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राजस्थान के जैन संस्कृत साहित्यकार
आपकी समय कीर्ति एकमात्र कृति प्रयम्नपरित पर अवलम्बित है १४ सर्गों के इस महाकाव्य में श्रीकृष्ण के पुत्र प्रद्युम्न का जीवन चरित रस एवं अलंकारों से सरस एवं अलंकृत काव्यशैली में निबद्ध है ।
(७) जिनेश्वरसूरि - मध्य प्रदेश के निवासी कृष्ण ब्राह्मण के पुत्र श्रीधर ही वर्धमान सूरि से दीक्षा प्राप्त कर जिनेश्वरसूरि हो गये । अणहिलपुरपत्तन में आपका शास्त्रार्थ सूराचार्य जी से हुआ। महाराजा दुर्लभराज की अध्यक्षता में होने वाले इस शास्त्रार्थ में जिनेश्वरसूरि को विजय के साथ खरतर नामक विरुद की प्राप्ति हुई । आपका कार्यक्षेत्र राजस्थान व गुजरात था ।
आपकी रचनाएँ मूलतः टीकाएँ हैं। प्रमालक्ष्य, अष्टकप्रकरण एवं कथाकोष प्रकरण पर जालोर एवं डीडवाना में स्वोपज्ञ नामक टीकाओं की रचनाएँ की प्रमालक्ष्य जैनदर्शन का आद्य ग्रन्थ एवं शेष प्रकरण ग्रन्थ हैं। इन तीन ग्रन्थों की रचना आपने ग्यारहवीं शती में की है।
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(८) बुद्धिसागरसूरि - श्रीधर के अनुज श्रीपति ने भी दीक्षा ग्रहण कर बुद्धिसागर नाम धारण किया । जिनेश्वरसूरि के अनुज होने के नाते आपका समय भी ग्यारहवीं शती ही स्वीकार किया जा सकता है।
आपकी एकमात्र कृति पंचग्रन्थी व्याकरण है जिसका अपर नाम ही बुद्धिसागर व्याकरण हो गया है । आचार्य हेमचन्द्र ने भी इस व्याकरण का उपयोग अपने ग्रन्थों में किया है ।
(4) कवि डड्ढा - चित्रकूट के निवासी कवि डड्ढा पोरवाड़ जाति के श्रीपाल के पुत्र थे । आपका निवासस्थान चित्रकूट था । विद्वानों के अनुसार आपका समय १०५० है । आपकी एकमात्र कृति संस्कृत पंचसंग्रह है, जो प्राकृत पंचसंग्रह का अनुवाद मात्र है।
यद्यपि पंचसंग्रह का अनुवाद अमितगति ने भी किया था । किन्तु अमितगति के अनुवाद में जहाँ अनावश्यक बातें भी हैं, वहां डड्ढा ने वाणी पर संयम का अंकुश रखा है ।
(१०) आचार्य शुभ-शुभचन्द नाम से कई आचार्य जैन परम्परा में हो चुके हैं। प्रस्तुत शुभचन्द के निवासस्थान, कुल, वंश परम्परा के विषय में कुछ भी ज्ञात नहीं । इनकी कृति ज्ञानार्णव की शताधिक प्रतियाँ राजस्थान के जैन भण्डारों में प्राप्त होती हैं, जिससे यह अनुमान होना है कि आप राजस्थान के निवासी थे ।
४८ प्रकरणों के इस ग्रन्थ में १२
आपकी कृति ज्ञानार्णव योग दर्शन (जैन मान्यतानुसार) का प्रमुख प्रन्थ है भावना, पंचमहाव्रत, ध्यान आदि का सुन्दर विवेचन हुआ है ।
(११) आचार्य ब्रह्मदेव – आचार्य ब्रह्मदेव आश्रमपत्तन के निवासी थे । आश्रमपत्तन बूंदी जिले में अवस्थित केशवरायपत्तन ( केशारायपाटन) का पुराना नाम है । ब्रह्मदेव की दोनों कृतियों की रचना यहाँ हुई ।
आपने दो ग्रंथों - बृहद् - द्रव्य-संग्रह एवं परमात्म प्रकाश पर श्रेष्ठी सोमराज के लिए टीका लिखी । द्रव्यसंग्रह में श्रेष्ठी सोमराज के प्रश्नों का नामोल्लेख के साथ उत्तर दिया गया है जिससे यह प्रतीत होता है कि श्रेष्ठी सोमराज की शंकाओं का समाधान उक्त ग्रन्थ के रूप में हुआ है ।
१. बल्लभ भारती
(१२) जिनवल्लभ सूरि - जिनवल्लभसूरि का अधिकतर समय चित्रकूट में ही व्यतीत हुआ। आप जिनेश्वर सूरि के शिष्य थे एवं अभयदेवसूरि के पास अध्ययन करते थे । सं० १९६७ में अभयदेवसूरि की मृत्यु के पश्चात् आचार्य पद पर अभिषिक्त हुए । इसी वर्ष आप भी अपने गुरु का अनुगमन स्वर्ग चले गये ।'
आपकी कृतियाँ अनेक है जिनके नाम निम्न प्रकार परिगणित किये जा सकते हैं
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