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कर्मयोगी श्री केसरीमलजी सुराणा अभिनन्दन ग्रन्थ तृतीय खण्ड
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(ग) जैन विद्या के अध्यापकों का प्रशिक्षण क्रम
(घ) आवासीय विद्यालय एवं तकनीकी प्रशिक्षण ( शिक्षा विकास में )
शिक्षा के क्षेत्र में शिक्षा तथा साहित्य एवं सांस्कृतिक विभाग के अन्तर्गत ठोस कार्य किये जा रहे हैं। छात्र के बौद्धिक, नैतिक, चारिविक और विकास पर बल दिया गया है। अध्ययन और अध्यापन की आधुनिक तथा परम्परागत शैली का समन्वय कर एक नयी शैली का प्रयोग किया जा रहा है। यहाँ विश्व संस्कृति के परिप्रेक्ष्य जैनविद्या के मौलिक तत्वों के अध्यापन की विशेष व्यवस्था है। महिला महाविद्यालय और पारमार्थिक शिक्षण संस्था के पाठ्यक्रम में जैन दर्शन के गम्भीर अध्ययन की व्यवस्था को ध्यान में रखा गया है। यहाँ सभी स्तरों पर शैक्षणिक कार्यक्रमों में साधना (ध्यान) को अनिवार्य प्रवृत्ति के रूप में स्वीकार किया गया है ।
जैन विश्वभारती विद्या के क्षेत्र में एक विशेष प्रयोग है। इसलिए विशेष योग्यता वाले विद्यार्थी पूर्ण योग्यता की शर्त विना ही इसके विशिष्ट का अध्ययन कर सकेंगे जहाँ जैन विद्या परीक्षाओं द्वारा प्रतिवर्ष हजारों की संख्या में बालक-बालिकाएँ, युवक-युवतियाँ, तत्त्वज्ञान प्राप्त कर लाभान्वित हो रहे हैं, जहाँ पत्राचार पाठमाला द्वारा सैकड़ों जैन दर्शन एवं धर्म के जिजा पर बैठे व्यापक तथा व्यवस्थित ढंग से हो अपने आपको मान रहे हैं।
सभी स्तरों के विद्यार्थियों को चिन्तन की व भावाभिव्यक्ति की पूर्ण स्वतन्त्रता रहती है । धर्म और दर्शन के विद्यावियों के लिए इस प्रकार की स्वतन्त्रता बहुत महत्वपूर्ण है, क्योंकि ये विषय निरन्तर अपनी सीमाओं का विस्तार करते जाते हैं और आधुनिक पद्धति पर आधारित मौलिक तथा साहस चिन्तन को इनके लिए बहुत आवश्यकता है। इस दृष्टि से विद्याबियों के लिए पुस्तकालय (वर्धमान ग्रन्थागार) जो विभिन्न धर्मों के करीब दस हजार ग्रन्थ व पुस्तकों (जिनमें अमूल्य व दुष्प्राप्य हस्तलिखित व मुद्रित ग्रन्थ भी शामिल हैं) का सचमुच ही आगार है, उनके उपयोग की पूर्ण स्वतन्त्रता रहती है। इन विभागों के अन्तर्गत अन्य प्रवृत्तियों के अलावा इस वर्ष अभी-अभी जय विद्यापीठ (आवासीय छात्रावास) की योजना और क्रियान्वित की गई है जिसका उद्देश्य छात्रों को सुसंस्कारी, आचारवान एवं प्रतिभाशाली व्यक्तित्व के रूप में तैयार करना है ।
उक्त विभागों के अन्तर्गत चालू प्रवृत्तियों के अतिरिक्त छोटे-छोटे बच्चों को मनोवैज्ञानिक आधार पर परिचालित मोंटेसरी पद्धति पर आधारित शिक्षा देने की योजना को क्रियान्वित करना भी नितान्त अपेक्षित है। इस सम्बन्ध में करीब दो वर्ष पहले अधिकृत रूप से घोषणा की हुई है ।
शिक्षा विभाग के पदाधिकारी अध्यक्ष श्री राणमलजी जीरावला त्राह्मी विद्यापीठ के निदेशक श्री भै लालजी बरड़िया एवं छात्रावास के निदेशक श्री सदासुखजी कोठारी हैं जो कि समाज के सुपरिचित एवं प्रतिष्ठित अनुभवी कार्यकर्ता हैं | साहित्य एवं संस्कृति विभाग के पदाधिकारी श्री वन्दजी रामपुरिया अध्यक्ष श्री जैन विश्वभारती एवं निदेशक श्री गोपीचन्द चोपड़ा, संस्था के कुलसचिव हैं। दोनों ही शिक्षा-प्रेमी, समाजसेवी, ध्येयनिष्ठ व्यक्ति हैं।
२. शोध-विभाग (अनेकान्त शोधपीठ )
अनुसन्धान के क्षेत्रों में जैन विश्वभारती का दृष्टिकोण समीक्षात्मक, तुलनात्मक और ऐतिहासिक है। जैनागम, धर्म और दर्शन, विज्ञान, गणित, भाषा आदि अनेक विषयों पर अनुसन्धानात्मक प्रवृत्तियां चल रही हैं, जिनके द्वारा जैन संस्कृति प्राकृत जैन साहित्य, जैन इतिहास जैन संस्कृति एवं पुरातत्त्व के दो में अपने शोध कार्यों द्वारा धमण संस्कृति के विकास में रचनात्मक योगदान मिलता है। इसके अन्तर्गत उच्चस्तरीय शोध ग्रन्थों का प्रकाशन भी होता है। जैन आगम अनुसंधान के अन्तर्गत अचार्यवर ने करीब पचवीस वर्षे पूर्व अनुसन्धान दृष्टि गम्भीर अध्ययन, उदार तथा असाम्प्रदायिक दृष्टिकोण से आगम सम्पादन का कार्य हाथ में लिया । इस विभाग द्वारा प्रकाशित आगम और आगमेतर ग्रन्थों ने विद्वानों का ध्यान अपनी ओर आकृष्ट किया है । अब तक ग्यारह अंगों का मूलपाठ संशोधित होकर तीन भागों में ( अंगसुताणि) प्रकाशित हो चुका है। बारह उपांगों के मूल पाठ संशोधित होकर तैयार हो
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