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बिल्कुल नहीं थी। मैं स्वयं भी उनकी इस भावना से अभिभूत हुआ और मानव हित का कार्य चिकित्सा के रूप में इस तरह प्रारम्भ हुआ। आपने अपना सम्पूर्ण जीवन शिक्षा के लिए अर्पण किया।
विद्यालय के संचालन के लिए सुराणाजी का सम्पूर्ण जीवन समर्पित है । सबसे मुख्य बात यह है कि उन्होंने उसे अपना व्यवसाय नहीं बनाया है । विद्यालय के कोष का मात्र एक पैसा भी उनके लिए पाप है । जब भी अवसर आया है तन और मन के साथ-साथ धन भी विद्यालय हेतु लगाया है। इस कारण सुराणाजी के लिए यह स्पष्टतः कहा जा सकता है
राणावास को लोग कांठा प्रान्त का नन्दन वन कहते हैं । प्रशंसाभाव में भरकर इसकी तुलना प्राचीन भारत के तक्षशिला और नालन्दा विद्यापीठों से करते हैं । वैसे इस शिक्षण संस्थान का नाम 'श्री जैन श्वेताम्बर तेरापंथ मानव हितकारी संघ' विद्याभूमि राणावास है ।
मेवाड़ मारवाड़ की सीमा पर एक छोटा स्टेशन फुलाद और इससे आगे का स्टेशन राणावास है, जो अब विद्याभूमि के नाम से मशहूर है। यह मलसाबावड़ी सरहद में हैं जिसकी वक्ष पर कभी य-तत्र बल व खेजड़े के वृक्ष थे, उसी पर आज ज्ञान-गढ़ खड़े हैं। स्टेशन के अहाते से बाहर निकलते ही आधे फल भर की दूरी पर विद्याभूमि की इमारतें दीखने लग जाती हैं। जरा समीप जाने पर हम देखते हैं- सुन्दर विशाल भवन, हरे भरे वृक्ष, कुंज, फूलों की क्यारियाँ, विशाल सभा स्थल और कार्य व्यस्त कार्यकर्ता एवं जिज्ञासु छात्र |
इन सब के बीच घूम रहा होता है एक व्यक्ति दीर्घ
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एक दुर्लभ विभूति
श्री भंवरलाल आच्छा ( रागावास )
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श्रद्धा-सुमन
सत्यं, दाक्ष्यं, बुद्धिः सत्पात्रत्वं जनस्य विश्वासः । व्यापारेषु पटुत्वं धर्मे निष्ठा गुणाः सहजाः ॥
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सत्यता, चतुरता, बुद्धि, सत्पात्रता और जनता का विश्वास होता, व्यापार-व्यवहारों में कौशल धर्म में अतुल निष्ठा आदि सभी गुण आप में स्वभावसिद्ध रूप से विराजते हैं। आपके व्यवहार में सच्चाई है और कार्य में नियम है।
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सुराणाजी के अनुसार यदि सत्य चला गया तो शेष सब निरर्थक है । मानवता के इस उच्च आदर्श पर पहुँचने के लिए सामाजिक या व्यक्तिगत जो भी प्रयास होते हैं, उनमें आपका पूर्ण सहयोग है ।
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काया, धवल वस्त्र, हाथ में मुँह पर रखने को छोटा सा श्वेत वस्त्र का टुकड़ा, आंखों पर चश्मा, उसकी आँखों से विद्याभूमि के एक-एक ईंट के लिए ममत्व बरसता रहता है। देखने से ऐसा प्रतीत होता है जैसे प्राचीन काल का कोई महर्षि कुलपति चला आ रहा हो ।
ये हैं श्री केसरीमलजी सुराणा, जो स्वयं त्यागी, वैरागी होते हुए भी जनता के ऐहिक अभ्युदय के लिए सारा जीवन अर्पित कर दिया है। अपना कीमती समय समाज व राष्ट्र की तरक्की इसकी बहबुदी के लिए लगाते हैं ।
श्री सुराणाजी गृहरुवों में भी संन्यासी हैं, सदाचार एवं मानवीय मूल्यों का उपासक हैं । अथक परिश्रमी, कर्तव्यपरायण, सच्चे ग्रामवासी हैं। आप आज भी हजारों सार्वजनिक कार्यकर्त्ताओं को आदर्श निष्ठा और कर्त्तव्य परायणता का व्यावहारिक पाठ पढ़ा रहे हैं। वास्तव में आप समाज की दुर्लभ विभूति हैं ।
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