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कल तक सजा
कर्मयोगी श्री केसरीमलजी सुराणा अभिनन्दन ग्रन्थ : द्वितीय खण्ड
अभिनिष्क्रमण - स्थली - बगड़ी
श्री प्रभूसिंह सोलंकी (गुड़ा सूरसिंह, जिला - पाली)
वर्तमान में यह कस्बा दो रेलवे स्टेशनों से जुड़ा हुआ है-बगड़ी एवं बगड़ी सज्जनपुर । बगड़ी सज्जनपुर बगड़ी कस्बे के ठाकुर श्री सज्जनसिंहजी के नाम से बगड़ी सज्जनपुर कहलाया । यह मारवाड़ जंक्शन से दिल्ली जाने वाली रेलवे लाईन पर बसा हुआ है । सोजतरोड से करीब है । बिलाड़ा जाने वाली बस सोजतरोड से बगड़ी होती हुई प्रतिदिन आती-जाती है।
कांठा के तेरापंथी तीर्थ (२)
यह मारवाड़ व मेवाड़ के सन्धि-स्थल से चार मील पश्चिम की ओर अरावली पहाड़ की तराई में बसा हुआ है। बगड़ी दोनों ओर से जलधारा के प्रवाह से घिरा हुआ है। उत्तर और दक्षिण की ओर दो जलधाराएं लीलड़ी व सुकड़ी नदियों की है वर्षाकाल में जब ये नदियाँ अपनी चरम सीमा पर बहती है तो यह नगर तैरते हुए जलपोत के समान सुशोभित होता है ।
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सिन्धलों के द्वारा गढ़ का जैतसिंह के वंशज जैता
प्राचीनकाल में इस नगर में सिन्धल राजपूतों का पूर्णतया आधिपत्य था । निर्माण कार्य प्रारम्भ हुआ तो बाद में राठौड़ ठाकुर श्री सिंह के वंशजों ने सम्पूर्ण किया मत कहलाये। इतिहास में भी जैतसिंह का नाम प्रसिद्ध रहा है। ये जोधपुर के संस्थापक राव जोधा के भाई अराज के पोते थे । राव जोधा ने वि० सं० १५१८ में यह जागीर अखेराज को इनायत की थी। पहले बगड़ी में सिन्धल राजपूतों का राज्य था । सिन्धलों से अखेराज व उसके वंशजों को संघर्ष कर यहाँ अपना आधिपत्य मजबूत करना पड़ा। कहा जाता है कि इस संघर्ष में कई सिन्धल वीर बड़ी बहादुरी से लड़े मगर उन्हें पराजित होना पड़ा। यह भी कहा जाता है कि एक वीर का सिर काटकर गढ़ के दरवाजे पर लटकाया गया । सिन्धलों में एक वीर धड़ से लड़ाई में लड़ा और कई राठोड़ राजपूतों को मारकर मरा, जिससे उसके महल में आज भी भय बना हुआ है । उससे सम्बन्धित महल में किसी को भी जाने की हिम्मत नहीं होती । हमेशा के लिए महल बन्द करा दिया गया है। वहाँ कोई भी नहीं जाता । सिन्धलों के बाद जैतावतों का आधिपत्य हो गया जो आज भी मौजूद है। वर्तमान में जैतावतों की ग्यारहवीं पीढ़ी चल रही है। आजादी से पूर्व इस जागर के अन्तर्गत कुल ७ गाँव थे । जैतसिंह की छतरी
बगड़ी के बाहर जैतसिंह की छतरी बनी हुई है जो उनकी स्मृति दिलाती है। इस छतरी के पास अन्य छतरियाँ भी बनी हुई हैं । वर्तमान में इसके चारों ओर पक्का परकोटा तेरापंथ समाज के प्रतिष्ठित महानुभावों द्वारा बनाया गया है। छतरी का जीर्णोद्धार तेरापंथ द्विशताब्दी समारोह के अवसर पर तेरापंथ प्रवर्तक आचार्य श्री भिक्षु के जीवन से सम्बन्धित स्थानों के जीर्णोद्धार की योजना के अनुसार कराया गया। आचार्य श्री भिक्षु के जीवन से सम्बन्धित स्थानों के जीर्णोद्धार की योजना इसी शताब्दी के अवसर पर बनी । इस योजना के अन्तर्गत कंटालिया, सिरियारी ओर बगड़ी में जो स्थान स्वामीजी के जीवन से सम्बन्धित हैं, उनके जीर्णोद्वार का भार बगहीनिवासी श्री मोहताजी, श्री मिश्रीमलजी, श्री मोतीलालजी रांका, श्री कुन्दनमलजी सेठिया ने उठाया । इनके साथ श्री सम्पतकुमारजी गधेया, श्री मन्नालालजी बरड़िया, श्री रामचन्द्रजी सोनी ( रोजत रोड), श्री बस्तीमलजी छाजेड़ ( सिरियारी), समाजप्रेमी श्री जम्बरमलजी भण्डारी तथा राणावास निवासी कर्मयोगी श्री केसरीमलजी सुराणा का नाम उल्लेखनीय है।
बगड़ी नगर का भाग्योदय
तेरापंथ के आद्य प्रवर्तक आचार्य श्री भिक्षु का बगड़ी से बड़ा आध्यात्मिक सम्बन्ध रहा है । यही वह स्थल है जहाँ पर आकर २५ वर्ष की आयु में स्थानकवासी सम्प्रदाय के तत्कालीन आचार्य श्री रुघनाथजी के हाथों आपने वि० सं० १८०८ की मार्गशीर्ष कृष्णा १२ को दीक्षा ली थी तथा राजनगर मेवाड़ के चातुर्मास काल में जब
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