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________________ संघ की विशाल ऐतिहासिक यात्रा I के सहवास में मेरी ओर से हुई भूलों के लिए क्षमा याचना करती हूँ आपके सफल मार्गदर्शन और निर्देशन में ये अपनी -मंजिल की ओर बढ़ते रहें। मेरे पास छः वर्षीया बच्ची है, उसके प्रति मेरा कुछ दायित्व है, यही सोचकर मन को आश्वस्त कर रही हूँ । वह दिन धन्य होगा, जिस दिन मैं भी संयम पथ पर अग्रसर होने का साहस जुटा सकूँगी ।" पण्डाल में दृश्य रोमांचकारी था । भारतीय दर्शन में वैराग्य का उत्कृष्ट उदाहरण सबके सम्मुख उपस्थित हुआ । दिन में दो से चार बजे तक एक किलोमीटर लम्बी शोभा यात्रा लुधियाना शहर के मुख्य मार्गों पर निकली। सबसे आगे राणावास के ३०० छात्र पंक्तिबद्ध कपड़े के पट्ट (बेनर) लिए हुए नारे लगाते हुए चल रहे थे । उनके पीछे दो दीक्षार्थी भाई व चार दीक्षार्थी बहिनों के जुलूस क्रम से अलग-अलग बैण्ड के साथ चल रहे थे, जुलूस इतना लम्बा व प्रभावशाली हो गया कि ऐसा धार्मिक जुलूस लुधियाना नगर के इतिहास में पहले कभी नहीं देखा व सुना गया। तेरापंथ धर्म संघ व श्री आचार्य प्रवर का प्रबल प्रताप है, जिसकी व्यापकता की छाप अमिट रहेगी। शहर के लोग कहने लगे कि, आचार्यजी को राजस्थान वापस लेने के लिए आ गये । इस समस्त वातावरण में राणावास संघ का मुख्य प्रभाव था। संघ के प्रत्येक सदस्य के बदन पर राणावास का स्वर्णिम केसरिया रंग का बैज लगा हुआ था, जिसे सर्वत्र राजस्थान का प्रतिनिधित्व करते देखा गया । २६१ राणावास की चातुर्मास की अर्ज को बुलन्द करने में विभिन्न रोचक कार्यक्रम क्रमशः तीनों समय प्रस्तुत किये गये, उन सबमें परमपूज्य गुरुदेव का सान्निध्य प्राप्त रहा। कितने ही भावपूर्ण सामूहिक गान, नृत्य तथा संवाद भी रखे गये। इस तरह दिनांक १७ अक्टूबर तक बराबर कार्यक्रम चलते रहे, क्योंकि साध्वी विनयवतीजी ने ४२ कार्यक्रम तैयार करवाये थे। श्री आचार्य प्रवर की महती कृपा का अनुभव हुआ । काका साहेब, प्रो० एस० सी० तेला साहब तथा मैंने अपनी विनती वक्तव्यों से की। श्री आचार्य प्रवर इस प्रकार की गहन व व्यापक विनती को देखकर असमंजस में पड़ गये कि राणावास के लिए कहा हुआ भी है और आखिर फरमाया कि पंजाब के भार से तो मैं हल्का हो गया हूँ, अब राणावास से हल्का होना ही है-— ये शब्द उस समय फरमाये, जब राणावास के प्रमुख कार्यकर्त्ता दिनांक १७ को दिन के २ बजे श्री आचार्य प्रवर की सेवा कर रहे थे। इससे हमें आशा की झलक मिली, क्योंकि हमारा एकमात्र ध्येय चातुर्मास का था इन्हीं दिनांक १३-१७ के पांच दिनों में स्थानीय स्कूलों के बालक-बालिकाओं ( ज्यों कक्षा तक ) की सांस्कृतिक प्रतियोगितायें रखी गयीं। वहाँ के बालक-बालिकाओं ने वेश-भूषा के साथ सांस्कृतिक कार्यक्रम बड़े ही रोचक दिये। चरित्र अंकन प्रतियोगिता बास वर्ष के उपलक्ष में रखी गयी पारितोषिक की घोषणा पंजाब के राज्यपाल माननीय जयसुखलाल जी हाथी की ओर से की गयी। बड़ी राशि थी । संगरूर के दो छोटे बालकों का संवाद - श्री आचार्य प्रवर द्वारा मर्यादा महोत्सव संगरूर प्रदान करने से सम्बन्धित बड़ा प्रभाव पूर्ण रहा। पारिमार्थिक शिक्षक संस्था की बहिनों ने भी कार्यक्रम दिये और उन्होंने जैन विश्व भारती लाडनू पधारने की प्रार्थना की। सरदार शहर की भी अर्ज सामने आयी । लुधियाना यह एक उद्यमी एवं कला कौशल का नगर है, ऊनी वस्त्रों का राष्ट्रीय बाजार है और घर-घर में ऊन का काम होता है । कोई भिखमंगा नहीं देखा गया। एक फेरीवाला भी दिन में ३५-४० रुपये कमा लेता है । 1 मौसमी का रस ५० पैसे सबने खूब पीया ऊनी कपड़े प्रत्येक ने खूब खरीदे, शायद ही चातुर्मास के चार महीनों में दर्शनार्थी यात्रियों ने हजारों-लाखों भागों का धन लुधियाना में आया। लुधियाना वासी बहुत - सब में अपने-अपने धर्म के प्रति आस्था है। भैंसें खूब पाली जाती हैं । दूध-दही खूब है । १ रुपये प्रति गिलास जगह-जगह पर मिलता है, कोई खाली हाथ लौटा हो । अनुमानित है कि इस रुपये के कपड़े खरीदें। इससे देश के विभिन्न Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org.
SR No.012044
Book TitleKesarimalji Surana Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathmal Tatia, Dev Kothari
PublisherKesarimalji Surana Abhinandan Granth Prakashan Samiti
Publication Year1982
Total Pages1294
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size34 MB
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