SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 748
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ जैन मन्त्रशास्त्रों को परम्परा और स्वरूप ३८१ -. - . -. -. - . -. - . -. -. - . -. २. द्वितीय पीठ : विद्या ३. तृतीय पीठ : उपविद्या ४. चतुर्थ पीठ : मन्त्रपीठ ५. पंचम पीठ : मन्त्रराज अन्त में सुरिमन्त्र जाप्य फल, साधन विधि, तपविधि, स्वआम्नाय मन्त्रशुद्धि, सूरिमन्त्र अधिष्ठायक स्तुति एवं मुद्राओं का वर्णन किया गया है। देवतासर विधि' इस कृति की श्री जिनप्रभसूरि ने १३०८ ईस्वी के आस-पास रचना की है। इसमें सूरिमन्त्र को साधन करने के लिये निम्न २० अधिकारों का वर्णन किया है (१) भूमिशुद्धि, (२) अंगन्यास, (३) सकलीकरण, (४) दिग्पाल आह्वान, (५) हृदयशुद्धि (६) मन्त्र-स्नान, (७) कल्मषदहन (८) पंचपरमेष्ठि स्थापना (8) आह्वानन, (१०) स्थापना, (११) सन्निधानं, (१२) सन्निरोधः (१३) अवगुंठन, (१४) छोटिका, (१५) अमृतीकरण, (१६) जाप, (१७) क्षोभण, (१८) क्षमण, (१६) विसर्जन, (२०) स्तुति, सूरिमन्त्र माहात्म्य, जाप्य-ध्यान आदि से प्राप्त सिद्धियों का वर्णन । मायाबीज कल्प इस कृति की जिनप्रभसूरि ने १३०८ ईसवी के आसपास रचना की है। इसमें मायाबीज ह्रीं को सिद्ध करने की सम्पूर्ण विधि का वर्णन किया है। शुक्ल पक्ष, पूर्णा तिथि, नैवेद्य-पकवान, फल, स्नान, एक भुक्ति भोजन एवं ब्रह्मचर्य आदि शब्द लिखकर साधक को उन बातों पर विशेष ध्यान के लिये संकेत किया है। प्रथम मायाबीज मन्त्र ॐ ह्रीं नमः' मूलमन्त्र का एक लक्ष जाप करने, जप के साथ ध्यान विधि भी बतायी गई है। इस मूल मन्त्र के साथ अलग-अलग पल्लवों को लगाकर शान्ति, पुष्टि, वशीकरण, उच्चाटन, विद्वेषण आदि मान्त्रिक क्रियाओं को सिद्ध करने की विधि बताई गई है। सूरिमन्त्र कल्प यह कृति श्री राजेशेखर सूरि ने १३५३ ईसवी के पासपास रची है। यह कल्प १० वक्तव्यों में लिखा गया है-(१) सप्तदश मुद्रावर्णन, (२) प्रथम पीठ वक्तव्यता, (३) द्वितीय पीठ वक्तव्यता, (४) तृतीय पीठ वक्तव्यता, (५) चतुर्थ पीठ वक्तव्यता, (६) पंचम पीठ वक्तव्यता, (७) पंचपीठमय सम्पूर्ण सूरिमन्त्र वक्तव्यता, (८) सविस्तार देवतावसरविधि वक्तव्यता, (९) संक्षिप्त देवतावसरविधि वक्तव्यता, (१०) मन्त्रमहिम वक्तव्यता। सूरिमुख्य मन्त्र फल्प इस कृति को श्री मेरुतुगसूरि ने १३८३ ई० सं० के आसपास रची है। इसमें निम्न प्रकरणों का वर्णन है-पंचपीठ वर्णन उपाध्याय विद्या, प्रवर्तक मन्त्रः, स्थविर मन्त्रः, गणवच्छेदमन्त्रः, वाचनाचार्य-प्रवृत्तिन्योर्मन्त्र: पंडित मिश्र मंत्रः, ऋषभविद्या, सूरिमन्त्र साधन विधि (देवतावसर विधि सदृश्य:) आद्यपीठ साधन विधिः, द्वितीय पीठ साधन विधिः, तृतीय पीठ साधन विधिः, चतुर्थ पीठ साधन विधिः, पंचम पीठ साधन विधिः, सूरिमन्त्र स्मरणफलम्, सूरिमन्त्र पट लेखन विधिः, ध्यान विधिजपभेदादिक च, अष्टौविद्यास्तासांफलं च, सूरिमन्त्र स्मरण विधिः (संक्षिप्तः) सूरिमन्त्र १. सं० मुनि जम्बूविजयजी, सूरिमन्त्र कल्प समुच्चय, भाग १, पृ०१०७-११२ २. लेखक के निजी संग्रह में विद्यमान है। ३. सं० मुनि जम्बूविजयजी, सूरिमन्त्र कल्प समुच्चय, भाग १, पृ. ११३-११ ४. वही, पृ० १३२-१७५ । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org.
SR No.012044
Book TitleKesarimalji Surana Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathmal Tatia, Dev Kothari
PublisherKesarimalji Surana Abhinandan Granth Prakashan Samiti
Publication Year1982
Total Pages1294
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size34 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy