह नहीं करूंगा, चाहे लोग कुछ भी पूजा के समय से ६ माह से पहले आपने सारा काम-काज कहें । श्री सुराणाजी ने मौसर में खर्च करने की जगह छोड़ दिया और इस कार्य में जुट गये। प्रातः तीन बजे
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