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________________ छात्र छात्रावास और संस्कार D मुनिश्री सुखलालजी (युगप्रधान आचार्य श्री तुलसी के शिष्य) एक छात्र राजस्थान के बहुत छोटे से गांव का रहने वाला था। राजस्थान के ही एक बड़े शहर में स्नातक होने के बाद वह बम्बई में सी०ए० करने के लिए आया था। राजस्थान में उसका साधुओं से निकट का सम्पर्क रहा था। इसलिए बम्बई आने के बाद भी उसकी स्मृति में वह संस्कार जीवित था। मैंने उससे पूछा-तुम कहाँ रहते हो? उसने कहा-पास में ही एक छात्रावास है वहाँ रहता हूँ। छात्रावास शब्द ने एक क्षण के लिए मुझे रोका । मेरे विचार से छात्रावास किसी भी व्यक्ति की जीवन-यात्रा का महत्त्वपूर्ण पड़ाव होता है। इसी दृष्टि से उस छात्र में मेरी अभिरुचि जागी। मैंने पूछा-वहाँ की व्यवस्था तो अच्छी है ? उसने कहा--सामान्यतया तो अच्छी ही है। पर एक कठिनाई है, वहाँ सुबह-शाम प्रार्थना में अनिवार्य रूप से उपस्थित रहना पड़ता है । यदि कोई एक समय भी चूक जाता है तो पाँच रुपये दण्ड भरना पड़ता है। रात को देरी से सोते हैं तो सुबह जल्दी उठने में तकलीफ होती है । बस यही एक कठिनाई है। तो तुम जल्दी क्यों नहीं उठ जाते ? कोशिश तो करता हूँ पर मेरा काम ही कुछ ऐसे ढंग का है कि दिन भर आडिट में डटा रहना पड़ता है। फिर रात को थोड़ा अध्ययन करना भी आवश्यक हो जाता है। इसलिए सोने में देरी हो जाती है। जब देर से सोया जाता है तो स्वाभाविक है कि उठने में जरा तकलीफ हो । इसीलिए पहले मैं इस होस्टल में नहीं रहना चाहता था। अँधेरी में एक दूसरा होस्टल है। उसमें ऐसा कुछ प्रतिबन्ध नहीं है। मैं तो वहीं रहना चाहता था पर वहाँ जगह नहीं मिली, इसलिए यहाँ आना पड़ा। मैंने आश्चर्यपूर्वक कहा- तुम्हें यह सब भारी लगता है तो तुम होस्टल में आये ही क्यों ? क्या दूसरे स्थान में नहीं रह सकते थे ? रह तो सकता था। मेरे बड़े भाई भी यहीं लेखापाल हैं। कुछ दिन मैं उनके पास रहा भी। पर उनके पास केवल एक रूम है । वहाँ पढ़ाई ठीक से नहीं हो पाती। इसलिए अलग रहना आवश्यक हो गया। मुझे लगा यह विवशता एक छात्र की नहीं है अपितु हजारों-हजारों छात्रों की है। एक बार मैं उदयपुर में था। वहाँ एक बड़ी सभा हो रही थी। समाज के बड़े-बड़े लोग उसमें उपस्थित थे। कॉलेज के छात्र भी बड़ी संख्या में उपस्थित थे। सभी लोग छात्रों पर व्यंग्य कर रहे थे कि उनमें धर्म और समाज के प्रति अपने उत्तरदायित्व का बोध नहीं के बराबर है। इतने में एक छात्र उठा । उसने कहा-आप लोग जो कुछ कह रहे हैं वह तो ठीक है, पर क्या आपने कभी यह भी सोचा है कि समाज छात्रों के प्रति अपने उत्तरदायित्व को कहाँ तक निभा रहा है ? बड़े शहरों में जो छात्र बाहर से पढ़ने के लिए आते हैं, उनके सामने सबसे पहली समस्या रहती है आवास की। क्या समाज उन्हें सही आवास देने की योजना बना रहा है ? यह ठीक है कि समाज में बहुत से सम्भ्रान्त लोग हैं। पर उनकी वह Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012044
Book TitleKesarimalji Surana Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathmal Tatia, Dev Kothari
PublisherKesarimalji Surana Abhinandan Granth Prakashan Samiti
Publication Year1982
Total Pages1294
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size34 MB
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