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कर्मयोगी श्री केसरी मलजी सुराणा अभिनन्दन ग्रन्थ : प्रथम खण्ड
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श्रावक
साध्वी श्री ज्योतिप्रभा
आज मरुधर की शुष्क धरा पर विद्या का चमन स्तन स्थापित कर बैल बाँध देता है और तब बैल उस लहलहा रहा है। राणावास का नाम विद्याभूमि के रूप स्तम्भ के इर्द-गिर्द घूमते हुए अनाज के छिलकों को में परिवर्तित हो चुका है। यह सब केसरीमलजी सुराणा पृथक्-पृथक् कर देता है। बैलों के घूमने एवं छिलकों व का जादुई करिश्मा है।
अनाज के पृथक्करण का साधन मेख। (मेढि) है, वैसे ही यह अनुभवसिद्ध बात है कि श्री केसरीमलजी आचार्य लौकिक और लोकोत्तर धर्म को पृथक् समझाने की भिक्ष के सिद्धान्त और तेरापंथ के एकाचार-विचार की योग्यता वाला श्रावक मेढि अ के उपनाम से उपमित व्यवस्थित परम्परा का प्रचार-प्रसार मानव हितकारी हो सकता है। वि० सं० २०३५ का हमारा चातुर्मास संघ के माध्यम से कर रहे हैं, वह अपने आप में अनूठा विद्याभूमि राणावास में था। इस चातुर्मास काल में है, अनुपम है, अद्वितीय है और आकर्षक है। सचमुच में सुराणाजी के विचारों को हमने समझा एवं सूक्ष्मता से केसरीमलजी मेढिभूअ श्रावक हैं।
उनका निरीक्षण किया तो आपका व्यक्तित्व ठीक मेढिभूष मेढिभूअ अर्थात् आधारभूत । जैसे किसान अनाज जैसा ही लगा। काटकर खलियान में रख देता है। खलियान के मध्य में
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