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________________ नारी-शिक्षा का महत्व D साध्वीश्री जयश्री (युगप्रधान आचार्य श्री तुलसी की शिष्या) "स्त्री शूद्रो नाधीयेताम्" अर्थात् स्त्री और शूद्र विद्या के अधिकारी नहीं हैं। विद्या के पात्र नहीं है । पहले इस विचारधारा में पलने वाले बुजुर्ग अपनी लड़कियों को बिल्कुल नहीं पढ़ाते थे; उन्हें सर्वथा अशिक्षित ही रखते थे; जिसके फलस्वरूप नारी-शिक्षा का विकास नहीं हो सका । उनकी भावना इस रूप में प्रस्फुटित हुई अबला जीवन हाय ! तुम्हारी यही कहानी । आँचल में है दूध और नयनों में पानी ।। नारी-हृदय स्वभावतः ही मृदु, कोमल, करुणाप्लावित और रस से संयुक्त होता है। उसकी यह कोमलता ही उसे विरह-व्यथा से सतत प्रताड़ित करती रहती है। जबकि पुरुष-हृदय पाषाण की भांति कठोर होता है। वह कभी तपस्या का बहाना बना घोर जंगल की ओर प्रस्थान कर देता है तो कभी रूपलावण्यमयी स्त्री के मोह-पाश में आबद्ध हो अपनी स्त्री से सदा के लिए सम्बन्ध-विच्छेद कर देता है। उसे पूर्वापूर्व का तनिक भी ख्याल नहीं रहता। नारी का भावुक हृदय सतत तिल-तिल कर जलता है, जिससे उसका सांसारिक जीवन बहुत ही दुर्वह हो जाता है। वह अपने इस दुर्वह भार को अश्रुधारा के माध्यम से ही हल्का कर सकती है और उसके पास उपक्रम ही क्या है ? यह दुर्दशा पुरातन युग के नारी समाज की ही अधिक हुई है। शिक्षा के परिप्रेक्ष्य में जायें तो पायेंगे कि अगर नारी शिक्षित व पढ़ी-लिखी होती तो क्या वह पुरुषों की कारा में रहना पसन्द करती? कदापि नहीं। आधुनिक युग का नारी समाज पुरुष-वर्ग को एक नयी चुनौती देता है। आज की महिलायें साहस और पराक्रम को संजोये हुए हैं। उनकी मानसिक चेतना का अनावरण हुआ है। कायरता सदा के लिए विदा ले चुकी है, वीरत्व जाग उठा है। उसके सोचने-समझने का मानदण्ड ही बदल गया है । पुरुषों की परायत्तता अब उन पर अधिक नहीं टिक सकती। पुरातन मान्यताएँ, धारणाएँ ऐसी थीं कि पुरुषों के अभाव में महिलाएं अपना जीवन-यापन नहीं कर सकतीं। अतीत की इन मान्यताओं में अब बहुत कुछ परिवर्तन दृष्टिगत हो रहा है । नारी सम्बन्धी विवाह समस्या किसी न किसी रूप में आज के विश्व-क्षितिज पर अभिव्यंजित होती रही है। उसके सामाजिक तथा पारिवारिक उत्तरदायित्वों को लेकर कम तर्क-वितर्क पैदा नहीं हुए। भारतीय सांस्कृतिक पुनरुत्थान के परिणामस्वरूप भारतीय समाज में नारी की शिक्षा-दीक्षा की वस्तुस्थिति पर पुनः गम्भीर चिन्तन मनन किया गया । एक महत्त्वपूर्ण प्रश्न यह भी उभरा कि वस्तुतः उसका कार्य क्षेत्र क्या है और क्या होना चाहिये ? नारी केवल घर-परिवार की चहारदीवारी में बन्द रहकर अपने पति तथा पुत्र की सेवा-शुश्रूषा में ही लगी रहेगी अथवा उस धरातल से ऊपर उठकर कुछ वैचारिक क्रान्ति भी कर सकेगी। उच्च शिक्षासम्पन्न तथा बृहत्तर प्रतिभावान् नारी को कुछ वर्षों के पश्चात् नारी-स्वातन्त्र्य एवं नारी-जागरण का सामाजिक मूल्य संप्राप्त हुआ, नारी को सामाजिक तथा आध्यात्मिक क्रान्ति करने को प्रोत्साहित किया गया। दार्शनिकों, कवियों, कलाकारों ने नारी Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012044
Book TitleKesarimalji Surana Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathmal Tatia, Dev Kothari
PublisherKesarimalji Surana Abhinandan Granth Prakashan Samiti
Publication Year1982
Total Pages1294
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size34 MB
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