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जैन ज्योतिष : प्रगति और परम्परा
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पं० भगवानदास (२०वीं शती)-इनका जन्म सं १९४५ (१८८८ ई०) में पालीताणा (गुजरात) में हुआ था। इन्होंने ज्योतिष पर ज्योतिषसार नामक ग्रन्थ लिखा है।
दक्षिण-भाषाओं में रचित ज्योतिष-गणित के ग्रन्थ तमिल भाषा में जैनों द्वारा गणित, ज्योतिष और फलित सम्बन्धी ग्रन्थ लिखे गये हैं।
ऐचडि नामक गणित सम्बन्धी और जिनेन्द्रमौलि नामक ज्योतिष सम्बन्धी ग्रन्थ बहुत प्रचलित हैं। ऐंचूवडि का व्यवहार व्यापारिक परम्परा में अधिकतर होता है।
कन्नड भाषा में गणित पर राजादित्य के व्यवहारगणित, क्षेत्रगणित, लीलावती, व्यवहाररत्न, जैनगणितसूत्रटोकोदाहरण तथा अन्य ग्रन्थ मिलते हैं । यह कर्नाटक क्षेत्र के निवासी थे। यह विष्णुवर्धन राजा के मुख्य सभापंडित थे । इनका काल सं० ११२० के लगभग है। कर्णाटककविचरित में इनको कन्नड साहित्य में गणित का ग्रन्थ लिखने वाला प्रथम विद्वान् बताया है।
चन्द्रसेम-कर्नाटक के दिगम्बर जैन मुनि थे। इन्होंने ज्योतिष पर केवलज्ञानहोरा नामक विशाल ग्रन्थ लिखा है। इसमें लगभग चार हजार श्लोक हैं । इस पर कर्णाटक के ज्योतिष का प्रभाव है। कहीं-कहीं विषय के स्पष्टीकरणार्थ कन्नड भाषा भी प्रयुक्त हुई है । इनका काल कल्याण वर्मा के बाद का है, इसके प्रकरण उनकी 'सारावली' से मेल खाते हैं।
__भद्रबाहु-इनके नाम से संस्कृत में भद्रबाहुसंहिता नामक ज्योतिष ग्रन्थ मिलता है। यह आचार्य भद्रबाहुकृत प्राकृत के ग्रन्थ का उद्धाररूप माना जाता है। संस्कृत कृति में २७ प्रकरण हैं, इसमें निमित्त और संहिता का प्रतिपादन है । डॉ० नेमिचन्द्र शास्त्री ने श्रुतकेवली भद्रबाहु से इस भद्रबाहु को भिन्न माना है और इनका काल १२वीं, १३वीं शती बताया है।
उपसंहार जैन विद्वानों ने ज्योतिष पर अनेक ग्रन्थ लिखे हैं । इनमें से अधिकांश अब तक प्रकाशित नहीं हो पाये हैं। केवल कुछ ही प्रमुख ग्रन्थ प्रकाशित हुए हैं । अधिकांश ग्रन्थ हस्तलिखित रूप में विभिन्न स्थानों पर पुस्तकालयों, भट्टारकों के पाठों और व्यक्तिगत संग्रहों में मौजूद हैं । इनके विस्तृत केटलाग बनाने की आवश्यकता है । इन ग्रन्थों के प्रकाशन की भी व्यवस्था होनी चाहिए।
यहाँ जैन-ज्योतिष-साहित्य पर संक्षेप में कालक्रमानुसार प्रकाश डालने का प्रयास किया गया है। यह केवल परिचय मात्र है। इस पर विस्तार से विश्लेषण की आवश्यकता है। ज्योतिष के शोधार्थियों की इसमें प्रवृत्त होना चाहिए।
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