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________________ ११४ कर्मयोगी श्री केसरीमलजी सुराणा अभिनन्दन ग्रन्थ : तृतीय खण्ड बालिकाओं के जीवन पर बहुत असर डालते हैं और वे कक्षा के चारदीवारी में संभव नहीं हैं। अनौपचारिक शिक्षा पूरक रूप से बालक के समग्र विकास को मुखरित करती है और वास्तविक जीवन जीने के लिये तैयार करती है। आधुनिक युग में किसी कार्य के निष्पादन में कला अथवा तकनीकी विकास की आवश्यकता होती है ताकि उचित व्यक्ति उचित कार्य में जुटाया जा सके, इस प्रकार का सामंजस्य पूर्ण रूप से अपेक्षित है। अन्धानुकरण के कारण पचास प्रतिशत शिक्षित बेरोजगारों को उपयुक्त कार्य नहीं मिल पा रहा है, यह एक विडम्बना है। पाठ्य-पुस्तकों की शिक्षा प्रणाली व्यावसायिक तन्त्र को असन्तुलित करती हैं और उससे तनावपूर्ण स्थिति उत्पन्न होती है। भारत भी इस रोग से पीड़ित है। वर्तमान में ब्रिटेन के जातीय दंगे भी बहुत कुछ इस असन्तुलन के परिचायक हैं। शिक्षा कार्यक्रम का विस्तार और उसमें विभिन्नतायें विकेन्द्रित ग्रामीण अर्थव्यवस्था से सम्बद्ध होनी चाहिये। जहाँ विकास प्रक्रियायें----जैसे ग्रामीण विद्युतीकरण, लघु सिंचाई, ग्रामीण उद्योग, कृषि उन्नति, स्वास्थ्य एवं आवासीय निर्माण-लागू की जा रही हैं । वहाँ इन कार्यों में साक्षर व प्रशिक्षित युवक लग सकें, यह हमारा लक्ष्य होना चाहिये । कुशल श्रम को शहरी क्षेत्रों से आयात नहीं करना पड़े। व्यावसायिक शिक्षा का प्रसार बड़ा उपयोगी हो सकता है और ग्रामीण विकास आत्म-निर्भरता की ओर अधिक अग्रसर हो सकेगा। स्कूल व स्थानीय लोगों का परस्पर सम्पर्क व सहयोग अपेक्षित है। उसके आधार पर स्थानीय शिक्षा सुविधायें और पाठ्य-प्रणाली में वांछित गति मिल सकेगी। जनतन्त्र में जन सहयोग शिक्षा प्रसार का अभिन्न अंग है। पारस्परिक सद्भावना के आधार पर समूचे वातावरण में स्फूति जागृत होती है। वह युग समाप्त हो गया कि रेगिस्तान में जन्म लेने वाला रेगिस्तान में ही मरे और पानी के बिना तड़के, जबकि व्यावसायिक स्थानान्तरण अधिक उपलब्ध है। शिक्षा को सर्वांगीण दर्जा देने के लिये सांस्कृतिक तत्त्व का समुचित समावेश होना चाहिये। इस दृष्टि से नैतिक शिक्षा मानवीय मूल्यों का उचित पोषण कर सकती है। धर्म निरपेक्षता का यह अर्थ नहीं कि शिक्षार्थी अपनी धार्मिक भावनाओं से दूर हटता जावे। यह एक दुष्काल है जिसके कारण उच्छृखलता में वृद्धि हुई है। आधुनिक गन्दे चलचित्रों ने असामाजिकता को प्रोत्साहन दिया है। जबकि अच्छे व उपयोगी चलचित्र, रेडियो प्रसारण, दूरदर्शन आदि माध्यम असाक्षरता-निवारण में बड़ा योगदान देते हैं। जनसंख्या वृद्धि एक भयंकर समस्या है। इसका निवारण भी शिक्षा का एक विशिष्ट अंग होना चाहिये । भावी भारत का स्वरूप इस समस्या से बहुत अधिक सम्बद्ध है। समस्याओं के निवारण में राष्ट्रीय भावना प्रमुख है। शिक्षा के पाठ्यक्रम और पद्धतियों इस लेख से समाविष्ट नहीं है। विश्लेषण भारत एक विकासशील राष्ट्र है। इसकी नीतियों व कार्यक्रमों में जन-कल्याण तथा प्रगतिशीलता परिलक्षित होती है। जब क्रियान्वयन की कसौटी के पक्ष पर आंशिक सफलता ही प्राप्त कर पाती है। कर्तव्यपरायणता और सत्यनिष्ठा वर्तमान वातावरण में दोषमुक्त नहीं हो सकती हैं। शिक्षा सुधार समयोपयोगी बनाने के लिये काफी चर्चायें सुनने व पढ़ने में आती हैं तथापि कोई ठोस परिणाम उभर कर नहीं आया है। मैकाले की शिक्षा पद्धति विशेष रूप से नौकरशाही वर्ग को तैयार करती रही है जो राष्ट्र के जन-जीवन से तटस्थ रही है।। इस समय देश में शैक्षिक व्यवस्था में लगभग छह लाख प्राथमिक शालायें, चालीस हजार माध्यमिक विद्यालय, पैंतालीस सौ महाविद्यालय एवं एक सौ बीस विश्वविद्यालय कार्यरत हैं। जिनमें पैतीस लाख शिक्षक हैं और कुल व्यय तीन हजार करोड़ रुपये हैं । इस मद में रक्षा व्यय से दूसरा स्थान है। गत तीस वर्षों में साक्षरता प्रतिशत में १६ से ३६ प्रतिशत तक वृद्धि हो पाई है। लोक-तन्त्र में प्रत्येक को शिक्षाध्ययन मौलिक अधिकारों के अन्तर्गत जाता है लेकिन वर्तमान की स्थिति को धीमी गति कहना चाहिये। फिर भी जो भी शिक्षा दी गई वह बहुत कुछ एकांगी रही है और कहाँ तक जीवनोपयोगी रही है, विचारणीय प्रश्न है। क्या वर्तमान शिक्षा पद्धति ने निर्माणात्मक नागरिकता का सृजन किया है ? यह एक प्रश्नवाचक चिन्ह है जिसको नकारा नहीं जा सकता। कार्ल मार्क्स ने वर्तमान शिक्षा प्रणाली पर एक कठोर प्रहार किया है। उसके कथनानुसार इस पंजीवादी Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012044
Book TitleKesarimalji Surana Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathmal Tatia, Dev Kothari
PublisherKesarimalji Surana Abhinandan Granth Prakashan Samiti
Publication Year1982
Total Pages1294
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size34 MB
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