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जैन मन्त्रशास्त्रों की परम्परा और स्वरूप
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इन्दौर से प्रकाशित है। इसमें मरणसूचक चिन्ह एवं भविष्य की जानकारी के लिये अम्बिका मन्त्र एवं अन्य मन्त्र भी दिये हैं।
महोदधि मन्त्र इस कृति के प्रणेता भी दिगम्बर आचार्य दुर्गदेव हैं। ई० सन् १०३२ के आस-पास इसकी रचना हुई होगी। इस मन्त्रशास्त्र की भाषा प्राकृत है।'
भैरव पद्मावती कल्प ४०० अनुष्टुप श्लोक परिमाण इस कृति की दिगम्बराचार्य श्री मल्लिषेण ने ईसा की ११वीं सदी में रचना की है। इन्होंने मन्त्रशास्त्र सम्बन्धी अनेक ग्रन्थों की रचना की है। इस कल्प को इन्होंने १० परिच्छेद में परिपूर्ण किया है।
प्रथम परिच्छेद-इसमें मंगलाचरण (पार्श्वनाथ को प्रणाम कर) पद्मावती के नाम, ग्रन्थ की अनुक्रमणिका, मन्त्री का लक्षण आदि विषय हैं।
द्वितीय परिच्छेद--(सकलीकरण क्रिया) इसमें सकलीकरण क्रिया अंशक परीक्षा आदि विषय हैं ।
तृतीय परिच्छेद (देवी की आराधना विधि)-मन्त्रों के जप में गुथने के भेद, मन्त्रों की सामान्य साधनाविधि, पद्मावती को सिद्ध करने का विधान, अनुष्ठान में पास रखने का यन्त्र, पूजन के पांचों उपचार, पद्मावती सिद्ध करने का मूल मन्त्र, पद्मावती का षडक्षरी मन्त्र, पद्मावती का त्रयाक्षरी मन्त्र, पद्मावती का एकाक्षर मन्त्र, होम विधि, पार्श्वनाथ भगवान् के यक्ष की साधना विधि तथा वशीकरण चिन्तामणि मन्त्र आदि विषय है।
चतुर्थ परिच्छेद (द्वादश रंजिका यन्त्र विधान)-इसमें मोहन में क्ली रंजिका यन्त्र, इसके अनन्तर रंजिका मन्त्र के ह्रीं, ह, य, यः, ह, फट, म, ई, क्षवषट्, ल और श्री इन ग्यारह भेदों का वर्णन आता है । इन बारह यन्त्रों में से अनुक्रम से एक यन्त्र स्त्री को मोह-मुग्ध बनाने वाला, स्त्री को आकर्षित करने वाला, शत्रु का प्रतिषेध करने वाला, परस्पर विद्वेष करवाने वाला, शत्रु के कुल का उच्चाटन करने वाला, शत्रु को पृथ्वी पर कौवे की तरह गुमाने वाला, शत्रु का निग्रह करने वाला, स्त्री को वश में करने वाला, स्त्री को सौभाग्य प्रदान करने वाला, क्रोधादि का स्तम्भन करने वाला और ग्रह आदि से रक्षण करने वाला है। इसमे कौए के पंख, मृत प्राणी की हड्डी तथा गधे के रक्त के बारे में भी उल्लेख है।
पंचम परिच्छेद-इसमें अग्नि, वाणी, जल, तुला, सर्प, पक्षी, क्रोध, गति, सेना, जीभ एवं शत्रु के स्तम्भन का निरूपण है । इसके अतिरिक्त वार्ताली यन्त्र का भी उल्लेख है।
षष्ठ परिच्छेद- इसमें इष्ट स्त्री के आकर्षण के छ: प्रकार से विविध उपाय बतलाये गये हैं।
सप्तम परिच्छेद - इसमें दाह ज्वर का शांतिमन्त्र, विभिन्न प्रकार से किस प्रकार वशीकरण किया जाय, उसके लिये छः प्रकार के वशीकरण यन्त्र, अरिष्ट निमि मन्त्र, दूसरों को असमय में किस प्रकार मुलाया जाय ऐसा मन्त्र, विधवाओं को क्षुब्ध करने का मन्त्र । इसमें होम की विधि भी बतलाई गई है और उससे भाई-भाई में वैरभाव और शत्रु का मरण किस प्रकार हो, इसकी रीति भी बतलाई गई है।
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१. रिष्टसमुच्चय, प्रस्तावना, पृष्ठ १२, सं० पं० नेमीचन्द शास्त्री २. पं० चन्द्रशेखर शास्त्री कृत हिन्दी भाषाटीका ४६ यन्त्र एवं पद्मावती विषयक कई रचनाओं के साथ यह कृति
श्री मूलचन्द किशनदास कापडिया ने वीर संवत् २४७६ में प्रकाशित की है।
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