________________
अभिनन्दनों का आलोक
त्यागम ति श्रीयुत केसरीमलजी साहब सुराणा (काका साहब) के
७०वें जन्मोत्सव के उपलक्ष में
सादर समर्पित अभिनन्दन-पत्र
व्यक्ति नहीं, उसका कर्म सत्य है। जन हित में निरत कर्म-शिव है और उसका विस्तार ही सुन्दर है । सत्यंशिव-सुन्दरं की इस त्रिवेणी का तटवर्ती जीवन व्यतीत कर रहे आपके तीर्थोपम व्यक्तित्व का हार्दिक अभिनन्दन करना प्रत्येक के लिए गौरव का विषय है। अनासक्त कर्मवीर !
दूसरों के लिए जीने वाले, जीने को शाश्वत बनाने वाले व्यक्ति का व्यक्तित्व महान और असाधारण होता है। ऐसे महापुरुषों की दृष्टि में जीवन स्वयं एक साधना बन जाता है। आपश्री एक ऐसे ही असाधारण व्यक्तित्व के धनी महापुरुष हैं, जिनके लिए कर्म ही अथ और इति है। गीता के निष्काम कर्म का व्यावहारिक रूपायन आपके जीवन में हुआ है । शिक्षा, धर्म, समाज सुधार, दान आदि के विविध क्षेत्रों में आपकी तपःपूत कर्मण्यता की शोभाश्री दृष्टिगत होती है । जीवन को कर्म का वरदान देने के कारण ही विभिन्न विभूतियों द्वारा आपको 'नरकेसरी' के विशेषण से विभूषित किया गया है । वस्तुतः आप कमल की भांति अनासक्त कर्मयोगी हैं। त्यागी एवं तपस्वी !
अनासक्त कर्मयोगी महापुरुषों का जीवन प्रायः आत्मोन्मुख ही होता है । आसक्ति में उनकी किंचित् भी आस्था नहीं होती। आपका जीवन इसका एक अनुपम उदाहरण है । वि. सं. २००१ में वैभव-सम्पन्न अपने व्यावसायिक जीवन का परित्याग कर आप भोगी से योगी बन गये। समष्टि-सुख के लिए आपने व्यक्तिगत सुखों का होम कर दिया । जहाँ एक ओर आपने अपना सर्वस्व समाज को अर्पित कर दिया, वहाँ दूसरी ओर आत्म-साधना में लीन रहकर आपने अपनी भौतिक इच्छाओं का परित्याग कर दिया। साधु न होते हुए भी जीवन को साधुतामय रखना आपके जीवन की अलोकिक विशेषता है । खान-पान, रहन-सहन, आचार-विचार आदि प्रत्येक स्तर पर आपका जीवन त्याग और तपश्चर्या की प्राणवान परिभाषा से तराशा हुआ प्रतीत होता है आत्मोत्थान में लीन आपकी दिनचर्या, आपका जीवन स्वयमेव एक तपश्चर्या है । एक दिन-रात में १६ सामायिक, १६३ घण्टे मोन, चंद घण्टे मात्र रात्रि-शयन, रात्रि-आहार व पानी का त्याग, उपवास, एकासन, आयम्बिल आदि का यथासमय पालन, मात्र सो रुपये मासिक व्यय में पति-पत्नी दोनों के जीबन-निर्वाह का व्रत और इस सीमा बन्धन के बाद भी अतिथि-सत्कार कर आत्मिक प्रफुल्लता की अनुभूति आदि निश्चय ही आपके त्याग और तप, साध्य दिनचर्या तथा जीवन के अद्भुत उदाहरण हैं । आपके साधुत्व, संयमित एवं साधनामय जीवन को ही लक्ष्य कर युग प्रधान आचार्य प्रवर श्री तुलसी ने आपको साधु-पुरुष की संज्ञा से विभूषित किया है। सादगी की प्रतिमूर्ति !
वस्त्र-सीमा, खाद्य-सीमा, अर्थ-सीमा और समय-सीमा जहाँ एक ओर आपके साधनामय जीवन को व्यक्त करती हैं, वहाँ दूसरी ओर आपके सादे जीवन को भी प्रकट करती है । श्वेत परिधान के विशिष्ट परिवेश से युक्त आपका संयमित व्यक्तित्व किसी महामनीषी ऋषि-मुनि के व्यक्तित्व के सदृश दृष्टिगत होता है। वस्तुत: आप 'सादा जीवन उच्च विचार' के मूर्त स्वरूप हैं।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org