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कर्मयोगी श्रीकेसरीमलजी सुराणा अभिनन्दन ग्रन्थ : प्रथम खण्ड
अन्य प्रमाण
दशम भवनाथै केन्द्रकोणे धनस्थेऽवनिपतिबलयाने शक्तिसिंहासनेषु।
स भवति नरनाथो विश्वविख्यातकीतिः मदगलितकपोल: सद्गर्सेव्यमानः । अर्थात-दशम भवन का मालिक शुक्र, लग्न के अन्दर आपकी कुण्डली के अन्दर शुक्र ही प्रबल बलिष्ठ बना है, राजयोग पूर्ण बना है, यही योग मान-पत्र दिलवाने में पहल करता है, परिपूर्ण जीवन तक यश कीति कायम रहेगी। शनि पराक्रम भवन में
राजमान्यशुभवाहनयुक्तो, ग्रामयोबहुपराक्रमशाली।
पालको भवति भूरिजनानां, मानवोहि रविजे सहजस्थे । अर्थात्-शनि लग्न एवं धन भवन का मालिक पराक्रम स्थान के अन्दर, शुभ शनि का तृतीय भवन में बैठना शुभ सूचक, अपनी स्वमर्जी का कार्य ही शनि करवाता है, आत्मबल प्रबल बनाता है । जन समूह का भरण-पोषण, अपनी धुन का धनी, दीर्घायु, वाद (हठ) यह शनि का प्रभाव रहता है, शनि क्रूर ग्रह है। दीर्घ आयु
लग्नस्याधिपति व्ययारि निधने, तत्काल रिष्टप्रदं लग्नस्याधिपतिः बलौ च शुभगे लामोऽथवा पंचमे। जीवो वा शितपंचमे च नवमे पूर्ण गुरु दृश्यते,
बालो जीवति निश्चितं मुनिकथं आयुर्बलं दीर्घकम् ॥ अर्थात्-कुण्डली के योगायोग से सुराणाजी परिपूर्ण दीर्घायु प्राप्त करेंगे, स्वस्थ अवस्था के अन्दर ही निधन योग बना है, गुरु के बल को देखते हुए अस्सी (८०) पार कर लेंगे ऐसा विश्वास है ।
उक्त विचार से यह स्पष्ट है कि काका साहब के ग्रह राजयोग बनाते हैं। धर्मस्थान में स्थित गुरु ने इनका ध्यान विद्या एवं धर्म की ओर आकर्षित करवाया। चतुर्थ भाव के मंगल ने प्रवासी, सप्तमी तिथि एवं ज्येष्ठा नक्षत्र ने कोति, वैभव एवं धन प्रदान करवाया। दूसरी ओर केमद्रुम योग ने इन्हें लक्ष्मी से विरक्त बना दिया । फलतः व्यक्तिगत जीवन को सादगी एवं सरलता से व्यतीत करने के उपरान्त भी इन्हें शिक्षा, धर्म एवं सामाजिक कार्य के लिये अर्थाभाव सता नहीं सकेगा।
___ आपका स्वभाव कभी कठोर तो कभी मृदु रहेगा, किन्तु धुन के धनी एवं अभीप्सित कार्य में दृढ़ता एवं कठोरता का परिचय देते रहेंगे। कीति, वैभव, अध्यात्म के अर्जन में आप निरन्तर क्रियाशील रहेंगे।
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