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श्रद्धा-सुमन
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आत्म-साधना के धनी
0 श्री श्यामसुन्दर जैन (उदयपुर) आज श्री सुराणाजी का समाज में वही स्थान है जो कुशल प्रशासक के रूप में आप में यह गुण देखने को मिलता एक जहाज के कप्तान का होता है। आप आत्मविश्वास है। आप कभी यह नहीं सोचते कि 'मैं ही संस्था के प्राण के धनी हैं तथा आत्मविश्वास को सफलता की कुजी है, बल्कि वे अपने आपको भी एक सहयोगी के रूप में मानते मानते हैं। ऐसा लगता है आत्मविश्वास आपकी आत्मा हैं। कई बार मैंने यह भी अनुभव किया है कि सुराणाजी में कूट-कूट कर भरा है। इसी आत्मविश्वास के बल पर अपने साथियों से विचारों का विरोधाभास अनुभव करने आपने कई संस्थाओं के संचालन का कार्य अपने सुविशाल पर सभी विचारों पर गम्भीरता एवं सहानुभूति से चिन्तन कन्धों पर ले रखा है।
करते हैं तथा अपनी नीति प्रजातंत्रीय ढंग से निर्धारित ____ आप में सहयोग की प्रवृत्ति कूट-कूटकर भरी है । आप करते हैं। ऐसा लगता है कि आपने प्रजातन्त्र को अपने इस बात को समझते हैं कि अगर एक को एक का आचरण का ही एक अंग बना लिया है। सहयोग मिल जावे तो ग्यारह हो जाते हैं। अत: एक
00 तेरापंथ के सूफी संत
प्रो० देवेन्द्रदत्त शर्मा (बीकानेर)
जिस मनुष्य ने गुरु से तवज्जह की धार लेके अपने रास्ता पहुंचता है। रास्ता भले ही पृथक् हो सूफियों का हृदय के सारे विकारों को दूर करने का व्रत लिया हो, उसे लेकिन मस्ती व बेहोशी जैन सम्प्रदाय के पहुंचे हुए श्रावकों शुद्ध व निर्मल बना लेने के लिए कटिबद्ध हो गया हो- जैसी ही मिलती है। काकासा इस रूहानी मरहलों के वही सूफी है। काका साहब का दिल भी मल व विक्षेपों वासी हैं अतः आनन्द बिखेरती इनकी आँखें, मधुरता से परे हो जाने को अंगड़ाइयाँ ले रहा है। बिना भेद-भाव लिए इनकी वाणी, जिस किसी को कुछ क्षण काकासा के के काका साहब की सन्तों की-सी भोली-भाली बातें-जो सम्पर्क में आने को मिले वह प्रभावित हुए बिना नहीं रह सम्पर्क में आता है उसे ही मोह लेती हैं। काकासा का सका। दिल दर्पण की तरह साफ है, सरोवर में ठहरे जल की सूफियों के यहाँ दो तरह के कायदे बतलाये गये हैं। तरह निर्मल है, जिसमें कि एक अशान्त दिल को डुबकी एक के जरिये खुदा के नूर से सीधा सम्पर्क कर रूहानी लगा लेने से ईश्वरीय आनन्द की अनुभूति होना फैज की मदिरा को पी मस्त होना है। दूसरे के जरिये स्वाभाविक है।
किसी वसीले की सहायता से खुदा की खुदाई को दिल में सफी सम्प्रदाय का कहना है कि जो अपने मुरशीद में भरना है। इसे तवज्जह रूहानी कहा गया है। ये दोनों ही मन लगा देता है उसे संसार व ईश्वर दोनों उपलब्ध होते रास्ते साथ-साथ तय कर लेने से मकसद जल्द हासिल हो हैं। काकासा में इसी सिद्धान्तानुसार सांसारिक व्यक्तियों हो जाता है । काकासा दोनों ही रास्तों का समन्वय कर को प्रभावित करने की शक्तियों का उजागर होना तथा उस अन्तिम मंजिल की चढ़ाई के अवरोही हैं। जैन तेरारूहानी शक्तियों का निखरना सम्भव हो सका है। एक पंथ भी इन दोनों रास्तों का अलग-अलग बखान करते हुए सच्चे सन्त की तरह सूफियों का-सा प्रेम जैन श्रावकों में भी दोनों को मिलाकर उस पर श्रावक को चलने की अपने इष्ट के प्रति पाया जाना एक बड़ी उपलब्धि कही इजाजत देता है। सूफी गुरु को साकी, मुरशीद आदि के जायगी। दया का उमड़ता सागर, ज्ञान की रश्मियों का नाम से पुकारते हैं । जैन तेरापंथ में आचार्य व तीर्थंकर शब्द लरजते-गरजते बहना जहाँ जैन श्रावकों को आनन्द के प्रचलित हैं। लोक में ले जाता है वहीं सूफी लोगों के फनानफिल का अपने साकी के चरणों में सब कुछ लुटा देने वाला
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