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राजस्थान : स्वातन्त्र्य संघर्ष और जैन समाज
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............................................. . .... . सेठीजी ने मातृभूमि के दीवानों को आश्रय, प्रश्रय और प्रेरणा देने के निमित्त अपना सब कुछ होम कर दिया। ऐसे ही उदयपुर जिले में १२०० व्यक्तियों को माँ-भारती के चरणों में अर्पित करने वाला व्यक्ति मोतीलाल तेजावत भी जैन ही था। पंजाब के जलियाँवाला काण्ड की पुनरावृत्ति श्री तेजावत के नेतृत्व में ही हुई। मशीनगनों के सामने तेजावतजी ने जिस बहादुरी के साथ सीना ताना और ललकारा, अपने आप में एक अप्रतिम उदाहरण है। तेजावतजी व सेठीजी की ही परम्परा में प्रदेश के कई भागों में ऐसे कई उदाहरण हैं जिनके आधार पर आज हम सभी गर्व से भरे हैं।
कोटा की पुलिस कोतवाली पर पन्द्रह दिन तक राष्ट्रीय ध्वज फहराने वाले एव सामन्ती अधिकार को सशक्त चुनौती देने वाले नाथुलाल जैन और सहस्रों पुलिस की उपस्थिति में सरकारी कार्यालय की तीसरी मंजिल पर जाकर झण्डा लगाने वाले श्री दाड़मचन्द (कुशलगढ़) और बम बनाकर अंग्रेजों की शक्ति को तोड़ने का करिश्मा करने वाले उगमराज को भला कौन भूल सकता है ? मैं यहाँ कुछ ही नाम दे रहा हूँ जो क्रान्ति-पथ के अनुयायी थे, यूं और भी ऐसे कई नाम हैं जो सेठीजी और मोतीलाल तेजावत की तरह ही देश पर मर-मिटने की तमन्ना रखते थे।
अहिंसक आन्दोलन और जैन-बन्धु जब से देश में स्वातन्त्र्य आन्दोलन की बागडोर महात्मा गांधी के हाथों में आई, एक महत्त्वपूर्ण परिवर्तन आया। क्रान्तिकारी आन्दोलन की जगह अब मार्ग ने अहिंसक सत्याग्रह की ओर दिशा ली। इस नये मार्ग पर भी यदि हम जैन-बन्धुओं पर दृष्टि डालें तो एक भीड़-सी लगेगी। केवल राजस्थान के ही इतने नाम हैं कि उनका यहाँ उल्लेख करना भी एक कठिन कार्य है । सत्याग्रह के द्वारा स्वतन्त्रता की भावना को उजागर करने और स्वयं उसके निमित्त जूझने वाले प्रदेश के सभी जिलों में जैनियों की पर्याप्त संख्या थी। इन बन्धुओं को भी अपने स्वातन्त्र्य प्रेम के लिए सात-सात वर्ष की कठोर सजाएँ दी गईं, तो कई बन्धुओं को घर-बार छोड़कर प्रदेश अथवा तत्कालीन अपने-अपने राज्यों से बाहर रहना पड़ा।
सिरोही के सिद्धराज ढड्डा, दूलचन्द सिंघी, धर्मराज सुराणा, रूपराज सिंघी, धनराज तातेड़, हजारीमल जैन, बांसवाड़ा जिले के भुब्बालाल कावड़िया, उच्छबलाल महेता, वर्द्धमान गादिया, भेरूलाल तलेसरा, कन्हैयालाल जैन, शान्ति लाल सेठ एवं विनोदचन्द्र कोठारी आदि ऐसे नाम हैं जिन्होंने आदिवासी क्षेत्रों में भील और मीणों को संगठित कर माँ भारती को स्वतन्त्र कराने में सामन्ती जुल्मों की परवाह नहीं की। इसी परम्परा में जयपुर के फूलचन्द जैन, क' रचन्द पाटनी, उदयपुर नगर के मोहनलाल तेजावत, रोशनलाल बोदिया, भूरेलाल बया, रंगलाल मारवाड़ी, बलवन्तसिंह मेहता, जोधपुर के आनन्दराज सुराणा, जैसलमेर के जीवनलाल कोठारी, बीकानेर के नेमीचन्द आँचलिया तथा अजमेर के नेनूराम खंडेलवाल ने अपने-अपने जिला मुख्यालयों पर अहिंसक सत्याग्रहों का संचालन कर शेष भागों में स्वातन्त्र्य आन्दोलन के सूत्रधार बने । इन्हीं लोगों की प्रेरणा से प्रदेश के छोटे-छोटे कस्बों व ग्रामों में भी आजादी की ज्योति जली । कानोड़ के पं० उदय जैन, तखतसिंह बाबेल, माधवलाल नन्दावत, चाँदमल भानावत, अम्बालाल भानावत, छोटी सादड़ी (चित्तौड़) के सूर्यमान पोरवाल, नाथद्वारा के कज्जुलाल पोरवाल, फूलचन्द जैन, रतनलाल कर्नावट, बेगू के सुगनलाल जैन, छगनलाल चोरड़िया, लाडनू के मानमल बाफना, फलोदी के सम्पतलाल लूकड़ एवं उनके मारवाड़ क्षेत्र के भँवरलाल सर्राफ, अभयमल जैन, पुखराज जैन के नाम भी उल्लेखनीय हैं । ऐसे ही जयपुर क्षेत्र के गुलाबचन्द कासलीवाल, दौलतमल भण्डारी, रूपचन्द सोगानी, विजयचन्द्र जैन, बंशीलाल लुहाड़िया, अरविन्दकुमार सोनी, उमरावमल आजाद, दूनीचन्द जैन, मुक्तिलाल मोदी, डा० राजमल कासलीवाल, नथमल लोढ़ा, कपूरचन्द छाबड़ा, जवाहरलाल जैन, पूर्णचन्द जैन, भंवरलाल बोहरा, भंवरलाल सामोदिया, मिश्रीलाल जैन, मिलापचन्द जैन, रतनचन्द्र काष्टिया, बसन्तीलाल बगीचीवाला, ज्ञानप्रकाश काला, कैलाशचन्द्र बाकीवाला, भंवरलाल अजमेरा, रामचन्द्र कासलीवाला, सोहनलाल सोगानी, सुभद्रकुमार पाटनी, दीपचन्द बक्षी, गेन्दीलाल छाबड़ा आदि कई बन्धु थे जो सुशिक्षित एवं सम्पन्न परिवारों से सम्बद्ध थे लेकिन स्वतन्त्रता के लिए यातनाएँ सहीं और अपने परिवारों को संकट में डालकर भी प्रसन्न थे।
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