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________________ सन्देश शुभकामना १७ मूलचन्द डागा, सभापति संसद सदस्य अधीनस्थ विधान सम्बन्धी समिति लोक सभा-नई दिल्ली विरले लोग होते हैं जो अपने जीवन में अपना भौतिक सुख छोड़कर समाज सेवा के लिए अपने आपको समर्पित करते हैं। उनमें से श्रीमान केसरीमलजी सुराणा एक हैं । उनके अथक प्रयास, अन्दर की लगन और दृढ़ निश्चय के कारण आज राणावास में शिक्षा का एक अद्वितीय केन्द्र बन गया है। उनका निखरा हुआ जीवन सबके लिए उदाहरण है। ऐसे सेवाभावी के लिए जितना भी लिखा जाय उतना थोड़ा है। भगवान उन्हें कई वर्षों तक समाज की सेवा करने के लिए लम्बी आयु दें। --मूलचन्द डागा "सरस्वती देवयन्तो हवन्ते" राजस्थान विद्यापीठ, उदयपुर पीठ अधिकरण जनार्दनराय नागर उदयपुर-३१३००१ संस्थापक-उपकुलपति दिनांक २२-२-८० कर्मयोगी श्री केसरीमलजी सुराणा की शिक्षा तथा संस्कृति के निमित्त की गई सेवायें निस्संदेह बृहद जनतंत्रीय राजस्थान के समाज एवं राज्य के लिये सदैव श्लाघ्य रहेगी । सच तो यह है कि जनतंत्रीय समाज तथा राज्य के आध्यात्मिक और सांस्कृतिक तथा शैक्षिक विकास के लिये श्रीमान केसरीमलजी सुराणा जैसे तपस्वी कर्मयोगियों की शिलान्यासवत् आवश्यकता है तथा यह आवश्यकता सदैव ही बनी रहेगी। राजस्थान राज्य की जनता के जनतंत्रीय सामाजिक विकास के लिये प्रगतिशील शिक्षा कार्य की आज तो संजीवनीवत् आवश्यकता है। आज जब सार्वजनिक शिक्षा कार्य और सार्वजनिक शिक्षा संस्था का समूचा भविष्य ही अधिकार ग्रसित है और राजस्थान के राष्ट्रीय शिक्षा, संस्कृति, साहित्य, अध्यात्म, जनकल्याण आदि समूचे रचनात्मक निर्माण का कोई भी भाग्य नजर नहीं आ रहा है। तब कर्मयोगी श्री केसरीमलजी सुराणा का व्यक्तित्व हमें आशा प्रदान करता है। श्रीमान केसरीमलजी सुराणा से हमारे जैसे राष्ट्रीय कार्यकर्ता सदैव प्रेरणा पाते रहेंगे। समाज के ऐसे ही आप्रकाय पुरुष ही हम जैसे निरीह, आसक्त तथा संघर्ष से निराश होते रहने वाले कार्यकर्ताओं के लिये भविष्य का धैर्य बँधाते हैं। राजस्थान की सार्वजनिक शिक्षा संस्थाओं के भाग्य के इस अंधकारपूर्ण समय में कर्मयोगी श्री केसरीमलजी सुराणा के अभिनन्दन का यह समारोह समाज को नया चैतन्य प्रदान तथा सरकार को सद्बुद्धि देगा, ऐसा मेरा विश्वास है। जहाँ तक सार्वजनिक संस्थाओं के कार्यकर्ताओं का सम्बन्ध है, श्री केसरीमलजी सुराणा सदैव एक स्मरणीय उदाहरण हो गये हैं। - जनार्दनराय नागर केसरीलाल बोदिया अध्यक्ष, विद्याभवन सोसायटी, उदयपुर भू० पू० अध्यक्ष, माध्यमिक शिक्षा बोर्ड राजस्थान। शिक्षा का मूल उद्देश्य यह है कि विद्यार्थी सच्चरित्र बने । चरित्र निर्माण के लिये अध्ययन का विषयवस्तु गौण है। मुख्यत: शिक्षक के चरित्र और व्यक्तित्व का विद्यार्थी के मानस पर गहरा प्रभाव पड़ता है। इसी से विद्यार्थी का चरित्र बनता है, बिगड़ता है। इस सम्बन्ध में स्वामी विवेकानन्द का निम्न विवेचन उल्लेखनीय है। 卐 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012044
Book TitleKesarimalji Surana Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathmal Tatia, Dev Kothari
PublisherKesarimalji Surana Abhinandan Granth Prakashan Samiti
Publication Year1982
Total Pages1294
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size34 MB
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