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अपभ्रंश साहित्य में रामकथा
डॉ देवेन्द्रकुमार जैन,
शान्ति निवास, ११४, उषा नगर, इन्दौर (म० प्र०)
अपभ्रंश रामकाव्य परम्परा वस्तुतः जैन राम-काव्य परम्परा है जो परम्परागत जैनकाव्य परम्परा से प्रभावित है। जैन सस्कृत साहित्य में रामकथा की दो धाराएँ हैं-एक रविषेण रामकथा की धारा और दूसरी आचार्य गुणभद्र की धारा। ऐतिहासिक दृष्टि से विमलसूरि की रामकथा (परिमचरिउ) पुरानी है, परन्तु अपभ्रंश कवि जो (जो प्रमुखतः दिगम्बर जैन हैं) उसका उल्लेख नहीं करते। अपभ्रंश में इन धाराओं के प्रथम प्रतिनिधि कवि हैं स्वयंभू और पुष्पदंत । रामकथा पर लिखित काव्य-परम्परा के आदि कवि वाल्मीकि हैं, विमलसरि (प्राकृत), रविषेण (संस्कृत) और स्वयंभू (अपभ्रंश) की रामकथा, मोटेतौर पर वाल्मीकि की कथा का अनसरण करती हैं। दूसरी धारा के कवि भी कुछ प्रसंगों और पात्रों के विषय में वाल्मीकि रामायण से अनुप्राणित हैं। इस प्रकार उपलब्ध प्रमाणों के आधार पर आदि रामायण-रामकाव्य और कथा का पहला लिखित स्रोत है। जब जैनकवि गौतम गणधर से परमत प्रसिद्ध (वस्तुतः लोकप्रिय) रामकथा की तुलना में जैनमत की रामकथा का स्वरूप पूछते हैं, तो परमत की रामकथा से उनका अभिप्राय वाल्मीकि की रामकथा से ही होता है। अपभ्रंश में, स्वयंभू और पुष्पदंत-रामकथा की दोनों धाराओं के प्रथम प्रवर्तक और प्रसिद्ध कवि हैं, उनके बाद दूसरे कवियों ने भी रचनाएँ की हैं, परन्तु भाषा और समय की दृष्टि से इन दोनों कवियों की रचनाओं का विशेष महत्त्व है, अतः यहाँ मुख्य रूप से उन्हीं के रामकथा-काव्यों विश्लेषण करना उचित है। अपनी रामकथा का स्रोत बताते हुए स्वयंभू कहते हैं कि महावीर भगवान् के मुखरूपी पर्वत से प्रवहमान इस कथारूपी नदी को सबसे पहले गणधरों ने देखा, बाद में आचार्य इन्द्रभूति से लेकर अनुत्तरवाग्मी कीर्तिधर ने उसमें अवागहन किया। आचार्य रविषेण (संस्कृत पद्मचरित के रचयिता) के प्रसाद से मैंने भी अपनी बुद्धि से इसका अवगाहन किया। स्वयंभू की यह परम्परा रविषेण की परम्परा से मिलती है, क्योंकि उन्होंने इन्द्रभूति के बाद धारणी के पुत्र सुधर्मा और अनुत्तरवाग्मी कीर्तिधर का उल्लेख किया है (पद्मचरित, पर्व १, श्लोक ४०-४२)। पउमचरिउ के अनुसार राजा श्रेणिक गौतम गणधर से कहते हैं कि दूसरे मतों में राघव की कथा उल्टी सुनी जाती है, बताइये वह जिनमत में किस प्रकार पायी जाती है । पुष्पदंत के महापुराण में रामकथा के प्रसंग पर भी श्रेणिक यह प्रश्न उठाता है
गौतम पोमचरितु भुवणि पवित्तु पयासहि ।
जिह सिद्धत्थ सुएण दिट्ठउं तिहि महु भासहि ।। हे गौतम ! विश्व में प्रसिद्ध पद्मचरित्र का प्रकाशन कीजिए, जिस रूप में सिद्धार्थपुत्र (महावीर) ने उसे देखा है, उस रूप में मुझ बताइये।
इस प्रकार रामकथा भिन्न-भिन्न होते हए भी दोनों कवियों के रामकथा का काव्य सृजन का उद्देश्य समान है और यह कि परमत में प्रसिद्ध रामकथा के विपरीत, जिनमत में प्रसिद्ध रामकथा का निरूपण करना । प्रश्न
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