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श्री सुमति शिक्षा सदन उच्च माध्यमिक विद्यालय, राणावास
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योग
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दैनिक पत्र साप्ताहिक पाक्षिक मासिक त्रैमासिक १० २८३
५३ निर्धन छात्रकोष एवं बुक बैंक
विद्यालय में निर्धन छात्र कोष की स्थापना १९६० में की गयी । अभावग्रस्त, गरीब, अनुसूचित जाति एवं प्रतिभावना विद्यार्थियों के लिए पाठ्य पुस्तके, गणवेश एवं अन्य पाठ्य सामग्री इस निर्धन कोष से मुफ्त सहायता के रूप में सुलभ करायी जाती है। १९६० में १११ पुस्तकें, ४५ विद्यार्थियों को सहायतार्थ दी गयीं। इस प्रकार प्रतिवर्ष उत्तरोत्तर निर्धन छात्र कोष में पाठ्य पुस्तकों की वृद्धि होती रही जो कि १९७४-७५ में १३१८ पुस्तकों तक पहुँच गयी । इस वर्ष ८३ निर्धन एवं जरूरतमंद विद्यार्थियों में इन पुस्तकों का वितरण सहायता के रूप में हुआ।
१६७६ में प्रधानमन्त्री श्रीमती इन्दिरा गांधी द्वारा आयोजित २० सूत्रीय आर्थिक कार्यक्रम के तहत विभागीय आदेशानुसार बुक बैंक की स्थापना की गयी जो कि निर्धन छात्र कोष का ही दूसरा नाम है। इस बुक बैंक कोष की स्थापना राणावास गाँव के प्रतिष्ठित नागरिक श्री मोइद्दीन जी आत्मज श्री बाबूखाँ जी सरपंच के कर कमलों से की गयी। प्रारम्भिक रूप में बुक बैंक के लिए उद्घाटनकर्ता श्री मोइद्दीन जी ने ५०१ रुपये की राशि भेंट स्वरूप प्रदान की।
उसी वर्ष सत्र में जिले भर में सर्वाधिक राशि एकत्रित कर पुस्तके विद्यार्थियों को सहायतार्थ दी जाने के उपलक्ष में हमारा विद्यालय प्रथम रहा। इस अवसर पर प्रधानाध्यापक श्री भंवरलाल जी आच्छा को जिलाधीश महोदय जी ने रजत पदक एवं प्रशंसा पत्र से अलंकृत कर नागरिक सम्मान किया।
सत्र १९७७-७८ में माध्यमिक शिक्षा बोर्ड राजस्थान ने २४६ रु० बुक बैंक के लिए खर्च की गयी राशि पर अनुदान स्वरूप दिये।
इसी तरह सत्र १९७८-७९ के खर्च एवं पुस्तक विवरण पर माध्यमिक शिक्षा बोर्ड ने १९२ रुपये फिर अनुदानस्वरूप पुरस्कार सहायता प्रदान की।
३१ मार्च १९८० को बुक बैंक कोष का विवरण कुल पुस्तकें नवीन आगमन छात्र जो अनुसूचित एवं जनजाति माध्यमिक शिक्षा बोर्ड इस सत्र में लाभान्वित हुए छात्र जो लाभान्वित हुए द्वारा पुरस्कार स्वरूप
__ अनुदान
वर्ष रुपये १२८५ ५६६ पुस्तकें १६६
४८
१९७७-७८ २४६-०० १३०० रु० की
१९७८-७६ १९२-०० हस्तकला (उद्योग) विभाग
श्री सुमति शिक्षा सदन के आदर्श वाक्य "सा विद्या या विमुक्तये" के अनुसार छात्र अपने भावी जीवन में स्वावलम्बी बन सकें व विद्यालयी जीवन में उनका शारीरिक, मानसिक व बौद्धिक विकास हो सके इसके लिए विद्यालय में हाथ कताई, बुनाई विभाग का प्रारम्भ सन् १९५० से किया गया। प्रारम्भ में छात्रों को हैण्डलूम पर कपड़ा, निवार बुनने व सिलाई का प्रशिक्षण देने की ही व्यवस्था थी। हाईस्कूल बनने पर यह ऐच्छिक विषय के रूप में रहा, जिसमें छात्र अच्छे अंक ही नहीं प्राप्त करते थे बल्कि विशेष योग्यता प्राप्त करके विद्यालय के नाम को गौरवान्वित करते थे।
विद्यालय के सैकण्डरी व हायर सैकण्डरी के रूप में क्रमोन्नत होने पर यह विषय दसवीं कक्षा तक सभी छात्रों के लिए अनिवार्य विषय के रूप में है। वर्तमान में छात्रों को कपास बोने से लेकर कपास ओटने, रुई धुनने, पूनी
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