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कर्मयोगी श्री केसरीमलजी सुराणा अभिनन्दन ग्रन्थ : पंचम खण्ड
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को फूंक सके उसको अपनी मनमानी चीज प्रदान की जाएगी। अनेक राजा ये कार्य सिद्ध करने में निष्फल हुए । एक बार जीवयशा का भाई भानु कृष्ण का बल देखकर उनको मथुरा ले गया और वहाँ कृष्ण ने तीनों पराक्रम सिद्ध किए।' इससे कंस की शंका प्रबल हो गई। किन्तु बलराम ने शीघ्र ही कृष्ण को ब्रज भेज दिया।
कृष्ण का विनाश करने के लिए कंस ने गोप लोगों को आदेश दिया कि यमुना के ह्रद में से कमल लाकर भेंट करे । इस हृद में भयंकर कालियनाग रहता था। कृष्ण ने हद में प्रवेश करके कालिय का मर्दन किया और वे कमल लेकर बाहर आए। जब कंस को कमल भेंट किये गये तब उसने नन्द के पुत्र के सहित सभी गोपकुमारों को मल्लयुद्ध के लिए उपस्थित होने का आदेश दिया । अपने बहुत से मल्लों को उसने युद्ध के लिए तैयार रखा। कंस का मलिन आशय जान कर वसुदेव ने भी मिलन के निमित्त से अपने नव भाइयों को मथुरा में बुला लिया ।
बलराम गोकुल गये और कृष्ण को अपने सही माता-पिता, कुल आदि घटनाओं से परिचित किया। इससे हृष्ट होकर कृष्ण कंस का संहार करने को उत्सुक हो उठे। दोनों भाई मल्ल वेश धारण करके मथुरा की ओर चले । मार्ग में कस से अनुरक्त तीन असुरों ने क्रमश: नाग के, गधे के और अश्व के रूप में उनको रोकने का प्रयास किया। कृष्ण ने तीनों का नाश कर दिया। मथुरा के नगरद्वार पर कृष्ण और बलराम जब आ पहुँचे तब इनके ऊपर कंस के आदेश से चम्पक और पादाभर नामक दो मदमत्त हाथी छोड़े गये । बलराम ने चम्पक को और कृष्ण ने पादाभर को दन्त उखाड़ कर मार डाला।
नगरप्रवेश करके वे अखाड़े में आये। बलराम ने इशारे से कृष्ण को वसुदेव, अन्य दशाह, कंस आदि की पहचान कराई। कंस ने चाणूर और मुष्टिक इन दो प्रचण्ड मल्लों को कृष्ण के सामने भेजा । किन्तु कृष्ण में एक सहस्र सिंह का और बलराम में एक सहस्र हाथी का बल था। कृष्ण ने चाणूर को भींच कर मार डाला और बलराम ने मुष्टिक के प्राण मुष्टिप्रहार से हर लिए। इतने में स्वयं कंस तीक्ष्ण खड्ग लेकर कृष्ण के सामने आया । कृष्ण ने खड्ग छीन लिया । कंस को पृथ्वी पर पटक दिया । उसे पैरों से पकड़ कर पत्थर पर पछाड़ कर मार डाला। और एक प्रचण्ड अट्टहास किया । आक्रमण करने को खड़ी हुई कंस की सेना को बलराम ने मंच का खम्भा उखाड़ कर प्रहार करके भगा दिया। कृष्ण पिता और स्वजनों से मिले। उग्रसेन को बन्धनमुक्त किया और उसको मथुरा के
१. त्रिषष्टि के अनुसार जो शारंग मनुष्य चढ़ा सके उसको अपनी बहन सत्यभामा देने की घोषणा कंस ने की और
इस कार्य के लिए कृष्ण को मथुरा ले जाने वाला कृष्ण का ही सौतेला भाई अनाधृष्टि था। त्रिषष्टि० में कालियमर्दन का और कमल लाने के प्रसंग कंस की मल्लयुद्ध घोषणा के बाद आते हैं। त्रिषष्टि० के अनुसार कंस गोपों को मल्लयुद्ध के लिए आने का कोई आदेश नहीं भेजता है। उसने जो मल्लयुद्ध के उत्सव का प्रबन्ध किया था उसमें सम्मिलित होने के लिए कृष्ण और बलराम कौतुकवश स्वेच्छा से जाते हैं। जाने के पहले जब कृष्ण स्नान के लिए यमुना में प्रवेश करते हैं तब कंस का मित्र कालिय डसने को आता है। तब कृष्ण
उसको नाथ कर उस पर आरूढ़ होकर उसे खूब धुमाते हैं और निर्जीव सा करके छोड़ देते हैं। ३. त्रिषष्टि० में सर्पशय्या पर आरोहण और कालियमर्दन इन पराक्रमों के पहले जबकि कृष्ण ग्यारह साल के थे तब
ये पराक्रम करने की बात है। त्रिषष्टि के अनुसार कृष्ण की कसौटी के लिए ज्योतिषी के कहने पर कंस अरिष्ट नामक वृषभ को, केशी नामक अश्व को, एक खर को और एक मेष को कृष्ण की ओर भेजता है। इन सबको कृष्ण मार डालते हैं । ज्योतिषी ने कंस को कहा था कि जो इनको मारेगा वही कालिय का मर्दन करेगा, मल्लों
का नाश करेगा और कंस का भी घात करेगा। ४. त्रिषष्टि० में 'पादाभर' के स्थान पर 'पद्मोत्तर' ऐसा नाम है। . ५. त्रिषिष्ट० के अनुसार प्रथम कंस कृष्ण और बलराम को मार डालने का अपने सैनिकों को आदेश देता है। तब
कृष्ण कूद कर मंच पर पहुँचते हैं और केशों से खींच कर कंस को पटकते हैं। बाद में चरणप्रहार से उसका सिर कुचल कर उसको मण्डप के बाहर फेंक देते हैं।
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