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तुम्हारे कर्म
की
गाथा
साध्वी श्री धर्मप्रभा (राजगढ़)
तुम्हारे कर्म की गाथा, युगों-युगों तक विश्व गायेगा । साधना त्याग संयम से, प्रेरणा नित्य पायेगा | तुम्हारी साधना उज्ज्वल, तुम्हारी भावना निर्मल । धो रहे त्याग तप-जल से, प्रतिपल कर्म का कलिमल | फूल से सुरभिमय मानस में, श्रद्धा का अमल परिमल । बहुत दुर्लभ है मिलना, मेरु सा सुदृढ़ मनोबल ॥
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'विद्याभूमि' जणाय रे काका, नाम रोशन किनो ओ ॥ २ ॥ केशरी त्यागी, तपस्वी थां सा काका, देख्या नहीं जग मांही ओ,
ग्याराव्रत धारी ने बाबा, नामी नाम दीपायो ओ ॥ ३॥ केशरी झाड़ लगायो 'सुमति सदन' सहस्रां फूल खिलग्या ओ
सहस्रां ही खिलरया हैं काका, सहस्रां ही खिलजासी ओ ||४|| केशरी कालेजां पर कालेजां बणायरे, लाखां रुपिया बटोर्या ओ,
नहीं देवण वालो भी धरे ने, नतमस्तक हुई देईग्यो ओ ||५|| केशरी 'नारी शिक्षा' री थी जरूरत, वा भी पूरी कीनी ओ,
काव्यान्जलि
प्रेरणाय गृहीजीवन, संघ महिमा बढ़ायेगा । तुम्हारे कर्म की गाथा, युगों-युगों तक विश्व गायेगा || तुम्हारा धन्य है जीवन, तुम्हारा सफल है क्षण-क्षण | कर दिया है सकल अर्पण, छात्र संस्था को तन-मन-धन ॥ तोड़कर मोह के बन्धन, कर रहे आत्म-संशोधन । शुद्ध संस्कार का सर्जन, छात्रगण में प्रफुल्लित मन ॥
प्रवाहित ज्ञान की गंगा, यहाँ स्नातक नहायेगा । तुम्हारे कर्म की गाथा, युगों-युगों तक विश्व गायेगा ॥ शुष्क धरणी हुई धन्या, पुण्यस्थली आज बन पाई। देश में आज अच्छी ख्याति, विद्याभूमि ने पाई ॥ तुम्हारा सुयश कण-कण में, बज रही विजय शहनाई । तुम्हारे श्रम का पा सिंचन, यह मरुधर भूमि सरसाई ॥
लगाया बीज जो तुमने, विटप बन लहलहायेगा । तुम्हारे कर्म की गाथा, युगों-युगों तक विश्व गायेगा
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केशरीमलसा थां ने ओ, म्हें भूलाला नहीं जुग-जुग ओ, ज्ञान री ज्योत जगाय रे काका, म्हांरो जनम सुधार्यो हो || १ || केशरी 'राणावास' बसायो राणामाली, थां रा पगल्या पड्या ओ,
ठाटदार स्कूल बगीचो, छात्रावास भी 'सर्व-धर्म- समन्वय' काका, सच्चे दिल सुं कट्टर 'तेरापंथी' होयर, 'मन्दिर' सुन्दर अभिनन्दन री इण वेला पर, 'प्रेम' री अर्जी सुणज्यो ओ, जुग-जुग तक जीवी ने काका, 'स्कूल' री सेवा करज्यो ओ ||८|| केशरी
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बणायो ओ ||६|| केशरी धारय ओ,
बणायो ओ ॥७॥ | केशरी
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श्री वी० प्रेमराज भंसाली (बंगलोर)
जनम सुधा ओ
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