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________________ ४२६ कर्मयोगी श्री केसरीमलगी सुराणा अभिनन्दन ग्रन्थ : पंचम खण्ड १. शतदन्तकमलालंकृतलोप्रपुरीयपार्श्वनाथस्तुति।। ५. एका दिदशपर्यन्त शब्द साधनिका २. महावीरस्तुति ६. सारस्वत वृति ३. कल्पमंजरी टीका ७. शब्दार्णव आदि। ४. अनेक शास्त्र सार समुच्चय पद्मसुन्दर : सुन्दरप्रकाशशब्दार्णव-इस कोश के प्रणेता पद्मसुन्दर हैं। आप पद्ममेरु जी के शिष्य थे। इनकी यह रचना वि० सं १६१६ की है। इस प्रमाण के आधार पर आपका काल सत्रहवीं शती निश्चित होता है। सम्राट अकबर के साथ आपका घनिष्ठ सम्बन्ध था। अकबर ने आपको आपकी बुद्धि एवं शास्त्रार्थ की क्षमता पर सम्मानित भी किया था। आगरा में आपके लिए अकबर द्वारा 'धर्मस्थानक' भी बनवाया गया था। पं० पद्मसुन्दर ज्योतिष, वैद्यक, साहित्य और तर्कशास्त्र के प्रकाण्ड विद्वान् थे। सुन्दरप्रकाशशब्दार्णव की हस्तलिखित प्रति वि० सं० १६१६ की लिखी हुई प्राप्त हुई है। इस कोश में २६६८ पद्य हैं । इसकी ८८ पत्रों की हस्तलिखित प्रति सुजानगढ़ में श्री पनेचन्दजी सिंघी के संग्रह से प्राप्त हुई है। यह कोश शब्दों तथा उनके अर्थों की विशद विवेचना करता है। आधुनिक समय के लिए यह एक अत्यन्त उपयोगी है। उपाध्याय भानुचन्द्रगणि : नामसंग्रह-उपाध्याय भानुचन्द्रगणि ने इस कोश की रचना की है। इसी कोश के अन्य 'अभिधान नाममाला' तथा 'विविक्त नाम संग्रह है। इसी कोश को कई विद्वान् भानुचन्द्र नाममाला' भी कहते हैं।' उपाध्याय भानुचन्द्रगणि सूरचन्द्र के शिष्य थे। वि० सं० १६४८ में इनको लाहौर में 'उपाध्याय' की पदवी प्राप्त हुई। इन्होंने सम्राट अकबर के सामने स्व रचित 'सूर्य सहस्रनाम' का प्रत्येक रविवार को पाठ किया था। इस कोश में अभिधान चिंतामणि के अनुसार ही छ: काण्ड हैं। काण्डों के शीर्षक भी लगभग उसी क्रम से दिये गये हैं । नाम संग्रह का अपनी दृष्टि से अलग ही महत्व है। भानुचन्द्रगणि विरचित अन्य ग्रन्थ निम्न हैं१. रत्नपाल कथानक २. कादम्बरी वृति ३. सूर्य सहस्रनाम ४. वसन्तराज शाकुन वृत्ति ५. विवेक विलास वृत्ति ६. सारस्वत व्याकरण वृत्ति हर्षकीतिसूरि : शारदीय नाममाला-इस कोश के प्रणेता चन्द्रकीर्ति सूरि के शिष्य हर्षकीतिसूरि थे। इनका काल सत्रहवीं शती है। इनके जीवन वृत्त का अन्य विवरण अप्राप्य है । शारदीयनाममाला में कुल ३०० श्लोक हैं। शोध कर्म की दृष्टि से यह एक महत्त्वपूर्ण कोश है । इस कोश का नाम 'शारदीय अभिधानमाला' भी है। इस कोश के अतिरिक्त भी इन्होंने 'योग चिन्तामणि', 'वैद्यकसारोद्धार' आदि ८ ग्रन्थ तथा टीकायें लिखी हैं । मुनि साधुकीति : शेष नाममाला-खरतरगच्छीय मुनि साधुकीति ने इस कोश ग्रन्थ की रचना की है। यह भी अन्य नाममालाओं की तरह ही एक लब्ध प्रतिष्ठ कोश है । इनका काल सत्रहवीं शती था। आपने अकबर के दरबार में शास्त्रार्थ में खूब ख्याति प्राप्त की थी। बादशाह ने प्रसन्न होकर इनको 'वादिसिंह' की पदवी से सम्मानित किया था। ये सहस्रों शास्त्रों के मर्मज्ञ विद्वान् थे।' १. जैन ग्रन्थावली पृ० ३११ २. खरतरगण पाथोराशि वृद्धौ.. शास्त्रसहस्रसार विदुषां"..... उक्ति रत्नाकर प्रशस्ति। - . Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012044
Book TitleKesarimalji Surana Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathmal Tatia, Dev Kothari
PublisherKesarimalji Surana Abhinandan Granth Prakashan Samiti
Publication Year1982
Total Pages1294
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size34 MB
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