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कर्मयोगी श्री केसरीमलजी सुराणा अभिनन्दन ग्रन्थ : पंचम खण्ड
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प्रथम आख्यान में कथा के द्वारा सृष्टि को उत्पत्ति के सम्बन्ध में प्रचलित मिथ्या और असम्भव कल्पनाओं के प्रति-आख्यान के क्रम में कहा गया है कि धूर्त्तनेता मूलदेव ने जब अपनी कल्पित अनुभव-कथा सुनाई, तब दूसरे धूर्तनेता कण्डरीक ने उससे कहा : "तुम्हारे और हाथी के कमण्डलु में समा जाने की बात बिल्कुल सत्य और विश्वसनीय है; क्योंकि पुराणों में भी बताया गया है कि ब्रह्मा के मुख से ब्राह्मण, भुजाओं से क्षत्रिय, जंघा के वैश्य और पैरों से शूद्र का जन्म हुआ। अत:, जिस प्रकार ब्रह्मा के शरीर में चारों वर्ण समा सकते हैं, उसी प्रकार कमण्डलु में तुम दोनों समा सकते हो।
द्वितीय आख्यान में अण्डे से सृष्टि के उत्पन्न होने की कथा की असारता दिखाई गयी है। कण्डरीक ने अपने अनुभव का वर्णन करते हुए कहा है कि एक गांव के उत्सव में सम्मिलित सभी लोग डाकुओं के डर से कद में समाविष्ट हो गये। उस कद्रू को एक बकरी निगल गई और उस बकरी को एक अजगर निगल गया और फिर उस अजगर को एक ढेंक (सारस-विशेष) पक्षी ने निगल लिया। जब वह सारस उड़कर वटवृक्ष पर आ बैठा था, तभी किसी राजा की सेना उस वृक्ष के नीचे आई। एक महावत ने सारस की टाँग को बरगद की डाल समझकर उससे हाथी को बाँध दिया । जब सारस उड़ा, तब हाथी भी उसकी टांग में लटकता चला। महावत के शोर मचाने पर शब्दवेधी बाण द्वारा सारस को मार गिराया गया और क्रमशः सारस, अजगर, बकरी और कद्द, को फाड़ने पर उक्त गाँव का जनसमूह बाहर निकल आया।
कण्डरीक के इस अनुभव का समर्थन विष्णुपुराण के आधार पर करते हुए एलाषाढ बोला : “सृष्टि के आदिमें जल ही जल था । उसकी उत्ताल तरंगों पर एक अण्डा चिरकाल से तैर रहा था। एक दिन वह अण्डा दो समान हिस्सों में फूट गया और उसी के आधे हिस्से से यह पृथ्वी बनी। इसलिए, जब अण्डे के एक ही अर्धांश में सारी पृथ्वी समा सकती है, तब कद्दू में एक छोटे-से गाँव के निवासियों का समा जाना कोई आश्चर्य की बात नहीं।"
ब्रह्मा, विष्णु और महेश यानी त्रिदेव के स्वरूप की मान्यता के सम्बन्ध में अनेक मिथ्या धारणाएँ प्रचलित हैं, जिनका बुद्धि से कोई सम्बन्ध नहीं है। 'धूर्ताख्यान' के प्रथम आख्यान में ही व्यंग्यकथाकार ने लिखा है कि ब्रह्मा ने एक हजार दिव्य वर्ष तक तप किया। देवताओं ने उनकी तपस्या में विघ्न उत्पन्न करने के लिए तिलोत्तमा नाम की अप्सरा को भेजा । तिलोत्तमा ने उनके दक्षिण पार्श्व की ओर नाचना शुरू किया। रागपूर्वक अप्सरा का नृत्य देखने और उसका एक दिशा से दूसरी दिशा में घूम जाने के कारण ब्रह्मा ने चारों दिशाओं में चार अतिरिक्त मुख विकसित कर लिये । तिलोत्तमा जब ऊर्ध्वदिशा, यानी ऊपर आकाश में नृत्य करने लगी, तब ब्रह्मा ने अपने माथे के ऊपर पाँचवाँ मुख विकसित कर लिया । ब्रह्मा को इस प्रकार काम-विचलित देखकर रुद्र ने उनका पाँचवाँ मुख उखाड़ फेंका ब्रह्मा बड़े ऋद्ध हए और उनके ललाट से पसीने की बूदें गिरने लगीं, जिनसे श्वेतकुण्डली नाम का पुरुष उत्पन्न हुआ
और उस ने ब्रह्मा, की आज्ञा से शंकर का पीछा किया। रक्षा पाने के लिए शंकर .बदरिकाश्रम में तपस्यारत विष्ण के पास पहुँचे। विष्णु ने अपने ललाट की रुधिर-शिरा खोल दी। उससे रक्तकुण्डली नाम का पुरुष निकला, जो शंकर की आज्ञा से श्वेतकुण्डली से युद्ध करने लगा। दोनों को युद्ध करते हुए हजार दिव्य वर्ष बीत गये, पर कोई किसी को नहीं हरा सका। तब, देवों ने यह कहकर उनका युद्ध बन्द करा दिया कि जब महाभारत-युद्ध होगा, तब उसमें उन्हें सड़ने को भेज दिया जायगा। कहना न होगा कि उक्त कथा की सारी अवधारणाएँ कल्पित प्रतीत होती हैं।
___ इसी प्रकार, आचार्य हरिभद्र ने अपनी व्यंग्यकथाओं द्वारा अन्धविश्वासों का भी निराकरण किया है। तपस्या भ्रष्ट करने के लिए अप्सरा की नियुक्ति (प्रथम आख्यान); हाथियों के मद से नदी प्रवाहित होना, पवन से हनुमान की उत्पत्ति, विभिन्न अंगों के संयोग से कार्तिकेय का जन्म (तृतीय आख्यान); अगस्त्य का सागर-पान, अण्डे बिच्छू, मनुष्य और गरुड़ की उत्पत्ति (चतुर्थ आख्यान) आदि धारणाएँ अन्धविश्वास के द्योतक हैं । पुराणों में अग्नि का वीर्यपान, शिव का अनैसर्गिक अंग से बीर्यपात, कुम्भकर्ण का छह महीने तक शयन, सूर्य का कुन्ती से सम्भोग कान से कर्ण की उत्पत्ति प्रभृति बातों की 'धूर्ताख्यान' में पर्याप्त हँसी उड़ाई गयी है। 'धूख्यिान' के पांचों आख्यानों में कुल मिलाकर मुख्यत: निम्नांकित कथा-प्रसंगों पर व्यंग्य किया गया है :
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