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जैन मन्त्रशास्त्रों की परम्परा और स्वरूप
नन्दि मुनीद्र द्वारा विरचित है। इसका मूलमन्त्र “ॐ ह्रां हि ह ह ह्रौं ह्रीं ह्रों हः असि आउ सा सम्यगु दर्जन शानचारित्रेभ्यो ह्रीं नमः ।"
उपर्युक्त मन्त्र की साधना से आधिव्याधि, दुःख दारिद्र्य शोक-सन्ताप आदि का नाश होता है तथा हर प्रकार की सुख सामग्री का प्रादुर्भाव होता है जैसे :
र राजकुले व जले दुर्गे गजे हरौ श्माने विपिने पोरे स्मृतो रक्षति मानव ॥५६॥ राज्यभ्रष्टानिजं राज्यं पदभ्रष्टा निजंपदां लक्ष्मी भ्रष्टा निजा लक्ष्मी प्राप्नुवंति न संशय ॥ ६०॥ भार्यार्थी लभते भार्यां पुत्रार्थी लभते सुतं । धनार्थी लभते वित्तं नरः स्मरणमात्रतः ॥ ६१॥ स्वर्णे रूप्येऽवा कांस्येलिखित्वा यस्तु पूजयेते तस्यै वेष्ट महासिद्विगृहे वसति शास्ती ।।६२॥ ब्र० श्रीलाल जैन ने इसका सम्पादन कर प्रकाशित करवाया है ।
अनुभवसिद्ध मन्त्र द्वात्रिशिका
इस कृति की रचना भद्रगुप्ताचार्य ने की है। इसमें पाँच अधिकार हैं। पहले अधिकार में (१) सर्वशाभमन्त्र ५ श्री हीं अहं नमः" २) सर्वकर्मकरयन्त्र “ॐ ह्रीं श्रीं अहं नमः ।"
उपर्युक्त दोनों मन्त्रों के ध्यान विषय में बताया है कि :पीतंस्तम्भेऽरुव क्षोभणे विद्रुम
प्रभम् । प्रभम् ॥
कृष्णं विद्वेषणे ध्यायेत् कर्मघाते शशि द्वादश सहस्रजापो दशांश होमेन सिद्धिमुपयाति । मन्त्री गुरुप्रसादाद्ज्ञातव्य स्त्रिभुवने सारः ।।
द्वितीय अधिकार में वशीकरण एवं आकर्षण मन्त्रों का वर्णन किया है। तृतीय अधिकार में स्तम्भन स्तोत्र यदि मन्त्रों का वर्णन है।
गया है ।
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"ॐ ह्रीं देवी कुछ कुछ स्वाहा।" इस मन्त्र का हर प्रकार की बीमारी, विष आदि पर प्रयोग होता है।
चौथे अधिकार में शुभ-अशुभसूचक सुन्दर और तुरन्त अनुभव करवाने वाले आठ मन्त्रों का समावेश किया
पाँचवें अधिकार में गुरु-शिष्य के योग्यायोग्य का निरूपण किया गया है, जिससे दोनों का कल्याण हो सके। इसे पण्डित अम्बालाल प्रेमचन्द शाह ने सम्पादित कर प्रकाशित करवाया है ।
यह कृति ' अज्ञात सूरि द्वारा रचित है। इसमें निम्न प्रकरण हैं- प्रथम वाचना, विधि साधनविधि तृतीयान) मन्त्र गति दिया प्रस्थान पर विधिः
अधिष्ठायकस्तुतिः एवं सूरिमन्त्र पद संख्या ।
सूरिमन्त्र संग्रह
यह कृति अज्ञात कर्तृक है। इसमें निम्न पीठों का वर्णन किया है। प्रथम विद्यापीठ, द्वितीय महाविद्या पीठ, तृतीय उपविद्यापीठ, चतुर्थ मन्त्रपीठ, पंचम मन्त्रराजप्रस्थान ।
१० मुनि जम्बूविजयी मिसमुच्चय भाग २, पृ० १०९-१९४.
२. वही, पृ० सं० २३१-२३५, ५८.
३. लेखक के संग्रहालय में सुरक्षित है ।
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चिन्तामणि पाठ
इस कृति का रचनाकाल एवं कर्त्ता का परिचय अज्ञात है। इसमें भगवान पार्श्वनाथ का स्तोत्र एवं पूजा,
सूरिमन्त्र कल्प द्वितीय वाचना, ध्यान मन्त्रद्धि तपोविधिः
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