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सर्वांगीण शिक्षा का सिंहद्वार ति शिक्षा सदन उच्च माध्यमिक विद्यालय, राणावास
0 श्री तख्तमल इन्द्रावत, अध्यापक, सुमति शिक्षा सदन
श्री सुमति शिक्षा सदन उच्च माध्यमिक विद्यालय, राणावास के अंकुर वि० सं० २००१ (सन् १९४४) में प्रस्फुटित हुए । श्री बस्तीमलजी छाजेड़, मिश्रीमलजी सुराणा, केसरीमलजी सुराणा आदि के सद्प्रयासों से आश्विन शुक्ला १० विजयादशमी तदनुसार २७ सितम्बर, १९४४ को शुभ मुहूर्त में कांठा क्षेत्र की ज्योतिशिखा इस विद्यालय का श्रीगणेश श्री सुमति शिक्षा सदन विद्यालय के रूप में हुआ। प्रारम्भ में इस विद्यालय में पाँच छात्र प्रविष्ट हुए और कक्षा १ से ३ तक की कक्षाएँ प्रारम्भ की गयीं। प्रथम अध्यापक के रूप में श्री मूलसिंह जी राठौड़ (सूरसिंह का गुड़ा) को नियुक्त किया गया और राणावास स्टेशन पर ही चाँदखाँ मिश्रु खाँ पठान का मकान किराये पर लेकर विद्यालय की अमृतशिला स्थापित हुई। वर्ष के अन्त में छात्रों की संख्या ५ से १४ तक हो गयी
और दूसरे वर्ष १९४५-४६ के सत्र में यह संख्या बढ़कर १०२ तक पहुँच गयी। विद्यालय के प्रधानाध्यापक के रूप में उदयपुर (मेवाड़) निवासी श्री जोधसिंह जी तलेसरा की नियुक्ति होने पर कक्षा ४ व ५ भी खोल दी गयीं। विद्यालय की लोकप्रियता आस-पास के क्षेत्रों में बढ़ती गयी। छात्रों की संख्या भी उसी क्रम में विस्तार पाती गई। फलतः सन् १९४६-४७ के सत्र में कक्षा ६ और ७ को भी आरम्भ कर दिया गया। सन् १९४७ में ही मिडिल स्कूल के रूप में सुमति शिक्षा सदन विद्यालय प्रतिष्ठित हो गया। इसी वर्ष डॉ० दयालसिंह जी गहलौत (निवासी ब्यावर) प्रधानाध्यापक बनकर आये। इनके संयमी व प्रबुद्ध नेतृत्व में विद्यालय ने काफी प्रगति की। सन् १९५५ में हाईस्कूल के रूप में यह विद्यालय क्रमोन्नत हो गया। कला एवं वाणिज्य विषय विद्यालय में ऐच्छिक विषय के रूप में खुले । सर्वप्रथम १९५७ में कुल १६ छात्र बोर्ड की परीक्षा में बैठे। परीक्षा परिणाम ८४ प्रतिशत रहा। इतने आकर्षक परिणाम के फलस्वरूप इस विद्यालय की ख्याति दूर-दूर तक फैल गयी।
अब विद्यालय में ऐच्छिक विषय के रूप में विज्ञान वर्ग शुरू करने की मांग भी होने लगी। बढ़ती हुई मांग को देखते हुए सन् १९६६ में विज्ञान वर्ग के अन्तर्गत भौतिकशास्त्र, रसायनशास्त्र और ऐच्छिक गणित विषय खोले गये। राजकीय अनुदान भी अब ५० प्रतिशत से बढ़कर ८० प्रतिशत तक हो गया। विकसित होते हुए विद्यालय को श्री जैन श्वेताम्बर तेरापंथी मानव हितकारी संघ के अन्तर्गत पृथक से श्री सुमति शिक्षण संस्था के रूप में गठन कर दिया गया। संविधान भी अलग से बनाया गया और नियमानुसार रजिस्ट्रेशन भी करा लिया गया। यह रजिस्ट्रेशन संख्या ८६/१९६८ दिनांक १४-८-१९६८ है। अब तक इस विद्यालय में कक्षा दस तक ही तीनों वर्गों में अध्ययन होता था, इस पर कक्षा ११ खोलने की माँग होने लगी। वस्तुतः यह आवश्यकता भी अनुभव की जा रही थी। इस पर १ जुलाई, १९७० से कक्षा ११ भी खोल दी गयी और श्री सुमति शिक्षा सदन माध्यमिक विद्यालय अब उच्च माध्यमिक विद्यालय में परिणत हो गया। इस अनवरत विकास का एकमात्र श्रेय माननीय कर्मयोगी श्री केसरीमल जी सुराणा की सूझ-बूझ, लगन एवं परिश्रम को है।
___ कार्यकारिणी-विद्यालय के संचालन एवं विभिन्न शैक्षिक, आर्थिक तथा विकासोन्मुख गतिविधियों की देख-रेख के लिए विधानानुसार विद्यालय की कार्यकारिणी गठित की जाती है। यह कार्यकारिणी विद्यालय के मार्ग-दर्शक के रूप में कार्य करती है। १५ मार्च, १९८१ को हुई साधारण सभा की बैठक में गठित कार्यकारिणी इस प्रकार है
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