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________________ अभिनन्दनों का आलोक १४६ -. - . -. - . - . -. - . - . - . - . -. -. -. -. - -. . -. -. - . .. -. -. -. - . ... ........ .......... .... . ..... आभा सदा सर्वदा आपके मुखमण्डल पर झलकती रहती है । झगड़ा क्या होता है, यह आप नहीं जानतीं। महिलाओं के साथ बैठकर भी आप अपनी-पराई बातों में विश्वास नहीं करतीं। अधिकांश खाली समय अपने यहाँ पर विराजित साधु-सन्तों की सेवा में व्यतीत करती हैं । मन में पाप नहीं, वाणी में कटुता नहीं, कथनी व करनी में अन्तर नहीं और ईर्ष्या-द्वेष-अभिमान आदि से कोसों दूर ऐसी नारी-रत्न माताजी गार्गी एवं मैत्रेयी जैसी प्राचीन ऋषि-पत्नियों का सहज स्मरण करा देती हैं । ___माताजी अखिल भारतीय जैन महिला शिक्षण संघ राणावास की संस्थापिका है। जिस प्रकार कर्मयोगी श्री केसरीमलजी सुराणा ने श्री जैन श्वेताम्बर तेरापंथी मानव हितकारी संघ, राणावास की स्थापना व विकास में अपने आपको समर्पित कर दिया, इसी क्रम में माताजी श्रीमती सुन्दरदेवी सुराणा ने महिला समाज में व्याप्त अशिक्षा, अंधविश्वास, कुरीतियाँ आदि को दूर करने तथा महिलाओं के शोषण को दूर करने के लिये वि० सं० २०१८ की कार्तिक शुक्ला पूर्णिमा को महावीर कन्या विद्यालय, राणावास की स्थापना के साथ ही अखिल भारतीय जैन महिला शिक्षण संघ राणावास की स्थापना करके इसके विकास व संवर्द्धन में अपने आपको समपित कर दिया। गृहस्थ-जीवन के समस्त दायित्वों के निर्वाह के साथ-साथ एक अलग से संस्था खड़ी कर देना, आपकी प्रतिभा व क्षमता की द्योतक है। माताजी प्रत्येक बालक-बालिका की माँ हैं और प्रत्येक बालक-बालिका को मां की ममता, वात्सल्य, स्नेह तथा पथ-प्रदर्शन आप प्रदान करती रहती हैं। आप जब भी महिला शिक्षण संघ या मानव हितकारी संघ में जाती हैं तो बालक-बालिकाएं आपको देखते ही "माताजी प्रणाम," "माताजी प्रणाम" की हर्षध्वनि के साथ आकर उनके चरण स्पर्श करने लगते हैं। आप स्वयं भी कहती हैं कि ईश्वर ने मुझे सन्तान नहीं दी तो क्या हुआ ये इतने सारे बालक-बालिकाएं मेरे पुत्र-पुत्रियाँ ही तो हैं। सचमुच, वे तदनुरूप आचरण कर बालक-बालिकाओं के दिल भी जीतती हैं। आप नारी-समाज में व्याप्त कुरीतियों की प्रबल विरोधी हैं । जब भी समय मिलता है आप इनका डटकर विरोध करती हैं। अपनी दत्तक पुत्री श्रीमती दमयन्तीदेवी का सादगीपूर्ण विवाह इसका उत्तम प्रमाण है । आप पर्दा प्रथा में विश्वास नहीं करती। न तो स्वयं पर्दा करती हैं और न ही किसी को प्रोत्साहन देती हैं। वि० सं० २००६ से ही आपने घूघट निकालना छोड़ दिया है। सचमुच ही आप हृदय से विशाल और स्वभाव से उदार हैं । त्याग, सेवाभाव, क्षमाशीलता और विनम्रता आपके स्वभाव के गुण हैं। संयम, कर्तव्यपरायणता, ईमानदारी, सत्यवादिता, धैर्यता, कर्मठता, लगन और आध्यात्मिकता आप में कूट-कूटकर भरी है। आप सद्गुणों को आकर हैं। आदर्श महिला और नारी-रत्न हैं। हिन्दी साहित्य के प्रसिद्ध महाकवि जयशंकर प्रसाद द्वारा रचित कामायनी की निम्न पंक्तियां आपके व्यक्तित्व को देखकर सहज ही स्मरण हो आती हैं नारी तुम केवल श्रद्धा हो, विश्वास रजत-नग पगतल में । पीयूष स्रोत सी बहा करो, जीवन के सुन्दर समतल में ॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012044
Book TitleKesarimalji Surana Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathmal Tatia, Dev Kothari
PublisherKesarimalji Surana Abhinandan Granth Prakashan Samiti
Publication Year1982
Total Pages1294
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size34 MB
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